भारतीय क्रिकेट में फिटनेस मानकों को लेकर शुरू हुआ नया अध्याय अब विवादों में उलझता जा रहा है. टीम इंडिया द्वारा यो-यो टेस्ट की जगह हाल ही में लागू किए गए ‘ब्रॉन्को टेस्ट’ ने खिलाड़ियों और विशेषज्ञों के बीच बहस छेड़ दी है. जहां एक ओर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और टीम प्रबंधन इसे आधुनिक और प्रभावी फिटनेस मानक बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व भारतीय क्रिकेटर मनीष तिवारी ने गंभीर आरोप लगाया है कि यह टेस्ट वरिष्ठ खिलाड़ियों, खासकर रोहित शर्मा को वनडे टीम से बाहर रखने की एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है.
मनीष तिवारी ने अपने बयान में कहा कि ब्रॉन्को टेस्ट एक बेहद कठोर सहनशक्ति पर आधारित फिटनेस मानक है, जिसे फुटबॉल और रग्बी जैसी तेज़-तर्रार खेलों में खिलाड़ियों की स्टैमिना जांचने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. क्रिकेट एक अलग तरह का खेल है, जहां तकनीक, मानसिक दृढ़ता और परिस्थितियों के हिसाब से खेलने की कला को फिटनेस जितना ही महत्व दिया जाता है. उनका आरोप है कि इस टेस्ट को लागू करने से उन खिलाड़ियों पर दबाव बनेगा जो उम्रदराज़ हैं लेकिन अभी भी बल्लेबाज़ी या रणनीतिक योगदान में बेहद मूल्यवान हैं. रोहित शर्मा का नाम सीधे तौर पर सामने आना इसी वजह से सुर्खियों में है, क्योंकि ODI विश्व कप 2027 की योजनाओं से पहले टीम की संरचना बदलने की कोशिशें पहले से ही चल रही थीं.
सोशल मीडिया पर इस विवाद ने आग में घी डालने का काम किया. ट्विटर और इंस्टाग्राम पर #BroncoTest और #JusticeForRohit जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे. कई फैंस का कहना है कि फिटनेस टेस्ट का इस्तेमाल कभी भी किसी खिलाड़ी को किनारे करने के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि यह खिलाड़ियों की मदद और उनकी क्षमता को बेहतर बनाने का साधन होना चाहिए. कुछ ने सीधे तौर पर BCCI और चयन समिति पर सवाल उठाए कि क्या यह बदलाव अचानक इसलिए किया गया ताकि चयन से जुड़े बड़े फैसलों को फिटनेस की आड़ में सही ठहराया जा सके.
टीम प्रबंधन की ओर से हालांकि अभी तक इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है. लेकिन बीसीसीआई से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ब्रॉन्को टेस्ट को अपनाने का फैसला पिछले दो सालों से विचाराधीन था और इसे आधुनिक खेल विज्ञान की सिफारिशों के आधार पर लागू किया गया है. उनका कहना है कि यह टेस्ट खिलाड़ियों की सहनशक्ति, गति और रिकवरी क्षमता का व्यापक आकलन करता है, जो अब के तेज़ और लंबे क्रिकेट कैलेंडर में बेहद अहम है.
मगर आलोचक सवाल उठा रहे हैं कि क्या भारतीय क्रिकेट में फिटनेस मानक हमेशा से खिलाड़ियों के करियर का निर्णायक पहलू रहा है? इतिहास में कई दिग्गज ऐसे हुए हैं जिन्होंने फिटनेस की सीमाओं के बावजूद अपने बल्ले और दिमाग से मैच जिताए हैं. खुद रोहित शर्मा का करियर इसका उदाहरण है—जहां उन्होंने कई बार बड़े टूर्नामेंटों में अपनी बल्लेबाज़ी से टीम को जीत दिलाई, चाहे उनके फिटनेस मानक पर बार-बार सवाल क्यों न उठे हों. आलोचकों का तर्क है कि यदि केवल फिटनेस के पैमाने पर खिलाड़ियों का चयन होगा तो क्रिकेट में अनुभव और खेल-समझ जैसे गुण हाशिये पर चले जाएंगे.
पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने भी अप्रत्यक्ष रूप से इस बहस में अपनी राय दी. उन्होंने कहा कि फिटनेस टेस्ट महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें क्रिकेट की वास्तविक ज़रूरतों से जोड़ा जाना चाहिए. गावस्कर का मानना है कि अगर कोई खिलाड़ी लगातार रन बना रहा है या विकेट ले रहा है तो केवल फिटनेस टेस्ट पास न करने की वजह से उसे नज़रअंदाज़ करना क्रिकेट की आत्मा के साथ अन्याय होगा.
इस विवाद के बीच रोहित शर्मा ने खुद कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों के मुताबिक वह इस बहस में उलझने से बचना चाहते हैं और अपने खेल पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. हालांकि उनके फैंस लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और दावा कर रहे हैं कि यह साजिश उन्हें धीरे-धीरे टीम से बाहर करने का हिस्सा है.
इस बहस का एक पहलू यह भी है कि क्या भारतीय क्रिकेट के सामने पीढ़ीगत बदलाव का दबाव है? विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा जैसे सीनियर खिलाड़ियों के हालिया संन्यास के बाद टीम पहले ही नए चेहरे तलाश रही है. इस पृष्ठभूमि में रोहित शर्मा की भूमिका और भी अहम हो जाती है, क्योंकि वह न सिर्फ एक वरिष्ठ बल्लेबाज़ हैं बल्कि रणनीतिक सोच और नेतृत्व क्षमता के लिए भी पहचाने जाते हैं. यदि फिटनेस टेस्ट के बहाने उन्हें बाहर किया जाता है तो यह टीम की स्थिरता और दिशा पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा.
दूसरी ओर कुछ खेल वैज्ञानिक और कोच यह तर्क भी दे रहे हैं कि फिटनेस पर समझौता किए बिना आधुनिक क्रिकेट में लंबी पारी खेलना और तीनों फॉर्मेट में टिके रहना मुश्किल है. उनका कहना है कि ब्रॉन्को टेस्ट खिलाड़ियों को मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से मजबूत बनाने का साधन है और यह टीम को लंबे समय में फायदा पहुंचा सकता है.
फिलहाल स्थिति यह है कि ब्रॉन्को टेस्ट को लेकर शुरू हुआ यह विवाद अब क्रिकेट प्रशंसकों, विशेषज्ञों और खिलाड़ियों के बीच एक बड़ा विमर्श बन गया है. क्या यह वाकई एक निष्पक्ष और आधुनिक फिटनेस मानक है या फिर इसका इस्तेमाल रणनीतिक तौर पर कुछ खिलाड़ियों को किनारे करने के लिए किया जा रहा है? इस सवाल का जवाब आने वाले महीनों में टीम चयन और खिलाड़ियों के प्रदर्शन के साथ ही साफ हो पाएगा. लेकिन इतना तय है कि रोहित शर्मा का नाम इस विवाद के केंद्र में आ जाने से भारतीय क्रिकेट में फिटनेस और चयन की पारदर्शिता पर बहस और भी तेज़ हो गई है.
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