नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि देशभर में भवन निर्माण और आवासीय ढांचे से जुड़े कानूनी नियमों का पालन अब किसी भी हालत में टाला नहीं जा सकता. न्यायालय ने अपने दिसंबर 2024 के आदेश को दोहराते हुए कहा कि चाहे नया निर्माण हो या पुराना, सभी इमारतों के लिए वैध निर्माण योजना (Sanctioned Plan) और ओक्यूपेंसी सर्टिफिकेट (OC) होना अनिवार्य है.
पानी-बिजली की सुविधा सिर्फ वैध भवनों को
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जल, विद्युत और अन्य मूलभूत नागरिक सुविधाएं अब केवल उन्हीं भवनों को दी जानी चाहिए जो वैध निर्माण के दायरे में आते हैं. यानी यदि किसी भवन ने निर्माण नियमों का उल्लंघन किया है और उसके पास वैध OC नहीं है, तो स्थानीय निकाय उस भवन को पानी या बिजली का कनेक्शन नहीं देंगे.
यह प्रावधान सीधे तौर पर उन तमाम इमारतों और हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को प्रभावित करता है, जो बिना उचित अनुमोदन या अवैध विस्तार के साथ खड़े हैं.
जवाबदेही होगी तय
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि आदेश के उल्लंघन पर संबंधित अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही तय होगी. यानी यदि कोई नगर निगम या विकास प्राधिकरण अवैध निर्माण को पानी-बिजली की सुविधा उपलब्ध कराता है, तो अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे.
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“निर्माण नियमों का उल्लंघन अब ‘समझौते’ या ‘सामाजिक प्रथा’ का हिस्सा नहीं रह सकता. कानून का पालन सभी के लिए समान रूप से अनिवार्य है.”
दिसंबर 2024 का आदेश क्यों अहम था
पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि भवन निर्माण में पारदर्शिता और नियमबद्धता सुनिश्चित की जाए. अदालत ने उस समय कहा था कि अवैध इमारतें न सिर्फ शहरों की सुंदरता और संरचनात्मक सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि आम नागरिकों की जिंदगी को भी संकट में डालती हैं.
अब इस आदेश को दोहराते हुए अदालत ने संकेत दिया है कि राज्यों की ओर से पालन में सुस्ती देखी जा रही है. यही कारण है कि कोर्ट को फिर से हस्तक्षेप करना पड़ा.
राज्यों और नगर निकायों पर दबाव
इस निर्देश के बाद राज्यों और नगर निकायों पर भारी दबाव है कि वे जल्द से जल्द उन सभी भवनों की जांच करें जो बिना OC या वैध नक्शे के चल रहे हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले दिनों में अवैध कॉलोनियों, वाणिज्यिक कॉम्प्लेक्स और हाउसिंग सोसाइटियों पर कार्रवाई तेज हो सकती है.
नागरिकों पर असर
इस आदेश का सीधा असर आम नागरिकों पर भी पड़ेगा. जो लोग ऐसे भवनों या फ्लैट्स में रह रहे हैं जिनके पास वैध कागज़ात नहीं हैं, उन्हें पानी-बिजली जैसी बुनियादी सेवाओं में दिक्कत हो सकती है. हालांकि, न्यायालय ने राज्यों से यह भी कहा है कि ऐसे मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए और नागरिकों को राहत पहुंचाने के लिए वैकल्पिक समाधान खोजे जाएं.
विशेषज्ञों की राय
शहरी नियोजन विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह कदम भारतीय शहरों में अवैध निर्माण और भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार है. यदि इसे ईमानदारी से लागू किया गया तो न केवल अव्यवस्थित शहरीकरण पर रोक लगेगी, बल्कि शहरों का विकास सुरक्षित और टिकाऊ भी होगा.
आगे का रास्ता
अब राज्यों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध कार्ययोजना तैयार करनी होगी. इसमें भवन अनुमति की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना, ऑनलाइन पोर्टल्स के जरिए OC जारी करना और उल्लंघन करने वाले बिल्डरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से यह साफ हो गया है कि शहरी नियोजन और भवन निर्माण के क्षेत्र में अब कानून की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

