सड़क हादसों में जबलपुर देश में तीसरे स्थान पर, दिल्ली और बेंगलुरु के बाद सबसे ज्यादा दोपहिया दुर्घटनाएँ, भोपाल चौथे नंबर पर

सड़क हादसों में जबलपुर देश में तीसरे स्थान पर, दिल्ली और बेंगलुरु के बाद सबसे ज्यादा दोपहिया दुर्घटनाएँ, भोपाल चौथे नंबर पर

प्रेषित समय :16:35:27 PM / Sat, Aug 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. हाल ही में जारी सड़क सुरक्षा रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश के लिए चिंता की नई तस्वीर सामने रखी है. रिपोर्ट के मुताबिक, दोपहिया वाहन हादसों में जबलपुर देश का तीसरा सबसे प्रभावित शहर है. केवल दिल्ली और बेंगलुरु ही जबलपुर से आगे हैं. इतना ही नहीं, भोपाल भी चौथे स्थान पर है.इस रिपोर्ट ने न केवल प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी यह चेतावनी है कि ट्रैफिक नियमों की अनदेखी कितनी बड़ी त्रासदी बन चुकी है.

जबलपुर में सड़क हादसों का बढ़ता आंकड़ा केवल प्रशासन की नाकामी नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक लापरवाही का परिणाम है. दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महानगरों के साथ इस सूची में शामिल होना बताता है कि छोटे शहर अब उतने सुरक्षित नहीं रहे.अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में जबलपुर की सड़कें और खतरनाक हो सकती हैं. प्रशासन को चाहिए कि वह चालानी कार्रवाई के साथ-साथ सुरक्षा संस्कृति विकसित करे. वहीं, नागरिकों को भी यह समझना होगा कि सड़क पर जिम्मेदारी से चलना ही जीवन बचाने का सबसे बड़ा उपाय है.भारत दुनिया में सड़क हादसों में सबसे ऊपर है. हर साल लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत होती है. अकेले दोपहिया वाहनों से जुड़े हादसों में 40% मौतें दर्ज होती हैं. जबलपुर का तीसरे स्थान पर आना इस राष्ट्रीय संकट की स्थानीय झलक है.

आँकड़े क्या कहते हैं?
दिल्ली और बेंगलुरु क्रमशः पहले और दूसरे स्थान पर हैं.

जबलपुर तीसरे स्थान पर आया है, जहाँ बीते एक साल में करीब 2,800 दोपहिया सड़क हादसे दर्ज किए गए.

इनमें से लगभग 900 हादसों में गंभीर चोटें और 320 मौतें हुईं.

भोपाल चौथे स्थान पर है, जहाँ हादसों का आँकड़ा लगभग 2,500 तक पहुँच गया है.

सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि जबलपुर जैसे अपेक्षाकृत छोटे शहर का इस सूची में इतने ऊपर आना बेहद गंभीर संकेत है.

मुख्य कारण
रिपोर्ट ने जबलपुर में बढ़ते हादसों के पीछे कई प्रमुख कारण बताए –

तेज रफ्तार – शहर के भीतर और बाहरी रिंग रोड पर बाइक और स्कूटी सवार युवाओं में तेज गति से वाहन चलाने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है.

ट्रैफिक नियमों की अनदेखी – बिना हेलमेट चलना, सिग्नल तोड़ना, ओवरटेक करना आम बात है.

सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर – कई इलाकों में सड़कों की हालत खराब है, गड्ढे हादसों को न्योता देते हैं.

वाहनों की बढ़ती संख्या – पिछले पाँच साल में जबलपुर में दोपहिया वाहनों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है.

शराब पीकर वाहन चलाना – रिपोर्ट में दर्ज लगभग 12% हादसों में शराब पीकर बाइक चलाने की पुष्टि हुई है.

जबलपुर में राइट टाउन, दमोह नाका, तीसरी पुलिया, मदनमहल और ग्वारीघाट जैसे व्यस्त क्षेत्रों में सबसे अधिक दुर्घटनाएँ होती हैं. शाम और रात के समय हादसों की संभावना ज्यादा रहती है.

पुलिस के आंकड़ों के अनुसार –

दमोह नाका चौराहा पर पिछले एक वर्ष में 220 दुर्घटनाएँ दर्ज हुईं.

मदनमहल अंडरब्रिज क्षेत्र में 150 से अधिक हादसे हुए.

राइट टाउन और कटंगा इलाके में औसतन हर दूसरे दिन एक सड़क हादसा होता है.

हादसों का मानवीय पहलू
अख़बारों में अक्सर ऐसी खबरें आती हैं जहाँ पूरा परिवार हादसे का शिकार हो जाता है.

हाल ही में विजयनगर क्षेत्र में 22 वर्षीय छात्र की मौत हो गई, जब उसकी बाइक एक तेज रफ्तार ट्रक से टकरा गई.

शहर के अधारताल इलाके में 18 वर्षीय युवती गंभीर घायल हुई, क्योंकि उसने हेलमेट नहीं पहना था.

मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों का कहना है कि रोज़ाना औसतन 20 से 25 घायल मरीज सिर्फ सड़क हादसों से पहुँचते हैं, जिनमें 60% दोपहिया वाहन सवार होते हैं.

प्रशासन और पुलिस की चुनौती
पुलिस विभाग का कहना है कि वे लगातार चालानी कार्रवाई कर रहे हैं.

पिछले साल जबलपुर में 1.2 लाख चालान काटे गए.

इनमें से 70% चालान बिना हेलमेट बाइक चलाने पर बने.

करीब 20 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला गया.

फिर भी हादसों की संख्या में कमी नहीं आ रही. इसका कारण केवल कानून का डर न होना ही नहीं, बल्कि समाज में लापरवाही की संस्कृति भी है.

विशेषज्ञों की राय
ट्रैफिक विशेषज्ञ प्रो. संजय श्रीवास्तव कहते हैं –
“जबलपुर जैसे शहरों में सड़क नेटवर्क पर दबाव बढ़ा है. बिना सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था सुधारे और ट्रैफिक सिग्नल सिस्टम को आधुनिक बनाए हादसों पर रोक संभव नहीं.”

सिविक एक्टिविस्ट रीता दुबे का कहना है –
“हेलमेट और सीट बेल्ट को लेकर प्रशासन केवल चालान काटने तक सीमित है. जरूरत है निरंतर जनजागरूकता और स्कूल-काॅलेज स्तर पर शिक्षा की.”

सड़क हादसों के दुष्परिणाम केवल जान-माल की हानि तक सीमित नहीं हैं.

हादसों में घायल व्यक्ति का इलाज लंबे समय तक चलता है, जिससे परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ता है.

अधिकांश पीड़ित 18 से 35 वर्ष की उम्र के युवा होते हैं, यानी देश की कार्यशील जनसंख्या.

जबलपुर मेडिकल कॉलेज के अनुसार, सड़क हादसों में घायल व्यक्तियों का इलाज करने में प्रति वर्ष करीब 50 करोड़ रुपये खर्च होते हैं.

समाधान की दिशा
रिपोर्ट में और स्थानीय विशेषज्ञों ने कुछ उपाय सुझाए हैं –

सख्त हेलमेट और स्पीड चेकिंग अभियान – हाईटेक कैमरों और ऑटोमैटिक चालान सिस्टम की जरूरत है.

बेहतर सड़कें और लाइटिंग – गड्ढे मुक्त सड़कें और रात में पर्याप्त रोशनी जरूरी.

युवाओं में जागरूकता अभियान – स्कूल और कॉलेज स्तर पर ‘सड़क सुरक्षा शिक्षा’ अनिवार्य की जाए.

सार्वजनिक परिवहन का विकास – बाइक की संख्या कम करने के लिए बस और मेट्रो जैसी सुविधाओं का विस्तार हो.

आपातकालीन सेवा – एम्बुलेंस और ट्रॉमा केयर सिस्टम को और मजबूत बनाना.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-