जबलपुर की अजीबोगरीब खबर: ‘किन्नर बनकर वसूली की ट्रेनिंग’, सोशल मीडिया में गुस्से का तूफ़ान

जबलपुर की अजीबोगरीब खबर: ‘किन्नर बनकर वसूली की ट्रेनिंग’, सोशल मीडिया में गुस्से का तूफ़ान

प्रेषित समय :16:49:55 PM / Sat, Aug 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. शहर इन दिनों एक ऐसी खबर की गिरफ्त में है जिसने न सिर्फ़ आम नागरिकों को हैरान किया है बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर भी तीखी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ ला दी है. मामला दो ऐसे युवकों से जुड़ा है जो बेरोज़गारी और आर्थिक मजबूरियों के चलते एक अजीबोगरीब रास्ते पर निकल पड़े. बताया जा रहा है कि इन युवकों ने बाकायदा "किन्नर बनकर वसूली की ट्रेनिंग ली और इसके एवज़ में हर दिन 500 रुपए चुकाने का सौदा किया.यह खबर जैसे ही स्थानीय मीडिया से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँची, वहाँ मीम्स, गुस्से भरे कमेंट्स और समाज की स्थिति पर गहन बहस का सिलसिला शुरू हो गया.

लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों युवाओं को इस तरह के रास्ते पर जाना पड़ रहा है और प्रशासन इस पर किस तरह की कार्रवाई करेगा.जबलपुर की यह घटना अपने आप में एक अद्भुत और चौंकाने वाली मिसाल है. दो युवक, जो अपने भविष्य को संवारने के बजाय बेरोज़गारी और आर्थिक तंगी के कारण गलत रास्ते पर चले गए. उन्होंने किन्नर समुदाय की पहचान को हथियार बनाकर कमाई का साधन ढूंढा, मगर यह प्रयास ज्यादा दिन टिक नहीं पाया.सोशल मीडिया पर इस घटना ने न केवल गुस्सा पैदा किया है बल्कि एक व्यापक सामाजिक बहस भी छेड़ दी है. सवाल यह है कि क्या हम युवाओं को सही रास्ता दिखाने के लिए ठोस कदम उठा पाए हैं? या फिर इस तरह की घटनाएँ भविष्य में और भी बढ़ेगी?इस अजीबोगरीब घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि समाज को रोज़गार, शिक्षा और सामाजिक चेतना के स्तर पर किस तरह सुधार की दिशा में आगे बढ़ना होगा.

घटना की पूरी कहानी
जबलपुर पुलिस की जांच के मुताबिक़, ये दोनों युवक पिछले कुछ महीनों से बेरोज़गारी और आर्थिक संकट से जूझ रहे थे. परिवार चलाने और रोज़ी-रोटी कमाने के चक्कर में उन्होंने एक ऐसे नेटवर्क का सहारा लिया जिसने उन्हें “किन्नर बनकर ट्रेनिंग” देने का लालच दिया. इस ट्रेनिंग के तहत उन्हें सिखाया गया कि रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों और शहर के प्रमुख बाज़ारों में किस तरह यात्रियों से पैसा वसूला जाता है.

बताया जा रहा है कि ट्रेनिंग देने वाले गिरोह ने उनसे हर दिन 500 रुपए वसूले. बदले में उन्हें "किन्नरों के ढंग-ढाल" की नकल करना, कपड़े पहनना और लोगों को भावनात्मक दबाव में डालकर पैसे ऐंठना सिखाया गया.

हालाँकि, यह नकली खेल ज्यादा दिन नहीं चल पाया. यात्रियों और स्थानीय लोगों को शक होने पर पुलिस तक खबर पहुँची और मामला उजागर हो गया.

सोशल मीडिया पर बहस का विस्फोट
जैसे ही यह खबर ऑनलाइन आई, ट्विटर (X), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #JabalpurFakeKinnar और #YouthUnemployment जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे.

लोगों ने अलग-अलग तरह से अपनी राय रखी—

कुछ ने युवकों की इस हरकत को सीधे-सीधे अपराध बताया और सख़्त कार्रवाई की मांग की.

कई यूज़र्स ने बेरोज़गारी और सामाजिक ताने-बाने को दोषी ठहराया. उनका कहना था कि रोज़गार के अवसर न मिलने के कारण युवा इस तरह के रास्ते अपनाने पर मजबूर हो रहे हैं.

वहीं, कुछ लोगों ने असली किन्नर समुदाय के अधिकारों और छवि पर पड़ने वाले असर पर चिंता जताई.

असली किन्नर समुदाय की नाराज़गी
इस घटना ने असली किन्नर समुदाय को भी आहत किया है. उनका कहना है कि उनकी पहले से ही संवेदनशील स्थिति का मज़ाक बनाना और उनकी पहचान का इस्तेमाल वसूली के लिए करना समाज में उनके प्रति और अधिक नकारात्मकता पैदा करेगा.

किन्नर समुदाय के एक प्रतिनिधि ने कहा—
"हम लोग वैसे ही समाज में भेदभाव का सामना करते हैं. अगर इस तरह के नकली लोग हमारी पहचान का इस्तेमाल करेंगे तो असली किन्नरों पर शक और बढ़ेगा. प्रशासन को तुरंत ऐसे गिरोहों पर कार्रवाई करनी चाहिए."

बेरोजगारी की पृष्ठभूमि
जबलपुर और मध्यप्रदेश के कई शहरों में युवा लंबे समय से रोजगार की समस्या से जूझ रहे हैं. पढ़े-लिखे युवाओं को भी मनमाफिक अवसर नहीं मिल पा रहे हैं. यही कारण है कि कई बार वे असामान्य या अवैध रास्तों की ओर खिंच जाते हैं.विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएँ बेरोज़गारी के गहरे संकट का प्रतीक हैं. समाजशास्त्री डॉ. अनिल तिवारी कहते हैं:

"यह सिर्फ अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमारे सामाजिक ढांचे और रोजगार नीति की विफलता को उजागर करती है. जब युवा हाथ में डिग्री लेकर भी सड़क पर भटकते हैं तो वे ऐसे किसी भी आसान रास्ते को आज़माने से पीछे नहीं हटते."

पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई
जबलपुर पुलिस ने दोनों युवकों को हिरासत में लिया है और उनसे पूछताछ जारी है. फिलहाल यह भी जांच की जा रही है कि उन्हें ट्रेनिंग देने वाला गिरोह कौन है और कहाँ से संचालित होता है. पुलिस का कहना है कि असली साजिशकर्ता तक पहुँचना ज़रूरी है क्योंकि केवल युवकों को पकड़ना समस्या का हल नहीं है.

प्रशासन ने भी सोशल मीडिया पर फैली प्रतिक्रियाओं को देखते हुए इस मामले की संवेदनशीलता को समझा है. अधिकारियों का कहना है कि रोजगार संकट से जुड़े युवाओं के लिए वैकल्पिक योजनाएँ और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम तेज़ी से लागू करने की ज़रूरत है.

जनता की राय
सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक जनता की राय दो हिस्सों में बंटी नजर आई.

एक वर्ग इसे पूरी तरह से अपराध मान रहा है और युवकों को कठोर सज़ा देने की मांग कर रहा है.

वहीं दूसरा वर्ग कह रहा है कि असली गुनहगार वो नेटवर्क है जिसने युवकों को इस राह पर धकेला.

कुछ लोगों ने यह भी कहा कि इस घटना ने समाज को चेतावनी दी है कि बेरोज़गारी और आर्थिक मजबूरियाँ किस हद तक युवाओं को अजीबोगरीब रास्तों पर ले जा सकती हैं.

समाज और प्रशासन के लिए सीख
यह घटना केवल एक सनसनीखेज खबर भर नहीं है. इसके पीछे गहरे सामाजिक संकेत छिपे हैं—

बेरोज़गारी का संकट: युवाओं को सही रोजगार के अवसर देने की आवश्यकता है.

किन्नर समुदाय की छवि: उनकी पहचान का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए सख़्त कदम उठाने होंगे.

गिरोह का सफाया: ऐसे नेटवर्क को खोजकर समाप्त करना ज़रूरी है ताकि और कोई युवा शिकार न बने.

मनोवैज्ञानिक परामर्श: ऐसे युवाओं को सामाजिक और मानसिक परामर्श की भी आवश्यकता है ताकि वे सही दिशा चुन सकें.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-