कोमल, लूणकरणसर (राजस्थान).
गांव की चौपाल पर बैठे बुजुर्ग अक्सर कहते हैं कि लहलहाती फसल जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी स्वास्थ्य और उसको सुरक्षित रखने के लिए अस्पताल भी है. खेती से अनाज मिलता है, लेकिन अस्पताल से जीवन मिलता है. यह सवाल और चिंता आज भी देश के लाखों गांवों में गूंजती है कि बीमार पड़ने पर गांव से निकटतम अस्पताल तक पहुंचना इतना कठिन क्यों है.
ऐसा ही एक गांव है नकोदेसर, जो बीकानेर जिले के लूणकरणसर ब्लॉक से करीब 33 किलोमीटर दूर बसा है. मेहनतकश और आत्मनिर्भर ग्रामीण यहां रहते हैं, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने उनके जीवन को असुरक्षित बना दिया है. गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है, मगर डॉक्टर का नियमित रहना अनिश्चित है. कई दिन अस्पताल सूना पड़ा रहता है. ग्रामीणों का कहना है, “जब कोई बीमार होता है, सबसे पहले यह सवाल उठता है कि डॉक्टर आज मिलेगा या नहीं.”
कठिन सफर और दोगुनी परेशानी
अगर डॉक्टर नहीं मिलता तो मरीज को कालू कस्बे ले जाना पड़ता है, जो 13 किलोमीटर दूर है. यह दूरी सुनने में कम लगती है, लेकिन कच्चे रास्ते, धूल-भरी हवाएँ और गर्मी इसे थकाऊ बना देते हैं. बरसात में यह दूरी और भी मुश्किल हो जाती है. कीचड़ से सनी पगडंडियों पर बीमार को मोटरसाइकिल पर बैठाकर ले जाना किसी भी मरीज के लिए कष्टदायक हो जाता है.
महिलाओं और बच्चों पर असर
गर्भवती महिलाओं के लिए यह दूरी सबसे बड़ा संकट है. 33 वर्षीय धूली देवी बताती हैं कि प्रसव पीड़ा के दौरान उन्हें कालू ले जाने में बहुत कठिनाई हुई थी. कई बार महिलाएं रास्ते में ही डिलीवरी करने को मजबूर हो जाती हैं. इससे मां और बच्चे दोनों की जान पर खतरा मंडराता है.
बच्चों के लिए भी हालात कम दर्दनाक नहीं हैं. बुखार, दस्त या संक्रमण की सामान्य शिकायतें अक्सर गंभीर स्थिति ले लेती हैं क्योंकि समय पर इलाज नहीं मिल पाता.
बुजुर्गों की मजबूरी
66 वर्षीय परमेश्वर सारण कहते हैं कि उन्हें ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की दवाओं की जरूरत पड़ती है. लेकिन हर बार दूसरे गांव जाकर दवा और जांच कराना संभव नहीं होता. नतीजतन, बुजुर्ग इलाज टाल देते हैं और अचानक गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ता है.
आंकड़े बताते हैं सच्चाई
भारत सरकार की Rural Health Statistics 2021-22 रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ी है, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 79.5 प्रतिशत विशेषज्ञों की कमी पाई गई. राजस्थान समेत कई राज्यों में भले ही उप स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ी हो, लेकिन आबादी की तुलना में उपलब्ध सुविधाएं बहुत कम हैं.
भरोसे की नींव
ग्रामीण मानते हैं कि अगर अस्पताल में नियमित डॉक्टर और दवाइयां उपलब्ध हों तो जीवन आसान हो सकता है. समय पर इलाज मिलने से लोग खेती-बाड़ी और बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दे पाएंगे. महिलाओं को सुरक्षित प्रसव और बुजुर्गों को नियमित देखभाल मिलेगी.
गांव के लोग कहते हैं – “अनाज भूख मिटाता है, लेकिन इलाज इंसान के जीने का भरोसा देता है. जब यह भरोसा टूटता है तो सबसे बड़ी चोट मन पर लगती है.”
नकोदेसर की स्थिति यह बताती है कि अस्पताल सिर्फ़ सुविधा नहीं, बल्कि इंसानी गरिमा और सुरक्षा की नींव है. जब तक यह नींव मजबूत नहीं होगी, आत्मनिर्भरता और तरक्की की बातें अधूरी ही रहेंगी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

