नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ की रोकथाम से जुड़े 2013 के कानून के दायरे में राजनीतिक दलों को लाने से साफ इनकार कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने इस मामले में दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि यदि ऐसा किया गया तो यह ब्लैकमेल का एक साधन बन जाएगा. अदालत ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों पर यह कानून लागू करने से विवाद और शिकायतों का भानुमती का पिटारा खुल जाएगा.
पीठ ने कहा कि किसी राजनीतिक दल में शामिल होना, वहां नौकरी करने के समान नहीं है. राजनीतिक दल और उसके सदस्यों के बीच नियोक्ता और कर्मचारी का संबंध नहीं होता. मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के दौरान सवाल उठाया- आप राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर कैसे मान सकते हैं? वहां कोई रोजगार नहीं है, न वेतन है और न ही नियुक्ति. यह मामला एडवोकेट योगमाया एम.जी. की याचिका से जुड़ा था, जिन्होंने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने पहले ही स्पष्ट किया था कि राजनीतिक दलों पर कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 लागू नहीं होता, क्योंकि उनके साथ नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है.
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की एक याचिका निपटाते हुए याचिकाकर्ता को भारत के चुनाव आयोग से संपर्क करने का सुझाव दिया था. अदालत ने तब कहा था कि चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त दलों से यह अपेक्षा कर सकता है कि वे यौन उत्पीडऩ संबंधी शिकायतों के निपटारे के लिए आंतरिक तंत्र (इंटरनल सिस्टम) तैयार करें.
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