जबलपुर में इंजीनियरिंग छात्रों ने बनाया फेक न्यूज रोकने वाला सॉफ्टवेयर, साइबर सेल को भेजेगा अलर्ट

जबलपुर में इंजीनियरिंग छात्रों ने बनाया फेक न्यूज रोकने वाला सॉफ्टवेयर, साइबर सेल को भेजेगा अलर्ट

प्रेषित समय :15:51:58 PM / Wed, Sep 17th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. इंटरनेट और सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहे फेक न्यूज और भ्रामक वीडियो मैसेज को रोकने के लिए जबलपुर के दो इंजीनियरिंग छात्रों ने नया तकनीकी समाधान खोजा है. ज्ञान गंगा इंस्टीट्यूट के छात्र हर्ष कुमार और गवर्नमेंट जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र आयुष ने दो अलग-अलग सिस्टम तैयार किए हैं. जो सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहोंए धमकियों और आपत्तिजनक कंटेंट को पहचानकर तुरंत अलर्ट भेजते हैं.

ज्ञान गंगा इंस्टीट्यूट के हर्ष कुमार ने अस्त्र एआई नाम का एक एप्लिकेशन तैयार किया है. यह एप्लिकेशन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो रही देशविरोधी और धार्मिक रूप से आपत्तिजनक पोस्ट्स को शुरुआती स्तर पर ही पहचान लेता है और तुरंत साइबर क्राइम सेल को सूचना भेजता है. हर्ष ने बताया कि यह प्रोजेक्ट उन्हें साइबर सेल से मिली एक चुनौती के तहत मिला था. अब तक ऐसा कोई टूल नहीं था जो इतनी तेजी से वायरल कंटेंट को पकड़ सके. यह एप्लिकेशन ऑटोमैटिकली डिटेक्ट करता है और तुरंत रिपोर्ट करता है.

आयुष ने बताया कि यदि कोई यूजर बार-बार झूठी खबरें या भड़काऊ बातें फैलाता है तो सिस्टम उसे फ्लैग कर देता है. जिससे उसकी विश्वसनीयता कम हो जाती है. किसी गंभीर धमकी की स्थिति में हॉक सीधे पुलिस या सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट भेजता है. जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज की विभाग प्रमुख डॉ आज्ञा मिश्रा ने इन दोनों छात्रों के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह तकनीकें समस्या नहीं, समाधान बनकर सामने आई हैं. छात्रों ने टेक्नोलॉजी का सकारात्मक उपयोग किया है.

एआई मॉडल से तय होता संदेश कितना खतरनाक

दूसरी ओर जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र आयुष ने हॉक नाम की वेबसाइट विकसित की है. जो ट्विटर, टेलीग्राम व ईमेल जैसे प्लेटफॉर्म्स पर आने वाले हिंसा या धमकी से जुड़े मैसेजेस को ट्रैक करती है. वेबसाइट इन मैसेजेस को एआई मॉडल के जरिए जांचती है और यह तय करती है कि संदेश खतरनाक है या नहीं.

सार्वजनिक डेटा का इस्तेमाल करता है सॉफ्टवेयर-

इन सॉफ्टवेयर्स का जबलपुर साइबर सेल ने परीक्षण किया, जहां सभी को भारत विरोधी टिप्पणियां पोस्ट करने के लिए कहा और सिस्टम उन्हें लाइव पहचान लेता है. अब तक 100 से ज्यादा पोस्ट की पहचान हो चुकी है. इसकी सटीकता अभी 97.5 प्रतिशत है. यह सिर्फ सार्वजनिक डेटा इस्तेमाल करता है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-