मुंबई. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की जीवनरेखा कही जाने वाली उपनगरीय लोकल ट्रेनें रोज़ाना लाखों यात्रियों को ढोती हैं. लेकिन इस विशाल नेटवर्क पर यात्रियों की सुरक्षा और इलाज की सुविधा अब भी अधूरी है. सेंट्रल रेलवे मुंबई डिवीजन अदालत के आदेशों और लगातार प्रयासों के बावजूद अब तक केवल चार स्टेशनों—घाटकोपर, भायखला, कल्याण और वाशी—पर ही आपातकालीन चिकित्सा कक्ष (Emergency Medical Room – EMR) शुरू कर पाई है.
बार-बार असफल टेंडर
डिवीजनल रेलवे मैनेजर (वाणिज्य), मुंबई डिवीजन की ओर से 10 सितंबर 2025 को जारी पत्र से पता चला है कि रेलवे ने कई बार निजी ऑपरेटरों को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली.
-
24 मार्च को 15 स्टेशनों के लिए टेंडर जारी हुआ, 23 अप्रैल को बोली खुली तो एक भी प्रतिभागी नहीं मिला.
-
8 मई को 23 स्टेशनों के लिए दोबारा टेंडर निकला, पर सिर्फ एक बोली आई जिसे तकनीकी खामियों के कारण खारिज करना पड़ा.
-
30 जून को तीसरी बार 23 स्टेशनों के लिए टेंडर निकाला गया, 31 जुलाई को बोली खोली गई, पर अपेक्षित भागीदारी नहीं मिली.
रेलवे का कहना है कि उसने कभी अदालत की अवमानना नहीं की, बल्कि लगातार प्रयास किए, पर कंपनियों की उदासीनता सबसे बड़ी बाधा बनी.
यात्रियों की जान पर संकट
मुंबई उपनगरीय नेटवर्क पर रोज़ाना लगभग 80 लाख लोग यात्रा करते हैं. हर साल औसतन 2,000 से अधिक यात्री हादसों में जान गंवाते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से होती है. हादसे अक्सर प्लेटफॉर्म से गिरने, ट्रैक पार करने या धक्का लगने के चलते होते हैं. यात्रियों का कहना है कि हादसे के बाद एंबुलेंस आने में देर होती है और गोल्डन ऑवर में इलाज न मिलने से मौतें बढ़ती हैं.
कार्यकर्ता की मुहिम
रेलवे एक्टिविस्ट समीर ज़वेरी, जो खुद एक रेल हादसे में गंभीर रूप से घायल हुए थे, वर्षों से इस मुद्दे पर संघर्ष कर रहे हैं. उनका कहना है कि हर स्टेशन पर EMR की सुविधा होनी चाहिए ताकि घायल यात्रियों को तुरंत प्राथमिक चिकित्सा मिल सके और उनकी जान बचाई जा सके.
निजी कंपनियों की बेरुखी क्यों?
विशेषज्ञों का मानना है कि निजी कंपनियां इसलिए रुचि नहीं ले रहीं क्योंकि:
-
आर्थिक लाभ का स्पष्ट मॉडल नहीं है.
-
रेलवे द्वारा तय किए गए मानक सख्त हैं.
-
आम जनता को सेवाओं की जानकारी न होने से कंपनियों को फायदा कम मिलता है.
अब रेलवे प्रशासन पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP), CSR फंडिंग और NGO की मदद से इस समस्या का हल खोजने की कोशिश कर रहा है. अदालत पहले ही साफ कर चुकी है कि यात्रियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. सवाल यह है कि क्या रेलवे जल्द ठोस कदम उठाएगा या फिर अदालत को एक बार फिर कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

