नई दिल्ली. एयर इंडिया फ्लाइट AI171 के अहमदाबाद में हुए त्रासदीपूर्ण दुर्घटना की जांच को लेकर एक नागरिक सुरक्षा संगठन, सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की है. याचिका में मांग की गई है कि इस दुर्घटना की जांच पारदर्शी और कोर्ट-निगरानी वाली हो. संगठन का आरोप है कि आधिकारिक जांच में स्वार्थ और पूर्वाग्रह के कारण महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया गया, जिससे नागरिकों के जीवन, सुरक्षा और सटीक जानकारी के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है.
यह दुर्घटना 12 जून 2025 को हुई, जब बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर लंदन गैटविक की उड़ान भरते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस हादसे में 260 लोगों की मौत हुई, जिसमें फ्लाइट पर मौजूद 242 लोगों में से 241 और जमीन पर 19 लोग शामिल थे.
याचिका में आधिकारिक जांच को पक्षपाती और अधूरी बताया गया है. 12 जुलाई को जारी प्रारंभिक रिपोर्ट में एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) ने दुर्घटना का मुख्य कारण पायलट की गलती बताया और कहा कि दोनों इंजन के फ्यूल कंट्रोल स्विच “रन” से “कटऑफ” मोड में चले गए थे.
हालांकि, फाउंडेशन का कहना है कि यह निष्कर्ष असमय और चयनित जानकारी पर आधारित है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि AAIB ने कई महत्वपूर्ण डेटा छुपाए, जिनमें शामिल हैं:
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डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (DFDR) का पूरा आउटपुट
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कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) का समय-चिह्नित पूरा ट्रांसक्रिप्ट
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इलेक्ट्रॉनिक एयरक्राफ्ट फॉल्ट रिकॉर्डिंग (EAFR) डेटा
याचिका में उल्लेख है कि CVR रिकॉर्डिंग में एक पायलट पूछता है कि स्विच क्यों कटऑफ हो गया, जबकि दूसरा जवाब देता है कि उसने ऐसा नहीं किया, जिससे तकनीकी खराबी की संभावना प्रबल होती है. इसके अलावा रिपोर्ट में एकमात्र जीवित यात्री, ब्रिटिश नागरिक विवासकुमार रमेश के बयान को शामिल नहीं किया गया, जिसमें उन्होंने विमान में लाइट्स की झिलमिलाहट और विमान का “हवा में अटका” महसूस होने की बात कही थी.
याचिका में कहा गया है कि जांच में सिस्टमगत दोषों और पूर्ववर्ती तकनीकी समस्याओं को अनदेखा किया गया. विमान के फ्यूल स्विच में 2018 में FAA ने संभावित समस्या की चेतावनी दी थी, लेकिन कोई अनिवार्य कार्रवाई नहीं हुई.
साथ ही, जांच दल में शामिल पांच में से तीन सदस्य DGCA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) से हैं. याचिका में कहा गया है कि चूंकि DGCA विमानन नियमों की निगरानी करता है, इसलिए उसका जांच में शामिल होना स्वतंत्र जांच के अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन है.
सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह याचिका दायर की है. उनका कहना है कि जनहानि और बड़े पैमाने की त्रासदी में दोषपूर्ण जांच न केवल जनता की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की प्रक्रिया को भी बाधित करती है.
संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि इस मामले की स्वतंत्र, पारदर्शी और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों से नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई हो.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

