ईमानदारी की अमर विरासत छोड़ गए केशव दत्त पाराशर, पुलिस विभाग में गूंजते किस्से, जीते-जी किंवदंती बने

ईमानदारी की अमर विरासत छोड़ गए केशव दत्त पाराशर

प्रेषित समय :19:33:54 PM / Sun, Sep 21st, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

ग्वालियर. मध्यप्रदेश पुलिस सेवा के इतिहास में कुछ ऐसे नाम दर्ज हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को ईमानदारी, निष्ठा और सिद्धांतों का मार्ग दिखाते रहेंगे. ऐसे ही अद्वितीय व्यक्तित्व थे भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री केशव दत्त पाराशर (के.डी. पाराशर), जिनका आज निधन हो गया. उनके जाने से पुलिस विभाग ही नहीं, पूरा समाज एक सजीव मिसाल और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति से वंचित हो गया है.

श्री पाराशर का पूरा जीवन सेवा, सत्य और सिद्धांतों के प्रति समर्पण का प्रतीक रहा. राज्य पुलिस सेवा से अपना करियर शुरू करने के बाद उन्होंने हरदा, खंडवा, सतना, होशंगाबाद और सीहोर जिलों में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य किया. हर जगह उनकी सबसे बड़ी पहचान उनकी अटूट ईमानदारी और निष्पक्षता रही. चाहे वे किसी भी पद पर रहे हों-नगर पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक या जिला पुलिस अधीक्षक-उनके मातहत कर्मचारी उन्हें एक आदर्श मानते थे और उनके वरिष्ठ अधिकारी उनकी निष्कलंक छवि के कायल थे.

रीवा जिले में लोकायुक्त पुलिस अधीक्षक रहते हुए उनकी कार्यशैली ने उन्हें नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया. भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी सख्ती ने न केवल आम जनता का विश्वास जीता बल्कि बड़े अपराधियों तक ने उनकी सच्चाई और निडरता का सम्मान किया. यह दुर्लभ उदाहरण था कि बड़े-बड़े अपराधी भी उनके सामने सिर झुकाकर कहते थे-“ऐसा अधिकारी हमने कभी नहीं देखा.” यही कारण था कि उनकी ईमानदारी की कहानियाँ विभाग में आज भी किंवदंती की तरह सुनाई जाती हैं.

“यह गरीबों का खून है”- उनका तकिया कलाम
श्री पाराशर की सादगी और कठोर अनुशासन की झलक उनके रोज़मर्रा के जीवन में भी दिखाई देती थी. वे थानों से आई साधारण चाय तक स्वीकार नहीं करते थे और साफ कहते थे-“यह गरीबों का खून है.” त्योहारों पर जब वरिष्ठ अधिकारी मिठाई लेकर उनके घर जाते तो वे सबसे पहले पूछते—“क्या यह आपकी तनख्वाह से खरीदी है?” यदि उत्तर ‘हाँ’ होता तो वे स्वीकार करते, अन्यथा स्पष्ट इंकार कर देते.

यहाँ तक कि भ्रष्ट अधिकारी भी उनकी उपस्थिति में प्रभावित होकर स्वीकार करते-“सर, हमारी जेबें अलग-अलग हैं-एक में वेतन और दूसरी में बाकी सब.” जब उन्हें यह विश्वास हो जाता कि यह ईमानदारी से दिया गया है, तभी वे साधारण चाय तक ग्रहण करते थे. इस आचरण ने उन्हें एक अलग ही ऊँचाई पर पहुँचा दिया.

“दो रास्ते हैं-ईमानदारी और लेन-देन”
अपने सहयोगियों और अधीनस्थ अधिकारियों से वे अक्सर कहते थे-“देखो, ज़िंदगी में दो ही रास्ते हैं. एक है ईमानदारी का और दूसरा है लेन-देन का. ईमानदारी का रास्ता बहुत कठिन है, इस पर मत चलना, वरना मेरी तरह हो जाओगे. जब कभी तुम्हारा ईमान डगमगाएगा या परिवार की जरूरतें बढ़ेंगी, तब यदि किसी से कुछ लेने का मन करेगा, तो लोग कहेंगे—तुम्हारा नाम पाराशर है, तुमसे उम्मीद नहीं थी. और तब तुम कुछ ले नहीं पाओगे. इसलिए समझ लो, मेरा रास्ता कठिन है.”

उनका यह कथन ही उनके पूरे जीवन का सार था. वे मानते थे कि परिवार भी हमेशा ईमानदारी को पसंद नहीं करता, लेकिन यदि एक बार समझौता कर लिया तो जीवन भर पश्चाताप करना पड़ता है.

श्री पाराशर वर्ष 2011 में सीहोर जिले से पुलिस अधीक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए और उसके बाद ग्वालियर के दीनदयाल नगर में बस गए. सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने अपने सादे जीवन और निष्कलंक छवि के कारण समाज में सम्मानजनक स्थान बनाए रखा.

पुलिस मुख्यालय में भी गूंजते थे उनके किस्से
भोपाल पुलिस मुख्यालय में जब भी नए अधिकारी पदस्थ होते, तो पाराशर साहब की ईमानदारी के किस्से ज़रूर सुनते. वे हर परिस्थिति में काम से समझौता न करने के लिए जाने जाते थे. अपराध घटित होते ही वे दिन-रात बिना थके सक्रिय रहते और अपराधियों को पकड़ने में जुट जाते. उनकी कार्यशैली ऐसी थी कि वरिष्ठ अधिकारियों को भी कोई मौका नहीं देते थे.उनके किस्से आज भी पुलिसकर्मियों के बीच दंतकथाओं की तरह सुनाए जाते हैं. सहकर्मी और मातहत अधिकारी अक्सर कहते थे—“पाराशर साहब जैसे अफसर फिर नहीं आएँगे.” उनकी ईमानदारी और सादगी इतनी गहरी थी कि उनका नाम विभाग में मानक बन चुका था.

शोकाकुल परिवार में उनके भाई मुरारीलाल पाराशर और अशोक पाराशर, पुत्र दीपेश पाराशर और अनिवेश पाराशर सहित पूरा पाराशर परिवार सम्मिलित है. उनकी अंतिम यात्रा 21 सितम्बर 2025 शाम 8 बजे निज निवास, दीनदयाल नगर से मुरार मुक्तिधाम के लिए प्रस्थान करेगी.

ईमानदारी की अमर विरासत
श्री पाराशर का जीवन इस बात का प्रतीक रहा कि ईमानदारी केवल एक गुण नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है. उन्होंने कभी भी परिस्थितियों से समझौता नहीं किया. वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर आम पुलिसकर्मियों तक, सभी उन्हें एक ऐसे अधिकारी के रूप में जानते थे जो अपने सिद्धांतों से ज़रा भी विचलित नहीं होते थे. उनके निधन से समाज ने एक ऐसे व्यक्तित्व को खोया है जिसकी सबसे बड़ी विरासत ईमानदारी और निष्पक्षता है. आने वाली पीढ़ियां उनसे यह प्रेरणा लेती रहेंगी कि यदि इच्छाशक्ति प्रबल हो तो किसी भी व्यवस्था में सत्य और निष्ठा की लौ सदैव जलाए रखी जा सकती है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-