नई दिल्ली . छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक और 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी श्री बिनय कुमार सिंह ने मध्यप्रदेश कैडर के IPS अधिकारी दिवंगत केशव दत्त पाराशर को याद करते हुए उन्हें जीवन भर संघर्ष और ईमानदारी का प्रतीक बताया. श्री सिंह ने अपने वक्तव्य में दो प्रेरणादायक कविताओं का उल्लेख किया- विलियम अर्नेस्ट हेनले की “Invictus” और शिवमंगल सिंह 'सुमन' की “वरदान माँगूँगा नहीं”. इन कविताओं की गहरी भावनाओं को उन्होंने पाराशर जी के जीवन और कार्यशैली से जोड़ा. सेवानिवृत्ति के बाद श्री सिंह दिल्ली में रह रहे हैं, लेकिन उन्होंने पाराशर जी के करियर और कार्यशैली की सराहना करते हुए उन्हें याद किया. उन्होंने बताया कि पाराशर जी के मेरिटोरियस मेडल के लिए सिफारिश की थी, जब वे सतना जिले से ट्रांसफर हुए थे.
पूर्व पुलिस महानिदेशक सिंह ने कहा कि हेनले की “Invictus” कविता स्वयं संघर्ष और कठिन परिस्थितियों के सामने आत्मबल की मिसाल है. “Out of the night that covers me… I am the master of my fate, I am the captain of my soul” - इन पंक्तियों में जीवन की कठिनाइयों के बावजूद अडिग रहने और अपने भाग्य का स्वयं निर्णय लेने का संदेश है. उन्होंने बताया कि पाराशर जी का पूरा करियर इसी सिद्धांत का प्रतीक था. चाहे जिले में कठिन परिस्थितियाँ आईं, चाहे भ्रष्टाचार और दबाव का सामना करना पड़ा, उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों और ईमानदारी से समझौता नहीं किया.
साथ ही, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता “वरदान माँगूँगा नहीं” का भी उल्लेख करते हुए श्री सिंह ने कहा कि यह कविता भी आत्मनिर्भरता, दृढ़ संकल्प और संघर्ष पथ पर किसी भी परिस्थिति में अपनी गरिमा बनाए रखने का संदेश देती है. कविता की पंक्तियाँ- "संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही, वह भी सही" - ने पाराशर जी के जीवन को पूरी तरह प्रतिबिंबित किया. उन्होंने कभी सुविधाजनक रास्ता नहीं चुना, न ही पुरस्कार या पद की लालसा में अपने कर्तव्यों से भटकने दिया.
श्री सिंह ने विशेष रूप से याद किया कि जब वे सतना जिले में पदस्थ थे, तब पाराशर जी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में उनके अधीन थे. उस समय पाराशर जी की ईमानदारी, निष्ठा और निडरता ने सभी अधिकारी और मातहत कर्मियों में विश्वास और प्रेरणा का वातावरण बनाया. उन्होंने यह भी कहा कि पाराशर जी का जीवन यही सिखाता है कि कठिनाइयाँ और बाधाएं आने पर भी आत्मविश्वास और साहस से ही व्यक्ति अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है.
श्री सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने 18 वर्षों के संवेदनशील और गुप्त विभागीय कार्यकाल के दौरान देखा कि पाराशर जी का मार्गदर्शन और नेतृत्व हमेशा निष्ठा और सत्य पर आधारित रहा. वे न केवल कानून और नियमों के प्रति अडिग थे, बल्कि अपने कर्मियों को भी सही और गलत का ज्ञान देने में अग्रणी थे. उनके इस आदर्श व्यवहार की याद में ही हेनले की कविता का “अजय आत्मा” और सुमन की कविता की “वरदान माँगूँगा नहीं” की पंक्तियाँ आज भी जीवंत प्रतीत होती हैं.
पूर्व पुलिस महानिदेशक सिंह ने कहा कि पाराशर जी के जीवन का मूल मंत्र था- संघर्ष पथ पर जो मिले, यह भी सही, वह भी सही. कठिन परिस्थितियाँ, भ्रष्टाचार, दबाव या सामाजिक बाधाएं-किसी ने भी उनके आत्मबल को नहीं तोड़ा. उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि इच्छा शक्ति प्रबल हो तो सत्य और निष्ठा की लौ हर परिस्थिति में जलाए रखी जा सकती है.उन्होंने यह भी कहा कि पाराशर जी ने अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में हमेशा आत्मनिर्भरता, साहस और नैतिक दृढ़ता को महत्व दिया. चाहे त्योहारों पर चाय और मिठाई के प्रसंग हों, चाहे पुलिस स्टेशनों में अनुशासन के नियम, उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. उनकी यह सादगी और निष्कलंकता ही आज भी पुलिस विभाग और समाज के लिए आदर्श बन चुकी है.
श्री बिनय कुमार सिंह ने अंत में कहा कि दोनों कविताएँ-“Invictus” और “वरदान माँगूँगा नहीं”-केवल साहित्यिक रचनाएँ नहीं हैं, बल्कि यह प्रेरणा का स्रोत हैं, जो हमें याद दिलाती हैं कि साहस, ईमानदारी और संघर्ष के मार्ग से ही मानव जीवन का वास्तविक मूल्य स्थापित होता है. आज जब हम केशव दत्त पाराशर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, हम इन कविताओं के संदेश को उनके जीवन के संदर्भ में देख सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों को यही प्रेरणा देना चाहते हैं कि संघर्ष पथ पर आने वाली हर चुनौती का सामना निडर होकर करें. पाराशर जी का निधन न केवल पुलिस विभाग बल्कि समाज के लिए भी अपूरणीय क्षति है. उनके जीवन की अमूल्य विरासत- ईमानदारी, निष्ठा, साहस और अडिग आत्मविश्वास- आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी रहेगी.
विलियम अर्नेस्ट हेनले की प्रसिद्ध कविता “Invictus” का अनुवाद भावार्थ के अनुसार किया गया है, ताकि कविता का मूल साहस और आत्मबल बना रहे.
Invictus(अजय)
Original :
Out of the night that covers me,
Black as the Pit from pole to pole,
I thank whatever gods may be
For my unconquerable soul.
Literal Translation :
उस रात से जो मुझे ढकती है,
ध्रुव से ध्रुव तक कोयले जैसी काली,
मैं उन किसी भी देवताओं का धन्यवाद करता हूँ,
जो भी हों, मेरी अजय आत्मा के लिए.
Original:
In the fell clutch of circumstance
I have not winced nor cried aloud.
Under the bludgeonings of chance
My head is bloody, but unbowed.
Literal Translation:
परिस्थितियों की निर्दयी पकड़ में,
मैंने कभी झिझक नहीं दिखाई और न ही जोर से रोया.
संयोग की प्रहारों के तहत,
मेरा सिर खून से लथपथ है, पर झुका नहीं.
Original:
Beyond this place of wrath and tears
Looms but the Horror of the shade,
And yet the menace of the years
Finds, and shall find, me unafraid.
Literal Translation:
क्रोध और आँसुओं की इस जगह से परे,
सिर्फ छाया का भय छाया हुआ है,
फिर भी वर्षों की धमकी
मुझे पाती है, और पाएगी भी, निडर.
Original:
It matters not how strait the gate,
How charged with punishments the scroll,
I am the master of my fate,
I am the captain of my soul.
Literal Translation:
यह कोई मायने नहीं रखता कि दरवाज़ा कितना संकरा है,
या पापों से भरी हुई किताब कितनी भारी है,
मैं अपने भाग्य का स्वामी हूँ,
मैं अपनी आत्मा का कप्तान हूँ.
शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविता "वरदान माँगूँगा नहीं" हिंदी साहित्य की एक प्रेरणादायक रचना है, जो संघर्ष, आत्मनिर्भरता और जीवन के प्रति अडिग निष्ठा का प्रतीक मानी जाती है. यह कविता उनके अद्वितीय व्यक्तित्व और विचारधारा को उजागर करती है.
कविता: वरदान माँगूँगा नहीं
यह हार एक विराम है,
जीवन महासंग्राम है.
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं.
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए,
अपने खंडहरों के लिए,
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं.
क्या हार में क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही,
वरदान माँगूँगा नहीं.
लघुता न अब मेरी छुओ,
तुम हो महान बने रहो,
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं.
चाहे हृदय को ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं,
वरदान माँगूँगा नहीं.

