ब्रह्मचारिणी माता का स्वरूप:-
ब्रह्मचारिणी माता का स्वरूप अत्यंत सौम्य और शांतिपूर्ण है. इनके दो हाथ हैं – एक हाथ में जप माला और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है. जप माला साधना और ध्यान का प्रतीक है. वहीं कमंडल त्याग और तपस्या का. ब्रह्मचारिणी माता कथा के अनुसार, यह देवी अपने भक्तों को ध्यान और आत्म-संयम का महत्व सिखाती हैं, जो जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक होता है.
मां ब्रह्मचारिणी का रंग सफेद है. यह रंग शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है.
सफेद वस्त्र:- देवी ब्रह्मचारिणी सफेद साड़ी पहनती हैं, जो पवित्रता, शांति और आत्म-अनुशासन का प्रतीक है.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने का मुहूर्त:-
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का मुहूर्त मंगलवार 23 सितम्बर 2025 को द्वितीया तिथि प्रारम्भ ,, रात्रि 01 बजकर 06 मिनट AM पर हो जाएगी जिसका समापन 24 सितम्बर रात्रि अंत 02:34 AM पर होगा. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का मुहूर्त सुबह 06:02 AM से सुबह 08:05 AM तक होगा,,
तथा विशेष अभिजीत मुहूर्त:- 23 सितम्बर को 11 बजकर 49 मिनट A M. सें 12 बजकर 37 मिनट pm. तक विशेष मुहूर्त है.
पूजन विधि:-
नवरात्र के दूसरे दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि करने के बाद मंदिर में गंगाजल छिड़क कर मंदिर को पवित्र करना चाहिए तथा आसन में बैठकर पूजन प्रारंभ करना चाहिए माता रानी को जल धूप दीप लाल कमल तथा सफेद कमल गुड़हल अर्पित करना चाहिए उसके पश्चात गाय के घी का दीपक जलाएं और गौरी गणेश तथा कलश और मां ब्रह्मचारिणी का विधिपूर्वक पूजन करें. मां को फल फूल मिठाई अर्पित करें मां ब्रह्मचारिणी की कथा सुने आरती करें हवन करें तथा अंत में क्षमा याचना जरूर करें पूजन करने के बाद प्रसाद वितरण करना चाहिए.
मां ब्रह्मचारिणी को भक्त चढ़ाए कमल का पुष्प:-
माता ब्रह्मचारिणी को कमल का पुष्प व सफेद फूल बेहद पसंद है. इसलिए उनकी आराधना विशेष तौर पर कमल से फूल से करना विशेष फलदाई माना जाता है. इसके साथ ही माता ब्रह्मचारिणी को नारियल से बनी मिठाईयों का भोग लगाने से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन माता को चीनी, शक्कर और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए, जो भक्तों को संयम, धैर्य और दृढ़ निश्चय का आशीर्वाद देता है.
ब्रह्मचारिणी माता की कथा:-
पौराणिक कथा के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया था, तब देव ऋषि नारद के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी कठिन तपस्या के चलते इन्हें तपस्या चारणी अर्थात ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है. कथा के अनुसार उन्होंने हजारों वर्षों तक केवल फल-फूल खाए और कुछ वर्षों तक केवल साग पर निर्वाह किया. इसके बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाकर भी तपस्या जारी रखी कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आसमान के नीचे वर्षा और धूप भी सही इस प्रकार कई हजार वर्षो तक तपस्या की दशा देख मां मैना अत्यंत दुखी हुई देवी की इस कठिन तपस्या से तीनों लोगों में हाहाकार मच गया अंत में पिता ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी से उन्हें संबोधित करते हुए बड़े ही प्रसन्न मन से कहा देवी आज तक किसी ने भी ऐसी कठिन तपस्या नहीं की जैसी तुमन की है तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी भगवान शिव तुम्हें पति रूप में अवश्य ही प्राप्त होंगे इस प्रकार देवी की कठिन तपस्या के बाद उन्हें भगवान शिव पति रूप में प्राप्त हुए.
उनकी इस कठिन तपस्या के कारण उनका शरीर क्षीण हो गया और उनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा.
देवताओं और ऋषियों ने उनकी तपस्या की सराहना की और कहा कि यह आप से ही संभव था, और उनकी मनोकामना पूर्ण होगी.
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

