आरटीआई में अनदेखी के आरोपों के बाद जबलपुर एसपी से जवाब तलब

आरटीआई में अनदेखी के आरोपों के बाद जबलपुर एसपी से जवाब तलब

प्रेषित समय :20:26:57 PM / Mon, Sep 22nd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दायर की गई एक याचिका पर कार्रवाई न होने के मामले में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने जबलपुर पुलिस प्रशासन से जवाब तलब किया है. आयोग ने स्पष्ट कहा है कि पुलिस को इस मामले में जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी और यह बताना होगा कि 2022 से 2025 तक जिले में कार्यरत पुलिस अधीक्षकों ने किस अवधि में पद संभाला और उन्होंने इस मामले पर क्या रुख अपनाया.

मामला एक व्यक्ति द्वारा दर्ज की गई शिकायत से जुड़ा है. शिकायतकर्ता का आरोप है कि पुलिस थाने में उसके साथ मारपीट की गई थी. उसने अपने दावे की पुष्टि के लिए संबंधित थाने का सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने की मांग की थी. इस संबंध में उसने आरटीआई आवेदन दायर कियाए लेकिन तीन साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी उसे संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. मामले की गंभीरता को देखते हुए उसने राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया. सूचना आयोग ने जबलपुर पुलिस प्रशासन को कठोर शब्दों में चेताया है कि नागरिकों की सूचना पाने की संवैधानिक गारंटी की अवहेलना बर्दाश्त नहीं की जाएगी. आयोग ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय को यह भी निर्देश दिया है कि वह यह बताए कि 2022 से 2025 के बीच जिले में कितने पुलिस अधीक्षक नियुक्त हुए और किन.किन अधिकारियों ने इस प्रकरण में कोई जवाब क्यों नहीं दिया.

मामले की सुनवाई के दौरान आयोग ने पाया कि शिकायतकर्ता ने न केवल सीसीटीवी फुटेज की मांग की थी बल्कि संबंधित पुलिसकर्मियों की भूमिका और पूरे घटनाक्रम पर भी जानकारी चाही थी. हालांकिए पुलिस की ओर से न तो कोई रिकॉर्ड प्रस्तुत किया गया और न ही कोई ठोस उत्तर दिया गया. आयोग ने इसे गंभीर लापरवाही और पारदर्शिता के सिद्धांतों के खिलाफ माना है. जबलपुर में यह मामला चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि यह केवल एक व्यक्ति की शिकायत भर नहीं है बल्कि सूचना अधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर भी सवाल खड़ा करता है. नागरिकों का कहना है कि यदि पुलिस जैसे संस्थान सूचना छिपाने लगें तो आम जनता किस पर भरोसा करेगी. सूत्रों का कहना है कि आयोग ने पुलिस प्रशासन को अगली सुनवाई तक विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने को कहा है.

इसमें यह स्पष्ट करना होगा कि शिकायतकर्ता को फुटेज उपलब्ध कराने से क्यों रोका गया और इस अवधि में कितने पुलिस अधिकारी इस पद पर रहे जिन्होंने इस प्रकरण की अनदेखी की. शिकायतकर्ता ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उसका उद्देश्य सिर्फ न्याय पाना है. उसने कहा कि यदि उसके साथ मारपीट नहीं हुई थी तो पुलिस को सीसीटीवी फुटेज देने में क्या हर्ज है. उसके मुताबिक पारदर्शिता से ही यह साफ हो सकता है कि उस दिन थाने में क्या हुआ था. आरटीआई कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने इस प्रकरण पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि यह एक मिसाल है कि कैसे अधिकारी जवाबदेही से बचने की कोशिश करते हैं. यदि राज्य सूचना आयोग इस मामले में कठोर रुख अपनाता है तो यह अन्य विभागों और जिलों के लिए भी चेतावनी होगी कि सूचना का अधिकार केवल कागजों में नहींए बल्कि जमीनी स्तर पर भी लागू होना चाहिए. 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-