बॉर्डर सर्वे पर बवाल बंगाल-असम में खुफिया एजेंसियों की नजर, विपक्ष ने लगाया धार्मिक प्रोफाइलिंग का आरोप

बॉर्डर सर्वे पर बवाल बंगाल-असम में खुफिया एजेंसियों की नजर

प्रेषित समय :18:21:33 PM / Tue, Sep 23rd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

बांग्लादेश से सटी पश्चिम बंगाल और असम की सीमावर्ती आबादी पर खुफिया एजेंसियों की विशेष नजर है. इन इलाकों में जारी जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर केंद्रीय खुफिया इकाइयाँ चुपचाप सर्वे कर रही हैं. सूत्रों के मुताबिक यह अभ्यास मुख्यतः उन इलाकों पर केंद्रित है, जहां मुस्लिम आबादी अपेक्षाकृत अधिक है.

खुफिया एजेंसियों का दावा है कि यह सर्वे पूरी तरह “रूटीन प्रक्रिया” है और इसमें किसी तरह का राजनीतिक पक्ष नहीं है. एक इंटेलिजेंस ब्यूरो अधिकारी ने द टेलीग्राफ से कहा, “इसमें ज़्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं है. इस तरह के सर्वे पहले भी होते रहे हैं. इस बार उद्देश्य सिर्फ डेटा को अपडेट करना और यह देखना है कि कहीं कट्टरपंथी तत्व सीमा क्षेत्रों में सक्रिय तो नहीं हो रहे.”

राजनीतिक तूल

हालाँकि, यह सर्वे ऐसे समय हो रहा है जब पश्चिम बंगाल और असम दोनों ही राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. विपक्षी दलों ने इसे धार्मिक प्रोफाइलिंग और मुसलमानों को निशाना बनाने की कवायद बताया है. उनका आरोप है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस तरह के मुद्दों को चुनावी लाभ के लिए उछाल रही है.

चुनाव आयोग भी जल्द ही बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) कराने जा रहा है, जिसके तहत मतदाताओं से नागरिकता का सबूत माँगा जाएगा. विपक्ष ने इसे “मतदाता सूची में हेरफेर” की कवायद करार दिया है.

बीजेपी का नैरेटिव

बीजेपी लंबे समय से पश्चिम बंगाल में “घुसपैठ” और “जनसांख्यिकीय असंतुलन” का मुद्दा उठा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों ही कई बार कह चुके हैं कि बांग्लादेशी “अवैध प्रवासी” देश के संसाधनों पर दबाव डाल रहे हैं. मोदी ने हाल ही में कोलकाता दौरे पर कहा था कि “ममता बनर्जी सरकार वोट बैंक की राजनीति के लिए घुसपैठ को बढ़ावा देती है.”

बीजेपी का आरोप है कि सीमावर्ती जिलों में मतदाताओं की संख्या असामान्य रूप से बढ़ी है, और इसका फायदा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को मिल रहा है.

खुफिया रिपोर्टों के संकेत

गृह मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हाल के वर्षों में खुफिया रिपोर्टों में बंगाल की सीमा पर मस्जिदों और मदरसों की संख्या बढ़ने का ज़िक्र है. अधिकारियों का कहना है कि सर्वे का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि “धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए न हो.”

आलोचना और आशंका

लेकिन पूर्व आईबी अधिकारियों और विपक्षी नेताओं का कहना है कि इस सर्वे की टाइमिंग सवाल खड़े करती है. एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “अगर यह केवल सुरक्षा के लिहाज से है तो हिंदू बहुल इलाकों में क्यों नहीं हो रहा? यह कदम अल्पसंख्यकों में डर पैदा करेगा और उन्हें लगातार निगरानी में रहने का अहसास कराएगा.”

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की कवायद से धार्मिक ध्रुवीकरण तेज़ हो सकता है, खासकर तब जब बीजेपी पहले से ही नागरिकता संशोधन कानून (CAA), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और ‘घुसपैठ’ जैसे मुद्दों को अपने चुनावी अभियान का हिस्सा बना रही है.

पुराना विवाद

यह पहला मौका नहीं है जब सुरक्षा एजेंसियों पर धार्मिक प्रोफाइलिंग का आरोप लगा है. 2018 में राजस्थान के जैसलमेर में बीएसएफ की इंटेलिजेंस विंग ने सीमा इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ने और मस्जिदों की संख्या में वृद्धि का उल्लेख करते हुए गृह मंत्रालय को रिपोर्ट भेजी थी. उस समय भी इसे लेकर विवाद खड़ा हुआ था

फिलहाल खुफिया एजेंसियां इस सर्वे को “नियमित प्रक्रिया” बता रही हैं, लेकिन चुनावी मौसम में इसकी राजनीतिक गूंज तय मानी जा रही है. बंगाल और असम की सीमाओं पर जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर शुरू हुआ यह सर्वे आने वाले महीनों में न सिर्फ सुरक्षा विमर्श, बल्कि चुनावी राजनीति के केंद्र में भी रहने की संभावना है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-