लंदन/नई दिल्ली। सोशल मीडिया की दुनिया में दिखावे का दौर नया नहीं है, लेकिन अब यह एक नए स्तर पर पहुंच चुका है। लग्ज़री कारें—जैसे लैम्बॉर्गिनी, फेरारी और रोल्स-रॉयस—आजकल सड़कों पर तेज़ रफ्तार के लिए नहीं बल्कि इंस्टाग्राम पर लाइक्स बटोरने के लिए किराए पर ली जा रही हैं।कार रेंटल कंपनियों का कहना है कि उनके कई ग्राहक, जिनमें क्रिप्टो, गेमिंग या मॉडलिंग से अचानक पैसा कमाने वाले युवा शामिल हैं, लाखों रुपये केवल इसीलिए खर्च कर रहे हैं ताकि वे अमीरी का भ्रम पैदा कर सकें। अक्सर ये गाड़ियां पांच-सितारा होटलों के बाहर खड़ी कर दी जाती हैं ताकि इन्फ्लुएंसर वहां से उतरते हुए वीडियो शूट करा सकें और ऐसा लगे कि यह उनकी निजी कार है।दिलचस्प बात यह है कि कई इन्फ्लुएंसरों को गाड़ी चलानी भी नहीं आती। वे ड्राइवर हायर करते हैं और सिर्फ कैमरे के सामने कार से उतरने-चढ़ने का नाटक करते हैं।
सोशल मीडिया की दुनिया ने जिस तरह हमारी कल्पनाओं और जीवनशैली को बदल दिया है, वह किसी से छिपा नहीं है। आज लाखों लोग इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी जिंदगी को चमकदार और परफेक्ट दिखाने की कोशिश करते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में एक नया और चौंकाने वाला ट्रेंड सामने आया है—लक्ज़री सुपरकारें अब सड़कों पर रफ्तार पकड़ने के लिए नहीं, बल्कि इंस्टाग्राम पर लाइक्स बटोरने के लिए किराए पर ली जा रही हैं।
दिखावे का नया युग
रोल्स-रॉयस, लैम्बॉर्गिनी और फेरारी जैसी कारों का नाम सुनते ही आंखों के सामने तेज़ रफ्तार और इंजनों की गड़गड़ाहट का रोमांच आता है। लेकिन आजकल इन कारों का इस्तेमाल ज्यादातर कैमरे के सामने दिखावे के लिए हो रहा है। कई रेंटल कंपनियों ने बताया कि उनके ग्राहक—अक्सर युवा इन्फ्लुएंसर, मॉडल या क्रिप्टो/गेमिंग से पैसा कमाने वाले—भारी रकम केवल इसीलिए चुका रहे हैं ताकि वे सोशल मीडिया पर लग्ज़री लाइफस्टाइल का भ्रम पैदा कर सकें।
दिलचस्प बात यह है कि इनमें से बहुत से ग्राहकों को कार चलानी भी नहीं आती। वे ड्राइवर किराए पर रखते हैं और कैमरे के सामने केवल उतरने या बैठने का नाटक करते हैं। नतीजा यह होता है कि फॉलोअर्स के सामने तस्वीर कुछ और ही कहानी कहती है—मानो ये महंगी कारें उनकी खुद की हों।
उद्योग की तस्वीर बदलती हुई
स्टार लग्ज़री कार्स के मालिक आइक ऑर्डर बताते हैं, “एक दशक पहले मेरे ग्राहक असली कार प्रेमी हुआ करते थे। वे गाड़ियों की ताकत, उनके इंजनों की आवाज़ और ड्राइविंग के अनुभव का आनंद लेना चाहते थे। लेकिन अब सबकुछ बदल गया है। आज की प्राथमिकता है—परफेक्ट इंस्टाग्राम शॉट। हॉर्सपावर से ज्यादा फोटो पावर का महत्व बढ़ गया है।”
ऑर्डर ने कई मज़ेदार किस्से साझा किए। एक इन्फ्लुएंसर ने एक ही सफर के दौरान तीन बार कपड़े बदले ताकि वीडियो देखकर लगे कि ये अलग-अलग दिनों में शूट किए गए हैं। वहीं एक अन्य ग्राहक ने होटल के बाहर फेरारी पार्क करवाई और कहा कि चाबी वहीं छोड़ दी जाए ताकि वह खुद कार में बैठते हुए वीडियो शूट कर सके।
ऑर्डर का मानना है, “कभी-कभी लग्ज़री का भ्रम ही असली अनुभव जितना ताकतवर होता है। यह थिएटर की तरह है, जहां कारें महज मंच की प्रॉप बन गई हैं।”
सोशल मीडिया और ‘परफेक्ट इमेज’ की भूख
आज की पीढ़ी के लिए सोशल मीडिया पर छवि बनाना लगभग उतना ही अहम है जितना असल जिंदगी में अनुभव। इंस्टाग्राम पर पोज़ देते हुए खींची गई तस्वीर या कुछ सेकंड का रील वीडियो हज़ारों लाइक्स और शेयर ला सकता है। इससे न केवल फॉलोअर्स बढ़ते हैं बल्कि ब्रांड डील्स और स्पॉन्सरशिप के मौके भी आते हैं।
यही वजह है कि कई युवा महंगी कारें किराए पर लेकर केवल इसीलिए घूमते हैं ताकि उनके वीडियो और तस्वीरें अधिक से अधिक ‘एंगेजमेंट’ खींच सकें। ऑर्डर बताते हैं, “हमारे पास 21 साल के ग्राहक आते हैं जो उन कारों को किराए पर लेते हैं जिन्हें वे खुद बीमा तक नहीं करा सकते। पूरा वीकेंड वे फोटोग्राफरों के साथ शहर की गलियों में घूमते रहते हैं। उनके लिए इंजन की गड़गड़ाहट से ज्यादा अहमियत है इंस्टाग्राम पर एंगेजमेंट की।”
दिखावे का बदलता स्वरूप
पहले जहां तेज़ आवाज़ और चमचमाते रंगों वाली सुपरकारें ट्रेंड में रहती थीं, वहीं अब ग्राहक ‘क्वायट लग्ज़री’ को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। रोल्स-रॉयस जैसी गाड़ियां, जो शांति और रईसी का अहसास कराती हैं, आजकल अधिक मांग में हैं। यह बदलाव इस ओर इशारा करता है कि अब इन्फ्लुएंसर केवल ध्यान खींचना नहीं चाहते, बल्कि वे एक ‘अंडरस्टेटेड कॉन्फिडेंस’ का प्रदर्शन करना चाहते हैं।
भारतीय संदर्भ में ट्रेंड
भारत भी इस ट्रेंड से अछूता नहीं है। दिल्ली-एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में सुपरकार रेंटल सर्विस तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कई कंपनियां 24 घंटे के लिए 1–3 लाख रुपये तक की फीस लेकर लैम्बॉर्गिनी, पोर्शे या रोल्स-रॉयस किराए पर देती हैं। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, यूट्यूबर और शादी-ब्याह आयोजक ऐसे ग्राहक होते हैं जो केवल कुछ तस्वीरें और वीडियो शूट कराने के लिए इतनी बड़ी रकम खर्च करने को तैयार रहते हैं।
गुरुग्राम के एक रेंटल सर्विस संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हमारे 60% ग्राहक असल में कार ड्राइविंग का मज़ा लेने नहीं आते। वे शूटिंग टीम के साथ आते हैं, गाड़ी के चारों तरफ कैमरे लगवाते हैं और पोज़ देकर वीडियो शूट कर लेते हैं। कभी-कभी तो गाड़ी चलाए बिना ही पूरा कंटेंट बना लेते हैं।”
मुंबई में भी यह ट्रेंड खासकर फिल्मी हस्तियों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों के बीच लोकप्रिय है। यहां अक्सर सुपरकारें पांच सितारा होटलों और बांद्रा-जुहू जैसे इलाकों में खड़ी दिखाई देती हैं ताकि कैमरे में सही पृष्ठभूमि मिल सके।
अर्थशास्त्र और सामाजिक प्रभाव
इस ट्रेंड के कई आर्थिक और सामाजिक निहितार्थ हैं।
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आर्थिक अवसर – सुपरकार रेंटल कंपनियों का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। सोशल मीडिया ने उनके ग्राहक वर्ग को पेट्रोलहेड्स से हटाकर इन्फ्लुएंसर और शादियों तक फैला दिया है।
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दिखावे की संस्कृति – यह ट्रेंड इस बात को और मजबूत करता है कि सोशल मीडिया पर छवि असलियत से कहीं अधिक मायने रखती है। युवा पीढ़ी वास्तविक अनुभवों से ज्यादा ‘ऑनलाइन वर्ज़न’ पर निवेश कर रही है।
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जोखिम और दबाव – लाइक्स और फॉलोअर्स की दौड़ में कई युवा अपनी क्षमता से अधिक खर्च कर रहे हैं। कर्ज में डूबने या आर्थिक दबाव में आने का खतरा भी बढ़ रहा है।
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सामाजिक तुलना – जब लगातार ऐसे वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिखते हैं, तो दूसरे युवाओं पर भी वैसी ही जीवनशैली अपनाने का दबाव बढ़ता है, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
मनोवैज्ञानिक पहलू
मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि यह ट्रेंड ‘सोशल मीडिया वैलिडेशन’ की भूख से जुड़ा है। लोग लाइक्स, कमेंट्स और फॉलोअर्स को अपनी आत्म-छवि से जोड़ लेते हैं। नतीजा यह होता है कि वे दिखावे में भारी निवेश करते हैं—even अगर असल जिंदगी में वह लाइफस्टाइल उनकी नहीं है।
‘थिएटर ऑफ लग्ज़री’
ऑर्डर की बात सही लगती है—“लग्ज़री का भ्रम भी असली अनुभव जितना ताकतवर हो सकता है।” असल में अब कारें महज प्रॉप बन चुकी हैं। एक अच्छी पृष्ठभूमि, महंगी कार और सही एंगल से ली गई तस्वीर डिजिटल दौर की ‘थिएटर ऑफ लग्ज़री’ का हिस्सा है।
क्या यह टिकाऊ है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह ट्रेंड अभी और बढ़ेगा। जब तक सोशल मीडिया पर छवि और प्रभाव को आर्थिक रूप में बदला जा सकता है—ब्रांड डील्स, स्पॉन्सरशिप और पेड कंटेंट के जरिए—लोग इसमें निवेश करते रहेंगे। हालांकि, लंबे समय में यह दिखावे की संस्कृति युवाओं को वास्तविक अनुभवों से दूर कर सकती है।
आज का दौर ‘अनुभव से ज्यादा भ्रम’ का है। रोल्स-रॉयस और फेरारी जैसी गाड़ियां, जो कभी रफ्तार और इंजीनियरिंग के रोमांच का प्रतीक थीं, अब सोशल मीडिया पर लाइक्स और फॉलोअर्स जुटाने का जरिया बन चुकी हैं। दिल्ली से लेकर लंदन तक, गाड़ियों के इंजन अब सिर्फ पृष्ठभूमि हैं—मुख्य भूमिका निभा रहा है कैमरे का फ्रेम।
सोशल मीडिया ने कारों को सड़क से ज्यादा स्टेज पर ला खड़ा किया है, जहां एक परफेक्ट इंस्टाग्राम शॉट ही असली दौलत और शोहरत का टिकट बन गया है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

