परिवार में बेटे के जन्म की खुशी किसी बड़े उत्सव से कम नहीं होती। जन्म के समय मिठाइयां बांटी जाती हैं, पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ जाती है और सभी सदस्यों के हृदय में आशा जगती है कि यह बच्चा बड़ा होकर परिवार का नाम रोशन करेगा। अक्सर देखा गया है कि बेटे के जन्म के बाद परिवार की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्थिति सुधरती है। माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य बच्चे की परवरिश और शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हैं। प्रत्येक माता-पिता का सपना होता है कि उनका पुत्र बड़ा होकर सम्मान और प्रतिष्ठा पाए, उच्च पद पर पहुंचे, उद्योगपति या व्यापारी बने और परिवार का भरण-पोषण सुनिश्चित करे।
लेकिन ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे योग और ग्रह स्थिति बताए गए हैं, जिनकी उपस्थिति से पिता-पुत्र संबंध प्रभावित हो सकते हैं। कभी-कभी किसी परिवार में बेटे के जन्म के बाद आर्थिक और सामाजिक परेशानियाँ बढ़ जाती हैं। कुछ मामलों में बच्चा कमजोर पैदा होता है और इलाज पर भारी धन और समय खर्च होता है। कभी पिता और पुत्र के बीच तनावपूर्ण या शत्रुतापूर्ण संबंध बन जाते हैं। पिता के रहते पुत्र उन्नति नहीं कर पाता, या पुत्र के जन्म के बाद पिता की तरक्की रुक जाती है।
शनि और सूर्य का पिता-पुत्र संबंध में महत्व
ज्योतिष के अनुसार, शनि को सूर्य का पुत्र कहा जाता है, लेकिन दोनों के बीच शत्रुता रहती है। जन्मकुंडली में शनि जिस स्थान पर होता है, वह अपनी पूर्ण दृष्टि से पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी, सातवीं, आठवीं, दसवीं, बारहवीं और अपनी ही राशि मकर और कुंभ को देखता है। यदि शनि इन दृष्टियों में सूर्य के संपर्क या युति में आता है, या गोचर में सूर्य के प्रभाव में आता है, तो पिता-पुत्र संबंधों पर इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
ज्योतिष में कई उदाहरण हैं, जो इस प्रभाव को दर्शाते हैं:
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वृश्चिक लग्न: ग्यारहवें घर में सूर्य और शनि की स्थिति। पुत्र के जन्म के समय पिता को भयंकर दरिद्रता झेलनी पड़ी। व्यापार दिवालिया हुआ और सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त हो गई।
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कुम्भ लग्न: सूर्य मेष राशि में तृतीय स्थान पर और शनि तुला राशि में नवम स्थान पर। दोनों ग्रह सप्तम दृष्टि से एक-दूसरे को देख रहे हैं। बालक के जन्म से पिता दिवालिया हो गए।
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मेष लग्न: सूर्य मकर राशि में दशम स्थान पर और शनि धनु राशि में नवम स्थान पर। बालक के जन्म के बाद पिता को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा।
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मकर लग्न: सूर्य वृश्चिक राशि में ग्यारहवें स्थान पर और शनि तुला राशि में दसवें स्थान पर। पुत्र डाक्टर होने के बावजूद प्रैक्टिस में सफल नहीं हुए, लेकिन पिता के स्वर्गवास के बाद पुत्र ने सफलता प्राप्त की।
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धनु लग्न: सूर्य और शनि लग्न में। पुत्र बहुत बुद्धिमान वकील थे, लेकिन पिता के रहते प्रैक्टिस नहीं चली। अन्य शहर में जाकर प्रैक्टिस करने पर सफलता, सम्मान और धन मिला।
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मेष लग्न: सूर्य पंचम स्थान पर और शनि कर्क राशि में चतुर्थ स्थान पर। दो पुत्र हुए, लेकिन सुख नहीं मिला। व्यवसाय और आर्थिक हानि हुई।
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मेष लग्न: पंचम घर में सूर्य और शनि की युति। पुत्र के जन्म के तुरंत बाद पिता को दिवालियापन झेलना पड़ा।
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मेष लग्न: सूर्य मिथुन राशि में तृतीय स्थान पर और शनि तुला राशि में सप्तम स्थान पर। पुत्र के जन्म के बाद पिता की स्थिति क्रमशः बिगड़ी।
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मकर लग्न: सूर्य कुंभ राशि में द्वितीय स्थान पर और शनि वृश्चिक में ग्यारहवें स्थान पर। पिता और माता दोनों को अत्यधिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी।
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वृषभ लग्न: शनि मिथुन राशि में द्वितीय स्थान पर और सूर्य कन्या राशि में पंचम स्थान पर। पिता और पुत्र दोनों को आर्थिक हानि और जीवन में कठिनाइयाँ आईं।
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि जन्म कुंडली में शनि और सूर्य की युति या दृष्टि पिता-पुत्र संबंध और परिवार की आर्थिक स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि पुत्र का जन्म दुर्भाग्य लेकर आता है, बल्कि कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनके योग पिता और पुत्र दोनों के जीवन पर असर डाल सकते हैं।
विशेषज्ञ ज्योतिषियों का मानना है कि ऐसे योग वाले परिवारों में सही समय पर उपाय, पूजा और उचित निर्णय लेने से पिता-पुत्र संबंध संतुलित बनाए जा सकते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक प्रबंधन पर ध्यान देने से परिवार में सहयोग और समझदारी बढ़ती है।
बेटे का जन्म हर परिवार के लिए सौभाग्य और खुशी का प्रतीक होता है। फिर भी, ज्योतिष शास्त्र में कुछ विशेष योग पिता-पुत्र संबंध और परिवार की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं। इन योगों की पहचान करके और उचित उपाय अपनाकर परिवार में संतुलन, सुख-शांति और समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

