आरज़ू, लूणकरणसर, बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील के नाथवाना गांव में रहने वाली 27 वर्षीय रेणु की कहानी ग्रामीण महिलाओं के संघर्ष और आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देती है। गरीब किसान परिवार में जन्मी रेणु ने बचपन से ही कठिनाइयों का सामना किया। पिता की चिंता और गांव में बेटी को बोझ समझा जाना उसकी जिंदगी की शुरुआती चुनौतियां थीं। उसके नाना-नानी ने उसे अपने पास रखकर उसकी देखभाल की और उसे पढ़ाई की ओर प्रेरित किया।
रेणु पढ़ाई में तेज थी, लेकिन पंद्रह साल की उम्र में उसका विवाह कर दिया गया। ससुराल में उसे हर कदम पर बंदिशों का सामना करना पड़ा, पर उसका मन कभी कैद में नहीं रहा। सिलाई में रुचि रखने वाली रेणु ने घर के पुरुषों के खेत में जाने के बाद पुराने सिलाई मशीन पर अभ्यास करना शुरू किया। उसकी मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे गांव की महिलाएं उसके पास अपने कपड़े सिलवाने आने लगीं।
अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए उसने चुपचाप बीकानेर में ब्यूटी पार्लर का कोर्स किया और परीक्षा में टॉप किया। प्रशिक्षकों ने उसकी कला की सराहना की, लेकिन गांव लौटने पर ससुराल वालों ने उसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि ब्यूटी पार्लर खोलना औरत की इज्जत के खिलाफ है।
रेणु ने हार नहीं मानी। उसने घर के छोटे से कोने में अपनी सिलाई मशीन रखी और गांव की लड़कियों को कपड़े सिलना सिखाना शुरू किया। वह उन्हें समझाती है, “कौशल कोई पाप नहीं, मेहनत से ही इज्जत बनती है।” अब वह अपनी कमाई से घर के खर्चों में मदद करती है और उसका सपना है कि एक दिन उसका अपना ब्यूटी पार्लर खुले, जिसमें वह खुद काम करे और गांव की औरतों को रोजगार सिखाए।
रेणु की कहानी केवल एक महिला की नहीं, बल्कि उन हज़ारों महिलाओं की आवाज़ है जो समाज की परंपराओं की दीवारों को पार करके अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए शिक्षा और आत्मनिर्भरता तक पहुँचने का रास्ता कठिन है। उनके सपनों को अक्सर “शौक” समझा जाता है, जबकि यह उनका हक है।
लेकिन रेणु जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि असली बदलाव कभी बड़े शहरों से नहीं, बल्कि मिट्टी के घरों में बैठी, मेहनत और हिम्मत वाली महिलाओं से आता है। उसकी सुई और सिलाई मशीन केवल कपड़े नहीं, बल्कि उसकी ज़िंदगी के टुकड़े जोड़ते हैं, और यह दिखाते हैं कि मेहनत और हौसले से कोई भी महिला अपने सपनों को साकार कर सकती है।
आज रेणु का सपना अधूरा है, लेकिन उसकी कोशिशें जारी हैं। गांव की लड़कियाँ उससे सीख रही हैं और अपनी बेटियों को भी उसकी तरह बनने की प्रेरणा दे रही हैं। यही असली जीत है – जब एक महिला की कहानी दूसरों की हिम्मत बन जाती है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

