जामखेड़ की ‘गरीबाची शाळा’ ने सबको किया हैरान समाजसेवी सिद्धेश लोकरे ने देखी प्रतिभा से भरी स्कूल की दुनिया

जामखेड़ की ‘गरीबाची शाळा’ ने सबको किया हैरान समाजसेवी सिद्धेश लोकरे ने देखी प्रतिभा से भरी स्कूल की दुनिया

प्रेषित समय :19:49:45 PM / Wed, Oct 8th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

महाराष्ट्र के जामखेड़ में स्थित एक छोटी-सी ज़िला परिषद स्कूल इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा का केंद्र बनी हुई है. समाजसेवी और इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर सिद्धेश लोकरे जब अपनी राज्यव्यापी स्कूटी यात्रा पर इस स्कूल पहुँचे, तो वहां का नज़ारा देखकर हैरान रह गए. बाहरी तौर पर यह एक साधारण ग्रामीण स्कूल लगती थी, लेकिन अंदर कदम रखते ही उन्होंने देखा कि यह ‘गरीबाची शाळा’ वास्तव में प्रतिभा और नवाचार का प्रतीक है. दीवारें बोलती हैं, दरवाज़े सपनों को आकार देते हैं, और बच्चे विज्ञान से लेकर समाज तक हर विषय को रचनात्मक ढंग से सीख रहे हैं.

सिद्धेश लोकरे का यह दौरा दरअसल उनके एक बड़े मिशन का हिस्सा है. वे महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों का दौरा कर रहे हैं ताकि ऐसी संघर्षरत स्कूलों की वास्तविक स्थिति लोगों तक पहुँचा सकें और साथ ही बच्चों के लिए बेहतर सुविधाएँ जुटा सकें. उनका लक्ष्य है—तीन करोड़ रुपये जुटाकर 30 ऐसी स्कूलों का कायाकल्प करना, जहाँ आज भी बच्चों के पास साफ पीने का पानी, शौचालय और बुनियादी ढाँचे की कमी है. सिद्धेश कहते हैं, “मैं चाहता हूँ कि हर बच्चा एक सुरक्षित और प्रेरणादायक वातावरण में पढ़ सके. शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, यह अनुभव और आत्मविश्वास से जुड़ी होनी चाहिए.”

अपनी इस यात्रा के दौरान सिद्धेश जब जामखेड़ के धनगर वस्ती पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ की ‘गरीबाची शाळा’ देखी. पहली नज़र में यह एक सामान्य सरकारी स्कूल लगी, लेकिन भीतर का दृश्य किसी प्रेरक प्रदर्शनी से कम नहीं था. स्कूल की दीवारों पर विज्ञान, इतिहास और जीव विज्ञान के रंगीन चित्र बने हुए थे — इंसान के विकास की कहानी, पारिस्थितिकी तंत्र और ब्रह्मांड की झलक बच्चों की नज़रों में जिज्ञासा भर रही थी. कक्षाओं के दरवाज़ों को रॉकेट और जहाज़ों की तरह रंगा गया था, ताकि बच्चे कल्पनाओं में उड़ान भर सकें.

इस अद्भुत परिवर्तन के पीछे हैं बोराटे सर, जो पिछले ढाई साल से एक भी दिन छुट्टी नहीं ले पाए — और यह उनकी मजबूरी नहीं, बल्कि समर्पण का प्रतीक है. वे कहते हैं, “स्कूल से दूर रहना ठीक नहीं लगता. हर दिन बच्चों के साथ कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है.” उनकी शिक्षण शैली पारंपरिक तरीकों से अलग है. वे चाहते हैं कि बच्चे केवल याद न करें, बल्कि सीखी हुई चीज़ों को जीवन में लागू करें. यही कारण है कि उनके छात्र न केवल पढ़ाई में उत्कृष्ट हैं, बल्कि सामाजिक व्यवहार, सहयोग और संवेदनशीलता में भी आगे हैं.

सिद्धेश लोकरे जब इस स्कूल पहुँचे तो उन्होंने वहाँ के बच्चों से बातचीत की और उनकी प्रतिभा को देखकर भावुक हो उठे. उन्होंने सोशल मीडिया पर इस स्कूल का वीडियो साझा करते हुए लिखा कि “यह स्कूल भले ही संसाधनों में गरीब हो, लेकिन यहाँ के बच्चों के सपने और शिक्षकों का समर्पण किसी महंगे संस्थान से कम नहीं.” उनके इस पोस्ट ने हजारों लोगों का ध्यान खींचा और ग्रामीण शिक्षा में हो रहे सकारात्मक बदलावों पर नई बहस छेड़ दी.

सिद्धेश की यह यात्रा केवल एक सोशल मीडिया अभियान नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बनती जा रही है. उनका उद्देश्य है महाराष्ट्र के सुदूर इलाकों में शिक्षा का उजाला पहुँचाना, जहाँ अब भी बच्चे बिना डेस्क, बिना शौचालय और कभी-कभी बिना छत के पढ़ने को मजबूर हैं. वे अपने वीडियो और पोस्ट के ज़रिए ऐसे प्रेरक उदाहरण देशभर के युवाओं तक पहुँचा रहे हैं, ताकि वे भी समाज सुधार में भाग लें.

आज जब शिक्षा व्यवस्था को लेकर निराशा की खबरें आम हैं, तब ‘गरीबाची शाळा’ जैसी कहानियाँ यह भरोसा दिलाती हैं कि बदलाव संभव है. यह सिर्फ सरकारी योजनाओं या बड़ी फंडिंग से नहीं, बल्कि एक शिक्षक के समर्पण और एक समाजसेवी के प्रयास से भी हो सकता है.

सिद्धेश लोकरे की स्कूटी यात्रा महाराष्ट्र के अलग-अलग ज़िलों में उम्मीद की लकीर खींच रही है. वे जहाँ-जहाँ जाते हैं, वहाँ बच्चों और शिक्षकों के साथ बैठते हैं, उनकी ज़रूरतें समझते हैं और जनता से मदद की अपील करते हैं. उनका संदेश साफ है — शिक्षा एक अधिकार है, सुविधा नहीं.

जामखेड़ की यह ‘गरीबाची शाळा’ अब केवल एक स्कूल नहीं रही, बल्कि यह एक प्रतीक बन चुकी है उस भारत की, जहाँ सीमित साधनों के बीच भी सपने बड़े हैं और हौसले बुलंद हैं.

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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-