हानिकारक सब्सिडियों पर खर्च ज़्यादा, छोटे किसानों को जलवायु अनुकूलन के लिए मदद नाम मात्र

हानिकारक सब्सिडियों पर खर्च ज़्यादा, छोटे किसानों को जलवायु अनुकूलन के लिए मदद नाम मात्र

प्रेषित समय :19:33:38 PM / Thu, Oct 23rd, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. एक नए वैश्विक विश्लेषण से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि दुनिया भर की सरकारें हर साल हानिकारक कृषि सब्सिडियों पर जितना पैसा खर्च कर रही हैं, वह राशि छोटे किसानों को जलवायु परिवर्तन से अनुकूलन (Adaptation) के लिए जरूरी वार्षिक लागत से भी अधिक है। यह विरोधाभास दिखाता है कि दुनिया की प्राथमिकताएँ कहाँ टिकी हैं, जबकि छोटे किसान, जो वैश्विक खाद्य कैलोरी का आधे से अधिक उत्पादन करते हैं, जलवायु संकट की सबसे भीषण मार झेल रहे हैं।

क्लाइमेट फोकस (Climate Focus) द्वारा फैमिली फार्मर्स फॉर क्लाइमेट एक्शन (Family Farmers for Climate Action) नामक एक नए वैश्विक गठबंधन के लिए किए गए शोध के अनुसार, दुनिया के छोटे किसानों को जलवायु प्रभावों से अपने खेतों को बचाने के लिए सालाना 443 बिलियन डॉलर की जरूरत है। इसके मुकाबले, हर साल 470 बिलियन डॉलर ऐसी कृषि सब्सिडियों पर खर्च हो रहे हैं, जो न तो किसानों के लिए टिकाऊ हैं और न ही पर्यावरण के लिए। यह गठबंधन अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया और पैसिफ़िक के 95 मिलियन छोटे किसानों की सामूहिक आवाज़ का प्रतिनिधित्व करता है।

जरूरत और हकीकत में बड़ा अंतर

रिपोर्ट बताती है कि 10 हेक्टेयर या उससे कम जमीन वाले किसानों को अपने खेतों को जलवायु अनुकूल बनाने के लिए औसतन प्रति हेक्टेयर $952 सालाना, या लगभग प्रतिदिन $2.19 खर्च करने होंगे। यह कुल मिलाकर प्रति वर्ष 443 बिलियन डॉलर की जरूरत बनती है।

लेकिन हकीकत इससे बहुत दूर है। 2021 में, छोटे किसानों के लिए वैश्विक अनुकूलन फाइनेंस (Global Adaptation Finance) केवल 1.59 बिलियन डॉलर रहा, जो उनकी कुल ज़रूरत का सिर्फ 0.36% है।

इसके विपरीत, छोटे किसान अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पहले से ही भारी कीमत चुका रहे हैं। वे अपनी आय का 20–40% अनुकूलन उपायों पर खर्च कर रहे हैं, जो कुल मिलाकर लगभग 368 बिलियन डॉलर सालाना होता है। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि किसान अपने दम पर जलवायु संकट का मुकाबला कर रहे हैं, जबकि वैश्विक सहायता ऊँगली भर है।

"यह दान नहीं, बल्कि निवेश है"

पूर्वी अफ्रीका किसान संघ (EAFF) की अध्यक्ष एलिज़ाबेथ न्सिमादाला ने इस स्थिति पर जोर देते हुए कहा, “यह कोई दान नहीं, बल्कि निवेश है – यह पूरी दुनिया की खाद्य सुरक्षा में निवेश है। छोटे किसान आधी दुनिया का खाना उगाते हैं, 2.5 अरब लोगों की रोज़ी उनसे जुड़ी है, और चावल, गेहूं, कोको और कॉफ़ी जैसी वैश्विक फसलों की रीढ़ भी वही हैं।”

दक्षिण ब्राज़ील के एग्रोफॉरेस्ट्री किसान थालेस मेंडोन्सा ने तर्क दिया कि छोटे किसानों में निवेश केवल आर्थिक नहीं, बल्कि एक पारिस्थितिक ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि किसान एग्रोइकोलॉजी जैसी प्रणालियाँ अपना रहे हैं जो मिट्टी, जल स्रोतों, और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से जीवित कर रही हैं। उन्हें बस इतना चाहिए कि दुनिया इस प्रयास को विस्तार देने में साथ दे।

COP30 में अनुकूलन पर होगा ज़ोर

यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब ब्राज़ील में होने वाले COP30 जलवायु सम्मेलन में अनुकूलन (Adaptation) को चर्चा का केंद्र बनाया जा रहा है। सम्मेलन में “ग्लोबल गोल ऑन एडेप्टेशन” को मापने के लिए संकेतकों (indicators) पर निर्णय लिया जाना है, लेकिन अभी तक छोटे किसानों के लिए फाइनेंस फ्लो को मापने का कोई सूचक शामिल नहीं किया गया है। साथ ही, अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि विकसित देश 2025 तक अनुकूलन फाइनेंस को दोगुना कर 38–40 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का अपना वादा पूरा करेंगे या नहीं।

एशियाई किसान संघ (AFA) की महासचिव एस्थर पेनुनिया ने सीधे सरकारों से एडेप्टेशन फाइनेंस में बड़ा इज़ाफ़ा करने की माँग की। उन्होंने कहा कि सूखा, बाढ़, और लू जैसी आपदाओं से खेत तबाह हो रहे हैं, और अगर वित्त सीधे किसानों और उनकी संगठनों तक पहुँचे, तो असर सबसे तेज़ और गहरा होगा। उन्होंने एक नया “फार्मर्स रेजिलिएंसी फंड” बनाने का भी प्रस्ताव दिया, जिसका संचालन खुद किसान संगठनों के हाथ में हो।

यह रिपोर्ट एक सीधा और तीखा सवाल उठाती है: अगर दुनिया हर साल 470 बिलियन डॉलर हानिकारक सब्सिडियों पर खर्च कर सकती है, तो फिर 443 बिलियन डॉलर छोटे किसानों की जलवायु सुरक्षा के लिए क्यों नहीं? ये वही किसान हैं जो दुनिया की आधी भूख मिटाते हैं और अब उसी धरती के बदलते मौसम से सबसे पहले और सबसे ज़्यादा लड़ रहे हैं।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-