जबलपुर. मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों और विशेष रूप से स्कूली शिक्षकों के लिए लागू की गई ई-अटेंडेंस प्रणाली ने आज जबलपुर में एक बड़ा सामाजिक और कानूनी विवाद खड़ा कर दिया है. सरकार की नई तकनीकी पहल, जिसके तहत कर्मचारियों को अपने निजी मोबाइल फोन के माध्यम से हाजिरी लगाना अनिवार्य किया गया है, को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. यह मामला अभी अदालत में लंबित है, लेकिन इसी बीच जबलपुर की एक शिक्षिका का इस प्रणाली के विरोध में दिया गया जवाब सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया है, जिसने पूरे शिक्षा विभाग में हलचल मचा दी है और सार्वजनिक बहस छेड़ दी है.
यह मामला जबलपुर के महाराजपुर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से जुड़ा है. यहाँ की शिक्षिका ज्योति पांडे को प्राचार्य द्वारा ई-अटेंडेंस न लगाने के लिए नोटिस जारी किया गया था. शिक्षिका ने इस नोटिस का जो लिखित जवाब दिया, वह न केवल बोल्ड था बल्कि उसने एक व्यापक संवैधानिक प्रश्न को भी हवा दे दी. ज्योति पांडे ने स्पष्ट रूप से कहा है, "मोबाइल पर्सनल है, इससे अटेंडेंस नहीं लगाऊंगी." उन्होंने अपने इस इनकार का आधार निजता (प्राइवेसी) के अधिकार को बनाया है. शिक्षिका का तर्क है कि राज्य सरकार या विभाग उन्हें अपने निजी स्वामित्व वाले उपकरण का उपयोग सरकारी कार्य के लिए करने हेतु बाध्य नहीं कर सकता, खासकर जब यह व्यक्तिगत डेटा और बायोमेट्रिक या स्थान-आधारित जानकारी से जुड़ा हो. यह जवाब शिक्षकों और कर्मचारियों के बीच व्यापक रूप से साझा किया जा रहा है, जो इसे सरकारी आदेशों के खिलाफ कर्मचारियों के अधिकारों की लड़ाई के रूप में देख रहे हैं.
मामले की गंभीरता को तब और बल मिला, जब शिक्षिका ने अपने जवाब में यह भी दावा किया कि उन्हें विभाग द्वारा टैबलेट खरीदने के लिए दस हजार रुपये की राशि पूर्व में ही मिल चुकी है. उनका इशारा इस ओर है कि जब सरकार ने तकनीकी उपकरण खरीदने के लिए राशि प्रदान की है, तो फिर उन्हें निजी मोबाइल का उपयोग करने के लिए क्यों बाध्य किया जा रहा है. यह बिंदु सरकारी कार्य संस्कृति और संसाधनों के आवंटन पर गंभीर सवाल उठाता है. कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग यह तर्क दे रहा है कि यदि अटेंडेंस सिस्टम अनिवार्य है, तो विभाग को या तो इसके लिए सरकारी टैबलेट/स्मार्टफोन उपलब्ध कराने चाहिए, या फिर निजी मोबाइल के उपयोग के एवज में उन्हें मासिक भत्ता देना चाहिए.
सोशल मीडिया पर यह एक्सक्लूसिव खबर तेजी से ट्रेंड कर रही है. आम जनता और बुद्धिजीवी वर्ग इस पर बहस कर रहा है कि क्या सरकार व्यक्तिगत उपकरणों पर हाजिरी या बायोमेट्रिक डेटा लेने के लिए दबाव डाल सकती है. निजता का अधिकार, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक मौलिक अधिकार बन चुका है, इस बहस के केंद्र में है. कर्मचारियों का कहना है कि मोबाइल अटेंडेंस के माध्यम से उनका स्थान (Location) और कार्य के घंटों के बाहर की गतिविधि भी अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की निगरानी में आ सकती है, जो उनकी निजता का उल्लंघन है.
इस पूरे विवाद के बीच, जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) ने स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है. डीईओ ने जोर देकर कहा है कि शिक्षकों द्वारा ई-अटेंडेंस लगाना अनिवार्य है और यह प्रणाली शैक्षिक व्यवस्था में पारदर्शिता और समय की पाबंदी सुनिश्चित करने के लिए लागू की गई है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हालांकि संचार के लिए व्हाट्सएप नोटिस का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन प्रशासनिक प्रक्रियाओं के तहत शिक्षक को नोटिस की फिजिकल कॉपी देना भी आवश्यक है. यह बयान दिखाता है कि विभाग इस अटेंडेंस प्रणाली को वापस लेने के मूड में नहीं है, लेकिन साथ ही प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन करने की बात कहकर मामले को शांत करने की कोशिश कर रहा है.
इस मामले ने न सिर्फ जबलपुर बल्कि पूरे मध्य प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों को एक मंच पर ला दिया है. कर्मचारी यूनियनों का मानना है कि ई-अटेंडेंस का विरोध महज हाजिरी लगाने का विरोध नहीं है, बल्कि यह कर्मचारियों के सम्मान, निजता और कार्य की गरिमा को बनाए रखने की लड़ाई है. वे चाहते हैं कि या तो सरकार इस प्रणाली के लिए आवश्यक उपकरण और डेटा भत्ता प्रदान करे, या फिर इसे स्वैच्छिक बनाए. हाई कोर्ट में दी गई चुनौती और शिक्षिका का यह वायरल जवाब, सरकारी तंत्र और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच बढ़ती खाई को उजागर करता है, और यह तय है कि इस मामले का अंतिम फैसला राज्य भर की शिक्षा व्यवस्था और सरकारी कर्मचारियों की कार्यशैली पर दूरगामी प्रभाव डालेगा. पूरे प्रदेश की नजरें अब हाई कोर्ट के अगले कदम और शिक्षा विभाग की आगामी कार्रवाई पर टिकी हुई हैं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

