सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर सवाल, परिवार के वकील ने महत्वपूर्ण दस्तावेज़ छिपाने का लगाया आरोप

सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर सवाल

प्रेषित समय :21:29:35 PM / Fri, Oct 24th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

मुंबई. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत को लगभग पाँच साल बीत जाने के बाद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की क्लोजर रिपोर्ट पर उनके परिवार की ओर से फिर से गंभीर सवाल उठाए गए हैं. परिवार के वकील, एडवोकेट वरुण सिंह ने दावा किया है कि एजेंसी ने जो रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की है, वह न केवल अधूरी और अनिर्णायक है, बल्कि इसमें जानबूझकर कई महत्वपूर्ण दस्तावेजों को रोका गया है, जिससे उनके निष्कर्षों को कानूनी चुनौती देना असंभव हो गया है.

सीबीआई ने मार्च 2025 में यह क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें रिया चक्रवर्ती और एफआईआर में नामित अन्य आरोपियों को क्लीन चिट दी गई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जो यह दर्शाता हो कि राजपूत को कैद किया गया, धमकाया गया, या उनके साथ कोई आपराधिक गतिविधि की गई हो. लेकिन, एडवोकेट सिंह के अनुसार, एजेंसी की यह प्रस्तुति बेहद त्रुटिपूर्ण है. उनका कहना है कि पटना कोर्ट द्वारा सीबीआई को दस्तावेज़ मुहैया कराने के लिए छह बार आदेश दिए जाने के बावजूद, रिपोर्ट के साथ संलग्न होने वाले कई महत्वपूर्ण अनुलग्नक (annexures) और अन्य साक्ष्य सामग्री साझा नहीं की गई हैं.

एडवोकेट सिंह ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई को बताया, "हम निश्चित रूप से कोर्ट में अपील करना चाहते हैं, लेकिन अभी सबसे बड़ी बाधा यही है कि हमें क्लोजर रिपोर्ट के साथ संलग्न दस्तावेजों का पूरा सेट नहीं मिला है. पूरी रिपोर्ट और अनुलग्नकों तक पहुँच के बिना हमारे लिए विरोध याचिका (Protest Petition) दाखिल करना असंभव है." उन्होंने समझाया कि कानून के तहत, एक विरोध याचिका शिकायतकर्ता का स्वतंत्र अधिकार होता है, जिसके माध्यम से वह क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती दे सकता है. यहाँ तक कि मजिस्ट्रेट के पास भी विसंगतियाँ पाए जाने पर कार्यवाही जारी रखने का अधिकार होता है.

वकील ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा, "लेकिन इसके लिए, शिकायतकर्ता और मजिस्ट्रेट दोनों के पास संलग्न दस्तावेज़ों तक पहुँच होनी चाहिए. फिलहाल, दोनों में से कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकता क्योंकि वे रिकॉर्ड गायब हैं, भले ही सीबीआई को अपनी रिपोर्ट दाखिल किए हुए सात महीने से अधिक समय बीत चुका है."

एडवोकेट सिंह ने सीबीआई की रिपोर्ट की भाषा पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में स्वयं एजेंसी की भाषा दर्शाती है कि निष्कर्ष निर्णायक नहीं हैं. सिंह ने बताया, "रिपोर्ट में कहा गया है कि 'आत्महत्या की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता.' इसका मतलब है कि निष्कर्ष अनिश्चित है. अगर एजेंसी निर्णायक रूप से यह तय नहीं कर पाई कि यह आत्महत्या थी, आत्महत्या के लिए उकसाना था, या हत्या थी, तो क्या इस मामले को बंद कर देना चाहिए था? यह सीबीआई का कर्तव्य था कि वह सत्य को निर्णायक रूप से स्थापित करे."

उन्होंने वित्तीय साक्ष्यों की हैंडलिंग पर भी सवाल उठाए. उन्होंने बताया कि रिपोर्ट में आरोपी के पक्ष में हुए धन हस्तांतरण को स्वीकार किया गया है, लेकिन इसकी ठीक से जाँच नहीं की गई. सिंह ने कहा, "इस तरह के लेन-देन की जाँच धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात, या पीड़ित पर नियंत्रण स्थापित करने के सबूत के तौर पर की जानी चाहिए थी. इनमें से कोई भी तथ्य समय से पहले मामले को बंद करने के बजाय आगे की जांच को न्यायोचित ठहरा सकता था."

परिवार के वकील ने फोरेंसिक और डिजिटल साक्ष्यों को रोके जाने पर भी चिंता व्यक्त की, जिसमें विदेशों में जाँच किए गए डेटा भी शामिल हैं. उन्होंने प्रश्न किया, "डिजिटल साक्ष्य पर उन्हें अमेरिका से क्या रिपोर्ट मिली है? सीबीआई क्यों चुप है?" उन्होंने सुझाव दिया कि केस फाइल से महत्वपूर्ण सामग्री को जानबूझकर हटाया गया है, जो कोर्ट में जमा की गई है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि दस्तावेजी साक्ष्य की अनुपस्थिति, चाहे उनका उपयोग किया गया हो या नहीं, ने जाँच की पारदर्शिता को कम कर दिया है. सिंह ने कहा, "एक बार जब सभी दस्तावेज़ों तक पहुँच मिल जाएगी, तो हम यह स्थापित कर सकते हैं कि क्लोजर रिपोर्ट उचित तरीके से दायर नहीं की गई थी."

सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून, 2020 को उनके बांद्रा स्थित आवास पर हुई मौत ने पूरे देश में व्यापक आक्रोश पैदा किया था और परिवार की मांगों व भारी जन दबाव के बाद यह मामला सीबीआई को सौंपा गया था. वकील सिंह ने कहा कि एफआईआर उसी साल दर्ज की गई थी, लेकिन एजेंसी को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने में लगभग पाँच साल लग गए—और फिर भी इसे बिना आवश्यक दस्तावेज़ों के जमा कर दिया गया.

सिंह ने निष्कर्ष निकाला, "मामले को बंद करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी, फिर भी ऐसा लगता है कि इसे जल्दबाजी में किया गया है. अगर सीबीआई मानती थी कि मामला बंद होने के लिए तैयार है, तो उन्हें सभी प्रासंगिक रिकॉर्ड के साथ रिपोर्ट जमा करनी चाहिए थी. पाँच साल बाद अधूरी रिपोर्ट दाखिल करना इस बात पर गंभीर सवाल खड़े करता है कि जाँच किस तरह से समाप्त की गई."

राजपूत परिवार ने दोहराया है कि सभी सहायक सामग्री उपलब्ध होते ही वे क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देंगे. सिंह ने कहा, "हमने बार-बार दस्तावेज़ मांगे हैं. जब तक वे प्रदान नहीं किए जाते, हमें पता नहीं चलेगा कि क्लोजर किस आधार पर दायर किया गया." उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनके पास मौजूद रिकॉर्ड की समीक्षा किए बिना मजिस्ट्रेट भी कोई कार्रवाई नहीं कर सकते.

जब उनसे पूछा गया कि क्या इस मामले पर कोई राजनीतिक दबाव था, तो सिंह ने इसकी पुष्टि करने से इनकार कर दिया, लेकिन यह बनाए रखा कि "प्रक्रिया में विसंगतियाँ स्पष्ट हैं." सीबीआई की यह क्लोजर रिपोर्ट, अभिनेता की मौत के लगभग पाँच साल बाद भी, जाँच की पारदर्शिता और गहनता पर बहस छेड़ रही है. परिवार का जोर है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत सीधी या रहस्यहीन नहीं थी और वे एजेंसी के निष्कर्षों की व्यापक समीक्षा की मांग कर रहे हैं. फिलहाल, मामला कोर्ट में बना हुआ है, और राजपूत परिवार की कानूनी टीम को सभी सहायक सामग्री मिलते ही औपचारिक चुनौती देने की तैयारी है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-