वसई-विरार :लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा को लेकर वसई-विरार महानगरपालिका (वीवीएमसी) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिससे व्रतियों को बड़ी राहत मिली है। प्रशासन ने इस बार कृत्रिम तालाबों की योजना के साथ-साथ श्रद्धालुओं को पारंपरिक रूप से प्राकृतिक तालाबों में भी अर्घ्य देने की अनुमति दे दी है, हालांकि यह अनुमति सख्त दिशा-निर्देशों के अधीन होगी। यह फैसला शुक्रवार को आयोजित एक बैठक में लिया गया, जिसने उन भक्तों की मांग को पूरा किया जो छठ पूजा को पारंपरिक तरीके से जलाशयों और नदी तटों पर मनाना चाहते थे।
पारंपरिक आस्था और प्रशासन का सामंजस्य
छठ पूजा, जो 27 और 28 अक्टूबर को होनी है, में पारंपरिक रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय समुद्र तटों, झीलों और नदी तटों पर प्रार्थना और 'अर्घ्य' देने की प्रथा है। शुरुआती योजना के तहत, प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रदूषण को रोकने के लिए महानगरपालिका ने केवल कृत्रिम तालाबों की व्यवस्था करने का निर्णय लिया था।
हालांकि, विधायकों स्नेहा दुबे-पंडित और राजन नाइक, साथ ही कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से पर्व को पारंपरिक तरीके से मनाने की अनुमति दिए जाने की मांग के बाद, प्रशासन ने इस विषय पर पुनर्विचार किया।
प्राकृतिक तालाबों के लिए कड़े नियम
महानगरपालिका आयुक्त मनोजकुमार सूर्यवंशी ने इस संबंध में पुष्टि की कि भक्तों को प्राकृतिक तालाबों में प्रवेश की अनुमति केवल अर्घ्य देने के लिए होगी। यह अनुमति न्यायालय के दिशा-निर्देशों पर आधारित है और एक कड़ी शर्त के साथ आती है: व्रतियों या उनके परिवार के सदस्यों को पानी में फूल-माला, दीये (तेल के दीपक) या किसी भी प्रकार का चढ़ावा छोड़ने की सख्त मनाही होगी। महानगरपालिका इस कार्रवाई की निगरानी के लिए सख्ती बरतेगी।
आयुक्त सूर्यवंशी की अध्यक्षता में हुई इस महत्वपूर्ण बैठक में पुलिस अधिकारी और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी मौजूद थे। अधिकारियों ने यह दोहराया कि छठ पूजा समारोह के लिए न्यायालय के निर्देशों का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
कृत्रिम तालाबों की तैयारी जारी
भले ही प्राकृतिक तालाबों में अर्घ्य देने की अनुमति मिल गई हो, वीवीएमसी प्रशासन ने सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन सुनिश्चित करने के लिए कृत्रिम तालाबों के निर्माण की व्यवस्था भी जारी रखी है। यह कदम भीड़ को नियंत्रित करने और पारंपरिक रूप से अर्घ्य देने के इच्छुक न होने वाले व्रतियों को सुविधा देने के लिए उठाया गया है।
वसई-विरार प्रशासन का यह निर्णय उन लाखों छठ व्रतियों के लिए राहत लेकर आया है, जो अपनी आस्था को पारंपरिक तरीके से व्यक्त करना चाहते थे, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि पवित्र जल निकायों की शुद्धता और स्वच्छता बनी रहे। यह प्रशासन और जनता के बीच सहयोग का एक उदाहरण है, जहाँ त्योहार की भावना और पर्यावरण संरक्षण दोनों का सम्मान किया गया है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

