लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा आज नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है और कल, रविवार, 26 अक्टूबर 2025 को यह पर्व अपने दूसरे चरण खरना में प्रवेश करेगा। खरना का यह दिन ही वह निर्णायक क्षण होता है जब छठ व्रती (व्रत करने वाली महिलाएँ और पुरुष) 36 घंटे के कठोर और पवित्र निर्जला उपवास की शुरुआत करते हैं। छठ पूजा, जो सूर्य देव और छठी मइया की उपासना के लिए समर्पित है, संतान के स्वास्थ्य, सफलता और लंबी उम्र की कामना के लिए रखी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस साल छठ महापर्व पर कुछ दुर्लभ संयोग भी बन रहे हैं, जिससे इस पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ गया है। 26 अक्टूबर को खरना के दिन ही सूर्य अपनी नीच राशि तुला में रहेंगे, जो व्रतियों के लिए अधिक आत्म-संयम और भक्ति की मांग करता है। वहीं, देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्च राशि कर्क में विराजमान रहेंगे, जो ज्ञान, समृद्धि और व्रत की सफलता का आशीर्वाद प्रदान करेंगे।
आज, नहाय-खाय के दिन, व्रती महिलाओं ने पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान कर सात्विक भोजन (आमतौर पर कद्दू-चना दाल की सब्जी और चावल) ग्रहण किया। इस अनुष्ठान के साथ ही उन्होंने आने वाले 36 घंटे के कठोर व्रत का संकल्प लिया। पूरा देश, विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में, छठ गीतों और भक्तिमय माहौल में डूब गया है।
खरना का अनुष्ठान और 36 घंटे का संकल्प
26 अक्टूबर, रविवार को खरना के दिन व्रती महिलाएं दिनभर निर्जला उपवास करेंगी। सूर्यास्त के बाद, यह व्रत अत्यंत पवित्रता और स्वच्छता के साथ आगे बढ़ेगा। व्रती मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ की खीर (रसिया) और गेहूं के आटे की रोटी का प्रसाद तैयार करेंगी। यह प्रसाद सबसे पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, जिसके बाद व्रती इसे ग्रहण कर 36 घंटे के निर्जला व्रत का शुभारंभ करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती को तब तक जल की एक बूंद भी नहीं लेनी होती जब तक कि वह चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण न कर लें।
ज्योतिष विशेषज्ञों के मुताबिक, खरना के दिन व्रत आरंभ होने से पहले प्रसाद ग्रहण करने की यह विधि शरीर को कठोर तपस्या के लिए तैयार करती है और व्रत को सफल बनाती है। यह व्रत केवल शारीरिक शुद्धि नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है।
आगे के दो दिन की तैयारी:
खरना के बाद, छठ पर्व का सबसे कठिन और भव्य चरण शुरू होगा:
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27 अक्टूबर (सोमवार): संध्या अर्घ्य – इस दिन व्रती नदी या जलाशय में कमर तक पानी में खड़ी होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देंगी। यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि जीवन में हर शुरुआत का एक अंत होता है और सूर्य के उदय के साथ-साथ अस्त को भी सम्मान देना चाहिए। बांस की टोकरी (सूप) में ठेकुआ, मौसमी फल और गन्ना आदि प्रसाद सजाकर अर्घ्य दिया जाएगा।
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28 अक्टूबर (मंगलवार): उषा अर्घ्य और पारण – अंतिम दिन, व्रती भोर में उठकर पुनः जल स्रोतों पर पहुँचेंगी और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगी। यह दिन नए जीवन और आशा के संचार का प्रतीक है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे के कठोर उपवास का पारण (व्रत तोड़ना) करेंगी।
इस महापर्व के दौरान, साफ़-सफ़ाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। व्रती और उनके परिवार लहसुन-प्याज जैसी तामसिक चीज़ों से दूर रहते हैं। देशभर में घाटों की साफ़-सफ़ाई और सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद की जा रही है, ताकि लाखों श्रद्धालु बिना किसी बाधा के आस्था के इस सैलाब में डूब सकें। यह पर्व न सिर्फ़ धार्मिक भावना को दर्शाता है, बल्कि समाज में एकता, प्रकृति के प्रति सम्मान और अटूट विश्वास का संदेश भी देता है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

