सिर्फ ₹20 का समोसा नहीं, 400% का ब्याज है; चुकाना होगा 3 लाख का इलाज

सिर्फ ₹20 का समोसा नहीं, 400% का ब्याज है; चुकाना होगा 3 लाख का इलाज

प्रेषित समय :22:08:39 PM / Sun, Oct 26th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. दफ्तर की शाम को चाय के साथ खाया जाने वाला ₹20 का समोसा भले ही मामूली स्वाद का हिस्सा लगे, लेकिन यह छोटी-सी आदत आने वाले वर्षों में आपके दिल पर भारी पड़ सकती है. दिल्ली स्थित प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. शैलेश सिंह की एक हालिया वायरल पोस्ट ने इस “सस्ता स्वाद, महंगा नुकसान” वाली सोच पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. डॉक्टर सिंह ने अपनी पोस्ट में बताया कि रोज़ एक समोसा खाने की आदत लंबे समय में केवल मोटापे या कोलेस्ट्रॉल का कारण नहीं बनती, बल्कि यह एक ऐसी वित्तीय और स्वास्थ्य हानि में बदल जाती है जिसका ब्याज शरीर को अपनी धमनियों से चुकाना पड़ता है.

डॉ. सिंह ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अपने पोस्ट में लिखा— “आप सोचते हैं कि आप सिर्फ ₹20 का समोसा खा रहे हैं, लेकिन असल में आप अपनी धमनियों पर 400 प्रतिशत ब्याज दर पर कर्ज ले रहे हैं.” उन्होंने बेहद सटीक आँकड़ों के साथ बताया कि यदि कोई व्यक्ति हर दिन दफ्तर में एक समोसा खाता है, तो वह सालभर में लगभग 300 समोसे खा लेता है. इस तरह 15 वर्षों में समोसे पर करीब ₹90,000 खर्च हो जाते हैं. लेकिन यह केवल शुरुआत है. असली कीमत तब चुकानी पड़ती है जब यही आदत दिल की बीमारियों का कारण बनती है और नतीजे में ₹3 लाख की एंजियोप्लास्टी करनी पड़ती है.

डॉ. सिंह का यह गणित केवल पैसों का नहीं, बल्कि जीवनशैली का भी है. उन्होंने लिखा, “आप जब भी अस्वस्थ भोजन चुनते हैं, तो आप अपने शरीर से उधार ले रहे होते हैं. यह उधार एक दिन जरूर वसूला जाता है, और तब तक अक्सर देर हो चुकी होती है.” उनका यह बयान सोशल मीडिया पर हजारों बार साझा किया गया और कई लोगों ने अपनी खानपान की आदतों को लेकर आत्ममंथन शुरू कर दिया.

दिल की बीमारियों के बढ़ते मामलों के बीच यह चेतावनी बेहद सटीक समय पर आई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में हर चार मौतों में से एक का कारण हृदय रोग है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति केवल आनुवंशिक कारणों से नहीं, बल्कि असंतुलित खानपान, तनाव, और शारीरिक निष्क्रियता से भी जुड़ी है. डॉ. सिंह ने अपने पोस्ट में यही संदेश दिया कि “हम अपने शरीर को ऑफिस शेड्यूल के हिसाब से टाल नहीं सकते. शरीर हमारे कैलेंडर का इंतजार नहीं करता.”

उनकी यह पंक्ति— “The body doesn’t wait for your schedule”— सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य जगत की नई ‘मंत्र’ बन गई. उन्होंने बताया कि लोग अक्सर सोचते हैं कि वे फिटनेस या डाइट की शुरुआत “अगले हफ्ते”, “इस प्रोजेक्ट के बाद”, या “रिटायरमेंट के बाद” करेंगे. लेकिन शरीर तब तक इंतजार नहीं करता. उनकी सलाह साफ थी— स्वास्थ्य को टालना, बीमारी को बुलावा देना है.

डॉ. सिंह ने अपने संदेश को केवल भय या आंकड़ों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि प्रेरणा के रूप में भी प्रस्तुत किया. उन्होंने लिखा, “कठिनाई हर जगह है— या तो आप शुरुआती सात दिनों की मेहनत झेलिए, या जीवनभर पछतावा.” यह वाक्य— “Choose your hard”— अब कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा एक प्रेरणादायक नारा बन चुका है. उनका कहना था कि फिटनेस की शुरुआत भले कठिन लगे, लेकिन सात दिन का लगातार अभ्यास इसे आदत बना देता है. वहीं अस्वस्थ जीवनशैली का पछतावा वर्षों तक पीछा नहीं छोड़ता.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों को बड़े बदलावों की बजाय छोटे लेकिन निरंतर कदम उठाने चाहिए. जैसे— रोज़ाना केवल 30 मिनट की वॉक, तली-भुनी चीज़ों में कटौती, और तनाव का प्रबंधन. ये तीन साधारण आदतें हृदय रोग के खतरे को काफी हद तक कम कर सकती हैं. हाल के अध्ययनों से भी यह साबित हुआ है कि भारत में युवा वर्ग में बढ़ती हृदय संबंधी बीमारियों का सीधा संबंध फास्ट फूड, नींद की कमी और बैठे-बैठे काम करने की प्रवृत्ति से है.

डॉ. सिंह के इस उदाहरण ने एक आम भारतीय दफ्तर संस्कृति को भी आईना दिखाया. जहाँ हर शाम सहकर्मियों के साथ समोसा, पकोड़ा या मिठाई खाने की परंपरा “टीम बांडिंग” का हिस्सा बन गई है. लेकिन डॉक्टर का मानना है कि यह “बांडिंग” स्वास्थ्य को तोड़ रही है. उन्होंने सुझाव दिया कि ऑफिस में ऐसे समय पर लोगों को हल्का नाश्ता, फल, या मूंग की चाट जैसी चीज़ें अपनानी चाहिए. उनका तर्क था कि शरीर को ऊर्जा चाहिए, तेल नहीं.

इस पोस्ट के बाद कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए. एक यूज़र ने लिखा— “डॉ. सिंह का यह गणित मेरे दिल को छू गया. अब मैंने तय किया है कि ऑफिस में समोसे की जगह फल खाऊँगा.” वहीं दूसरे यूज़र ने लिखा— “समोसा ₹20 का है, लेकिन अगर इससे मेरी सेहत बिगड़ती है तो कीमत करोड़ों की है.”

डॉक्टरों और न्यूट्रिशनिस्ट्स ने भी इस पोस्ट की सराहना की है. दिल्ली के वरिष्ठ आहार विशेषज्ञ डॉ. मीना कपूर का कहना है कि “यह संदेश जरूरी है क्योंकि लोग छोटी-छोटी लापरवाहियों को गंभीर नहीं मानते. लेकिन शरीर हर गलती को गिनता है. हर अतिरिक्त कैलोरी, हर तला हुआ कौर, हर छूटा हुआ व्यायाम— ये सब जोड़ते हैं, घटाते नहीं.”

दिल्ली से लेकर मुंबई, पुणे और बेंगलुरु तक यह पोस्ट व्यापक चर्चा का विषय बनी हुई है. खासकर कॉर्पोरेट ऑफिसों में, जहाँ तनाव और जंक फूड साथ-साथ चलते हैं. कई कंपनियों ने कर्मचारियों को हेल्थ-अवेयरनेस मेल भेजना शुरू किया है. कुछ संस्थानों ने तो अपने कैफेटेरिया में तले हुए स्नैक्स की मात्रा घटाने का निर्णय भी लिया है.

डॉ. सिंह ने पोस्ट के अंत में लिखा— “स्वास्थ्य सबसे महंगी मुद्रा है, और शरीर उसका बैंक. समझदारी इसी में है कि निवेश समय पर करें, ताकि ब्याज बीमारी में न चुकाना पड़े.” यह पंक्ति उन लाखों भारतीयों के लिए चेतावनी और प्रेरणा दोनों है, जो सोचते हैं कि रोज़ का एक समोसा कोई बड़ा नुकसान नहीं.

असल में यह कहानी ₹20 के समोसे की नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के छोटे-छोटे चुनावों की है जो धीरे-धीरे जीवन की दिशा तय करते हैं. स्वाद और स्वास्थ्य के बीच संतुलन साधना आज सबसे बड़ी जरूरत है. डॉ. सिंह का यह उदाहरण हमें याद दिलाता है कि जिस तरह पैसे का निवेश बुद्धिमानी से करना पड़ता है, वैसे ही भोजन का चयन भी समझदारी से होना चाहिए.

क्योंकि अंततः यह सिर्फ समोसे की बात नहीं— यह दिल की बात है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-