बढ़ता प्रदूषण, घटता स्वास्थ्य और हमारा कर्तव्य

बढ़ता प्रदूषण, घटता स्वास्थ्य और हमारा कर्तव्य

प्रेषित समय :19:10:54 PM / Tue, Oct 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

डॉ. अशोक कुमार वर्मा

अभी-अभी दीपावली का त्यौहार बीता है, और इसके साथ ही वायु प्रदूषण की समस्या एक बार फिर विकट रूप में हमारे सामने है। दीपावली, जिसे दीयों का पर्व कहा जाता है, मूलतः प्रकाश और सकारात्मकता का प्रतीक है। परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि आज यह त्यौहार धुएँ और शोरगुल का पर्याय बनता जा रहा है।

दीपावली मनाने के पीछे कई मान्यताएँ हैं—अमावस्या की रात को प्रकाश करने का विचार, या फिर भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का उत्सव। किंतु इसके केंद्र में जो भाव है, वह है—सद्भाव, मर्यादा और जनकल्याण। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जीवन नैतिकता, संयम और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए 14 वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार किया और सदैव लोककल्याण को सर्वोच्च रखा। ऐसे में यदि हम उनके आदर्शों का पालन करना चाहते हैं, तो हमें भी मर्यादा और विवेक का परिचय देना होगा।

लेकिन आज दीपावली के नाम पर पटाखे जलाकर हम जिस प्रकार वायु और ध्वनि प्रदूषण फैला रहे हैं, वह श्रीराम के आदर्शों से बिल्कुल विपरीत है। धुआँ, विषैली गैसें और तेज़ आवाज़ें न केवल वातावरण को दूषित करती हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और जीव-जंतुओं पर भी गंभीर असर डालती हैं। त्यौहार का उद्देश्य आनंद और उत्साह है, प्रदूषण और असुविधा नहीं। यदि हम वही धन जो पटाखों पर खर्च करते हैं, किसी सामाजिक कार्य या परोपकार में लगाएँ, तो जो सच्चा सुख और शांति मिलेगी, वह अनमोल होगी।

प्रदूषण केवल पटाखों तक सीमित नहीं है। वाहनों से निकलने वाला धुआँ, कारखानों से उत्सर्जन, निर्माणाधीन भवनों से उठती धूल, सड़कों और कूड़े के ढेरों में लगाई जाने वाली आग, खेतों में पराली जलाना—ये सब मिलकर हमारे पर्यावरण को विषैला बना रहे हैं। आज एक परिवार में जितने सदस्य हैं, लगभग उतने ही वाहन हैं। यही कारण है कि शहरों की हवा सांस लेने लायक नहीं रह गई है। दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण के कारण सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियाँ, यहाँ तक कि कैंसर तक बढ़ रहे हैं।

अब सवाल यह है कि इस संकट से मुक्ति कैसे मिले? यह प्रश्न केवल सरकार या किसी संस्था के लिए नहीं, बल्कि हम सबके लिए है। दुर्भाग्य से, हम अपने अधिकारों की तो बात करते हैं, पर कर्तव्यों को भूल जाते हैं। प्रकृति ने हमें जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी जैसे अमूल्य उपहार दिए हैं, और हम उनका लगातार दोहन कर रहे हैं। यदि हम सिर्फ़ इतना संकल्प लें कि प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करेंगे, तो यह भी एक बड़ा योगदान होगा।

मानव को केवल लेना नहीं, प्रकृति को कुछ लौटाना भी सीखना होगा। छोटे-छोटे कदम उठाकर भी हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। अपने और बच्चों के जन्मदिन या किसी विशेष अवसर पर पौधारोपण कीजिए और उन पौधों की देखभाल कीजिए। परिवार की आवश्यकता के अनुसार ही वाहन रखें, एक व्यक्ति के लिए एक वाहन रखने की प्रवृत्ति बदलें। जहाँ संभव हो, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। साइकिल का प्रयोग न केवल प्रदूषण रहित है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए, विशेषकर घुटनों के लिए, अत्यंत लाभकारी है।

वाहनों में स्वच्छ ईंधन का प्रयोग करें और उनका नियमित रखरखाव करें ताकि धुआँ कम निकले। कूड़े-करकट को जलाने के बजाय उसका उचित निपटान करें। निर्माण सामग्री को ढककर रखें ताकि धूल न उड़े। औद्योगिक इकाइयों को चाहिए कि वे प्रदूषण रहित ईंधन और आधुनिक तकनीक का प्रयोग करें, जिससे जीवन और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रह सकें।

प्रदूषण का असर केवल हवा पर नहीं, हमारे पूरे जीवन पर पड़ रहा है—हमारे स्वास्थ्य, मनोस्थिति और आने वाली पीढ़ियों पर। इस स्थिति को सुधारने की शुरुआत केवल सरकार नहीं, हम सभी मिलकर कर सकते हैं। यह हमारा सामूहिक कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ, स्वस्थ और संतुलित बनाएँ।

यदि आज हमने जिम्मेदारी नहीं दिखाई, तो आने वाला कल केवल चेतावनी नहीं, संकट बनकर सामने आएगा। इसलिए आइए, इस दीपावली से एक नया संकल्प लें—दीप जलाएँ, धुआँ नहीं; रोशनी फैलाएँ, प्रदूषण नहीं। यही हमारे समय का सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-