भारतीय भोजन परंपरा में स्वाद और सेहत का संगम हमेशा से रहा है, लेकिन अब यह संगम आधुनिकता और आयुर्वेद के मेल के रूप में नए स्वरूप में उभर रहा है। हाल के वर्षों में देशभर के रसोईघरों से लेकर पांच सितारा होटलों तक, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का प्रयोग तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। तुलसी, हल्दी, आंवला, नीम, मोरिंगा, गिलोय और ब्राह्मी जैसी औषधीय जड़ी-बूटियाँ न केवल औषधि के रूप में बल्कि स्वादिष्ट व्यंजनों में भी अपना विशेष स्थान बना रही हैं। इन्हीं में से एक है — नीम फ्लावर रसम, जो दक्षिण भारत के पारंपरिक स्वाद को आयुर्वेदिक दृष्टि से और अधिक प्रभावशाली बना रहा है।
नीम जिसे संस्कृत में “निंब” कहा गया है, आयुर्वेद में “सर्वरोगनिवारिणी” यानी सभी रोगों को दूर करने वाली औषधि के रूप में वर्णित है। नीम के फूल, पत्ते, छाल और फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। परंपरागत रूप से नीम के फूलों का उपयोग गर्मियों की शुरुआत में शरीर को शुद्ध करने, रक्त को साफ रखने और पाचन क्रिया को संतुलित करने के लिए किया जाता रहा है। जब इस औषधीय फूल को रसम जैसे हल्के और स्वादिष्ट दक्षिण भारतीय व्यंजन के साथ मिलाया जाता है, तो यह शरीर के लिए अमृत समान लाभकारी बन जाता है।
“नीम फ्लावर रसम” को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कई हिस्सों में “वेपपू पू रसम” कहा जाता है। यह व्यंजन केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि शरीर के डिटॉक्स और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है। आयुर्वेदिक दृष्टि से यह त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ को संतुलित करता है और पाचन तंत्र को सक्रिय बनाए रखता है।
रसोई विशेषज्ञों का कहना है कि आजकल नीम फ्लावर रसम को न केवल पारंपरिक घरों में बल्कि स्वास्थ्य-थीम वाले रेस्तरां में भी विशेष रूप से परोसा जा रहा है। कई पोषण विशेषज्ञ और शेफ इसे “डिटॉक्स रसम” कहकर प्रचारित कर रहे हैं। इस व्यंजन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह स्वाद और औषधीय गुण दोनों को एक साथ समाहित करता है।
नीम फ्लावर रसम बनाने की विधि (Sangree Sahit):
इस व्यंजन को तैयार करने के लिए सबसे पहले आवश्यक सामग्री तैयार की जाती है —
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सूखे या ताजे नीम के फूल – 1 बड़ा चम्मच
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इमली का गूदा – 1 कप
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टमाटर – 1
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पकी हुई अरहर दाल – 2 बड़े चम्मच
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हल्दी पाउडर – आधा छोटा चम्मच
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राई (सरसों के दाने) – आधा छोटा चम्मच
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करी पत्ते – 8 से 10
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सूखी लाल मिर्च – 2
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काली मिर्च के दाने – 8 से 10
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जीरा – 1 छोटा चम्मच
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हिंग – एक चुटकी
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देशी घी या नारियल तेल – 1 बड़ा चम्मच
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नमक – स्वादानुसार
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पानी – लगभग 2 कप
विधि:
सबसे पहले नीम के फूलों को हल्के घी में धीमी आँच पर सुनहरा भून लें। ध्यान रहे कि ये जले नहीं, क्योंकि नीम के फूल का स्वाद स्वाभाविक रूप से कड़वा होता है और अधिक भुनने पर इसकी कड़वाहट बढ़ सकती है। इसके बाद मिक्सर में काली मिर्च, जीरा और टमाटर डालकर हल्का दरदरा पेस्ट तैयार कर लें।
एक पैन में इमली का गूदा और एक कप पानी डालकर उबालें। उसमें हल्दी, नमक और टमाटर का बना पेस्ट डाल दें। जब मिश्रण में उबाल आने लगे, तो इसमें पकी हुई दाल डालें और थोड़ी देर पकने दें ताकि सब स्वाद एकसाथ मिल जाएँ। अब उसमें पहले से भुने हुए नीम के फूल डालें और 5–7 मिनट तक धीमी आँच पर पकाएँ।
अब एक छोटे तड़के वाले पैन में घी या नारियल तेल गर्म करें, उसमें राई, सूखी लाल मिर्च, करी पत्ते और हिंग डालें। जब राई चटकने लगे, तो यह तड़का तैयार रसम पर डाल दें। इस रसम को गरम-गरम परोसें — चाहे सूप के रूप में या फिर गर्म चावल के साथ।
नीम फ्लावर रसम का स्वाद हल्का कड़वा, खट्टा और मसालेदार होता है, लेकिन इसकी यही अनोखी संगति शरीर को ठंडक, पाचन और शुद्धता प्रदान करती है। यह व्यंजन खासतौर पर गर्मियों में या मौसम बदलने के समय पर लाभदायक माना जाता है क्योंकि यह शरीर को संक्रमण और त्वचा रोगों से बचाता है।
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार, नीम के फूलों में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो लिवर को डिटॉक्स करते हैं और रक्त को शुद्ध करते हैं। यह शरीर में जमा हुए विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। वहीं इमली और टमाटर जैसे तत्व रसम में स्वाद का संतुलन बनाते हैं और शरीर को विटामिन सी प्रदान करते हैं। काली मिर्च और जीरा इसमें रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने वाले और पाचन को मजबूत करने वाले मसाले हैं।
आज के समय में जब लोगों की जीवनशैली फास्ट फूड और प्रोसेस्ड डाइट से भरी हुई है, ऐसे में पारंपरिक आयुर्वेदिक व्यंजन जैसे नीम फ्लावर रसम शरीर को प्राकृतिक रूप से संतुलित रखने का सरल और स्वादिष्ट उपाय बन रहे हैं। दिल्ली, बेंगलुरु और चेन्नई के कुछ हेल्थ कैफे और आयुर्वेदिक रेस्टोरेंट्स में अब यह व्यंजन “सीजनल हीलिंग मील” के रूप में परोसा जा रहा है। लोग इसे सप्ताह में एक या दो बार अपने भोजन में शामिल कर रहे हैं ताकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।
रसोई विशेषज्ञों का कहना है कि नीम फ्लावर रसम केवल पारंपरिक पेय नहीं, बल्कि आधुनिक युग में “फार्मेसी इन अ बाउल” (एक कटोरी में औषधि) बन चुकी है। यह रोगों से लड़ने के साथ-साथ शरीर की गर्मी को नियंत्रित करती है और मन को शांत रखने में मदद करती है।
आयुर्वेद में नीम का महत्व हजारों वर्षों से माना गया है। चारक संहिता में इसे “कषाय रस प्रधान औषधि” कहा गया है, जो रक्तशोधन, त्वचा रोग, ज्वर और कीट संक्रमण से बचाव के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। इस पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक पाककला के साथ जोड़ने से “नीम फ्लावर रसम” जैसा व्यंजन केवल भोजन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की दिशा में एक सजग कदम बन गया है।
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. श्रुति अय्यर कहती हैं, “नीम फ्लावर रसम का सेवन सप्ताह में एक बार करने से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं और त्वचा में चमक बढ़ती है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो लगातार बाहर के खाने या प्रदूषित वातावरण के संपर्क में रहते हैं।”
स्पष्ट है कि भारत के पारंपरिक स्वादों में छिपा यह आयुर्वेदिक ज्ञान आज फिर से आधुनिक जीवन का हिस्सा बन रहा है। जहां पहले लोग नीम की कड़वाहट से बचते थे, वहीं अब यह कड़वाहट ही स्वास्थ्य का पर्याय बन रही है। “नीम फ्लावर रसम” ने यह साबित कर दिया है कि यदि सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए, तो हर जड़ी-बूटी न केवल औषधि बल्कि स्वाद का प्रतीक भी बन सकती है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

