पुणे ज़मीन सौदे पर मचा सियासी तूफ़ान, देवेंद्र फडणवीस ने अजीत पवार के बेटे पार्थ से जुड़ी डील की जांच के आदेश दिए

पुणे ज़मीन सौदे पर मचा सियासी तूफ़ान, देवेंद्र फडणवीस ने अजीत पवार के बेटे पार्थ से जुड़ी डील की जांच के आदेश दिए

प्रेषित समय :22:23:14 PM / Thu, Nov 6th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में गुरुवार को भूचाल तब आ गया जब मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पुणे में 40 एकड़ ज़मीन की विवादित बिक्री की जांच के आदेश दे दिए। यह सौदा उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार से जुड़ी कंपनी एमेडिया एंटरप्राइजेज एलएलपी से संबंधित बताया जा रहा है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि कोरेगांव पार्क के पास स्थित इस बहुमूल्य भूमि, जिसकी बाजार कीमत लगभग ₹1,800 करोड़ बताई जा रही है, को मात्र ₹300 करोड़ में बेच दिया गया, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने गुरुवार को अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) विकास खारगे की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित की है, जो इस सौदे से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं और कथित भ्रष्टाचार के पहलुओं की जांच करेगी। जांच समिति को सात दिनों के भीतर प्राथमिक रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। इस बीच पुणे जिला कलेक्टर ने भी इस सौदे पर आपत्ति दर्ज करते हुए संकेत दिया है कि यदि नियमों का उल्लंघन पाया गया, तो बिक्री विलेख (सेल डीड) को निरस्त किया जा सकता है।

यह मामला तब सामने आया जब विपक्षी दलों ने विधानसभा में इस ज़मीन सौदे को “भ्रष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण” बताते हुए सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की। कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने आरोप लगाया कि राज्य की सबसे महंगी ज़मीनों में से एक को जानबूझकर कम कीमत पर बेचा गया ताकि निजी लाभ पहुंचाया जा सके। विपक्ष ने इसे “राजनीतिक संरक्षण में हुआ लाभ का सौदा” बताया है।

कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार ने कहा, “₹1,800 करोड़ की सरकारी भूमि को ₹300 करोड़ में बेचना केवल अनियमितता नहीं बल्कि सीधे तौर पर जनता के पैसे के साथ धोखा है। सरकार को यह बताना होगा कि इतनी बड़ी संपत्ति इतनी कम कीमत पर कैसे बेची गई।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या अजीत पवार या उनके परिवार के सदस्यों को इस डील की जानकारी थी।

हालांकि, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “मेरा या मेरे परिवार का इस सौदे से कोई लेना-देना नहीं है। पार्थ एक स्वतंत्र व्यक्ति हैं और उनका व्यवसायिक निर्णय उनका निजी मामला है। अगर किसी ने कोई गलती की है तो कानून अपना काम करेगा, लेकिन राजनीति के तहत झूठे आरोप लगाना ठीक नहीं।” पार्थ पवार ने भी एक बयान जारी कर कहा कि उन्होंने भूमि सौदे में कोई अनियमितता नहीं की है और यह पूरी तरह वैधानिक प्रक्रिया के तहत हुआ है।

अधिकारिक सूत्रों के अनुसार, विवादित ज़मीन पुणे के मुंधवा क्षेत्र में स्थित है, जो कोरेगांव पार्क से सटी हुई है और शहर के रियल एस्टेट के सबसे महंगे इलाकों में गिनी जाती है। यह ज़मीन मूल रूप से महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) और एक निजी डेवलपर के बीच विवाद में थी, जिसे बाद में न्यायालय के आदेश पर बिक्री के लिए मंज़ूरी दी गई। आरोप है कि इस मंज़ूरी का लाभ उठाकर सौदे को जल्दबाज़ी में अंतिम रूप दिया गया।

सूत्रों का कहना है कि 40 एकड़ भूमि के सौदे में ₹21 करोड़ की स्टांप ड्यूटी भी माफ की गई, जिसे अब जांच का मुख्य बिंदु माना जा रहा है। जांच समिति को यह पता लगाना है कि स्टांप ड्यूटी में यह राहत किस आधार पर दी गई और क्या राज्य सरकार की अनुमति इसके लिए ली गई थी।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने मीडिया से बातचीत में कहा, “किसी भी तरह की अनियमितता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हमने जांच के आदेश दे दिए हैं और किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, बख्शा नहीं जाएगा। पारदर्शिता और जवाबदेही हमारी प्राथमिकता है।”

राजनीतिक गलियारों में इस मामले ने गर्मी बढ़ा दी है। भाजपा ने विपक्ष के आरोपों को राजनीतिक नौटंकी बताते हुए कहा कि सरकार पहले से ही ईमानदारी और जवाबदेही के सिद्धांत पर चल रही है। भाजपा प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने कहा, “अगर कोई गड़बड़ी हुई है तो जांच से सब कुछ साफ हो जाएगा, लेकिन विपक्ष बिना सबूत केवल सियासी लाभ के लिए शोर मचा रहा है।”

दूसरी ओर, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत ने कहा, “यह डील भ्रष्टाचार की गंध दे रही है। मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश तो दे दिए, लेकिन यह तभी गंभीरता से लिया जाएगा जब दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। महाराष्ट्र में अब जनता सब जानती है कि सत्ता और कारोबार का गठजोड़ किस तरह काम कर रहा है।”

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यदि भूमि की वास्तविक कीमत ₹1,800 करोड़ के आसपास है, तो इतनी कम दर पर बिक्री सरकारी खजाने के लिए गंभीर वित्तीय नुकसान है। वरिष्ठ भूमि मूल्यांकन विशेषज्ञ एस. एम. देवधर ने कहा, “मुंधवा क्षेत्र का बाज़ार मूल्य प्रति एकड़ ₹40 से ₹50 करोड़ तक है। इस आधार पर पूरी ज़मीन की कीमत ₹1,600 से ₹2,000 करोड़ के बीच बैठती है। यदि इसे ₹300 करोड़ में बेचा गया है तो यह निश्चित रूप से मूल्य निर्धारण में गंभीर त्रुटि या हेरफेर का संकेत है।”

विपक्ष इस मुद्दे को अब विधानसभा के शीतकालीन सत्र में उठाने की तैयारी में है। कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) ने कहा है कि वे इस मुद्दे पर राज्य सरकार को जवाबदेह ठहराएंगे। वहीं, मुख्यमंत्री कार्यालय ने स्पष्ट किया है कि “जांच पूरी होने तक किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी।”

इस पूरे विवाद के बीच राज्य प्रशासन की निगाहें अब जांच अधिकारी विकास खारगे की रिपोर्ट पर टिकी हैं। राजस्व विभाग को भूमि हस्तांतरण से जुड़े सभी दस्तावेज़, अनुमतियाँ और मूल्यांकन रिकॉर्ड सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। यह भी जांच का विषय है कि क्या किसी अधिकारी ने दबाव में या प्रभाव में आकर मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की।

पुणे जिला कलेक्टर ने शुक्रवार को संकेत दिया कि यदि जांच में अनियमितता साबित होती है तो न केवल बिक्री रद्द की जाएगी बल्कि संबंधित पक्षों पर आपराधिक कार्रवाई भी हो सकती है। भूमि का पंजीकरण अस्थायी रूप से रोक दिया गया है, जब तक कि जांच रिपोर्ट पूरी न हो जाए।

महाराष्ट्र की राजनीति में भूमि सौदों को लेकर पहले भी विवाद उठते रहे हैं, लेकिन यह मामला इसलिए खास है क्योंकि इसमें उपमुख्यमंत्री के परिवार का नाम सीधे तौर पर जुड़ा है। यही वजह है कि यह मुद्दा सिर्फ आर्थिक या प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यंत संवेदनशील बन गया है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आने वाले दिनों में यह विवाद न केवल राज्य सरकार के लिए चुनौती बनेगा, बल्कि एनसीपी के भीतर भी असहजता पैदा कर सकता है। फिलहाल महाराष्ट्र की सियासत का यह ताज़ा भूचाल इस बात की याद दिला रहा है कि सत्ता और संपत्ति के बीच की रेखा राजनीति में हमेशा विवाद का केंद्र बनी रहती है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-