जबलपुर. मध्य प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री और जनजातीय कार्य विभाग का जिम्मा संभाल रहे कुंवर विजय शाह ने आज जबलपुर में एक पत्रकार वार्ता के दौरान धर्म परिवर्तन के संवेदनशील मुद्दे पर एक बड़ा और विवादास्पद बयान दिया है. उनके इस बयान ने राज्य की राजनीति और सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है, जहां एक ओर उनके रुख की प्रशंसा हो रही है तो वहीं दूसरी ओर सख्त धर्मांतरण कानूनों की मांग करने वाले समूह तीखी आलोचना कर रहे हैं.शाह ने कहा है कि यह सरकार का मुद्दा नहीं, बल्कि व्यक्ति का निजी निर्णय है. उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर #VijayShah, #DharmParivartan और #MPPolitics जैसे हैशटैग्स के साथ तीखी चर्चा छेड़ दी है.
शाह ने जबलपुर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि “धर्म परिवर्तन पूरी तरह व्यक्ति की अपनी चॉइस है. सरकार का मकसद धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करना नहीं, बल्कि जनजातीय समुदायों की भलाई और उनकी सांस्कृतिक पहचान को बचाना है.”
जबलपुर में जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए, मंत्री विजय शाह से जब राज्य में कथित तौर पर बढ़ते धर्मांतरण के मामलों और सरकार की आगामी रणनीति पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, "धर्म परिवर्तन सरकार का नहीं, बल्कि व्यक्ति का निजी चयन है. यह उसका संवैधानिक अधिकार है कि वह कौन सा धर्म अपनाता है. यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से, बिना किसी दबाव या प्रलोभन के अपना धर्म बदलता है, तो सरकार को उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. हमारा काम सुनिश्चित करना है कि किसी भी तरह का प्रलोभन, बल या धोखाधड़ी शामिल न हो. यदि ये तत्व शामिल हैं, तो कानून अपना काम करेगा, लेकिन स्वेच्छा से धर्म बदलना पूरी तरह से व्यक्तिगत निर्णय है."
मंत्री शाह का यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य में धर्मांतरण के विरुद्ध मौजूदा कानूनों को और सख्त बनाने की मांग लगातार उठ रही है, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में कथित रूप से ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे 'प्रेरित धर्मांतरण' को लेकर. सत्तारूढ़ दल और संबंधित संगठनों का एक बड़ा वर्ग राज्य के धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम में कठोरता लाने की वकालत कर रहा है, जिसके बीच मंत्री शाह का यह रुख अप्रत्याशित माना जा रहा है.
उनके इस बयान ने तत्काल सोशल मीडिया पर अपनी जगह बना ली. #VijayShah, #DharmParivartan, और #MPPolitics जैसे हैशटैग तेजी से ट्रेंड होने लगे. ट्विटर (X) और फेसबुक पर यूजर्स दो ध्रुवों में बंटे हुए नजर आए. एक धड़े ने मंत्री के बयान को संवैधानिक मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में एक प्रगतिशील टिप्पणी बताया. उन्होंने इसे देश के संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के अनुरूप बताया, जो हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है.
इसके विपरीत, दूसरे धड़े ने, जिसमें मुख्यतः हिंदुत्ववादी संगठन और सत्तारूढ़ दल के कुछ समर्थक भी शामिल थे, मंत्री के बयान को 'असंगत' और 'जमीनी हकीकत से दूर' बताया. उनका तर्क था कि जनजातीय क्षेत्रों में होने वाले धर्मांतरण में सीधा प्रलोभन शामिल होता है, जिसे रोकना सरकार का सर्वोच्च कर्तव्य है. एक प्रसिद्ध दक्षिणपंथी विचारक ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा, "जब धर्मांतरण व्यक्तिगत चयन नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन जाता है, तब सरकार आँखें बंद नहीं कर सकती. मंत्री महोदय को जनजातीय क्षेत्रों की सच्चाई देखनी चाहिए, जहां भोले-भाले आदिवासियों को बरगलाया जा रहा है."
इस बयान को कुछ लोगों ने सकारात्मक रूप से देखा है, यह मानते हुए कि मंत्री व्यक्तियों की धार्मिक आज़ादी का सम्मान कर रहे हैं और साथ ही जनजातीय पहचान की संवेदनशीलता को भी महत्व दे रहे हैं. लेकिन सोशल मीडिया पर आलोचकों की संख्या भी कम नहीं है. कई उपयोगकर्ताओं ने इसे राजनीतिक रणनीति करार दिया है — उनका कहना है कि शाह यह बयान अपनी छवि सुधारने और जनजातीय वोट बैंक पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए दे रहे हैं.
पिछले विवादों की याद दिलाते हुए, कुछ आलोचकों ने शाह के उन पिछले बयानों को फिर से उठाया हैं, जिनमें उन्होंने भारतीय सेना में मुस्लिम अधिकारियों के प्रति मजबूत बयानबाज़ी की थी.
वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस ने इस बयान को “ढोंग” बताते हुए कहा है कि शाह धर्म-परिवर्तन पर सचमुच संवेदनशीलता नहीं दिखा रहे हैं, बल्कि वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं. पार्टी नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि जिस तरह धर्म-परिवर्तन को व्यक्तिगत मुद्दा बताकर शाह अपनी स्थिति साफ कर रहे हैं, वह उनकी पिछले विवादित बयानों को ढकने की कोशिश है.
धर्म परिवर्तन को लेकर शाह का यह रुख वर्तमान समय में बहुत संवेदनशील और विवादित है क्योंकि मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में धार्मिक पहचान और जनजातीय अधिकार दोनों ही राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का बड़ा हिस्सा हैं. शाह के समर्थक इसे एक प्रगतिशील दृष्टिकोण के रूप में देखते हैं, जबकि आलोचक इसे सिर्फ एक चुनावी चाल मानते हैं.
यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे सरकार इस बयान पर क्या ठोस कदम उठाती है — क्या धार्मिक आज़ादी की रक्षा के नाम पर नीतिगत बदलाव होंगे, या यह केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहेगा? सोशल मीडिया की उठी आवाज़ और राजनीतिक प्रतिक्रिया इस दिशा में भविष्य के संकेत दे रही है.
इस बयान के बाद, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य का विपक्ष, खासकर कांग्रेस पार्टी, इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है. साथ ही, मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष मंत्री, शाह के इस रुख पर किस प्रकार की आधिकारिक स्थिति लेते हैं, यह भी महत्वपूर्ण होगा. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मंत्री शाह ने यह बयान देकर न केवल एक गहन वैचारिक बहस को जन्म दिया है, बल्कि अपनी ही पार्टी के भीतर एक नई रेखा भी खींच दी है, जो राज्य की आगामी धर्मांतरण नीति और जनजातीय राजनीति को प्रभावित कर सकती है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

