अभिमनोज
समाचार विश्लेषण: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों की चर्चा भले ही राजनीतिक दलों और विश्लेषकों के नजरिये से अलग-अलग हो सकती है, लेकिन इस चुनाव में जिस नेता ने सबसे अप्रत्याशित रूप से सुर्खियां बटोरीं, वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव रहे। बिहार की धरती पर उनका प्रवेश केवल एक स्टार प्रचारक का आगमन नहीं था, बल्कि एक सुविचारित, जातीय-सामाजिक समझ पर आधारित राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था जिसने चुनावी हवा को कई क्षेत्रों में प्रभावित किया।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, भाजपा ने उन्हें उन क्षेत्रों में उतारा जहां यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाता है और जहाँ पारंपरिक रूप से महागठबंधन—विशेषकर RJD—की पैठ मजबूत रही है। चुनाव में मध्यप्रदेश के डॉ. यादव की सक्रिय भूमिका ने राजनीतिक हलकों में धूम मचा दी है। यादव न सिर्फ एनडीए के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल हैं, बल्कि उनकी जनसभाओं और रणनीति को बिहार की सफलता में एक निर्णायक कारक माना जा रहा है। यह घटना मध्य प्रदेश और बिहार की राजनीति को जोड़ने वाला एक असामान्य गठजोड़ बनकर सामने आई है — एक ऐसा गठजोड़ जो सिर्फ चुनावी समर्थन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सामाजिक पहचान और विकास की भावना पर छुआ है।
इस चुनाव में डॉ. मोहन यादव ने बिहार के लगभग 17 बड़े जनसभाओं को संबोधित किया, और कई जिलों में उनके रोड शो व संपर्क कार्यक्रम भी हुए। यह संयोग नहीं था; यह भाजपा की एक बेहद सुनियोजित रणनीति का परिणाम था। बिहार में यादव लगभग 13–14 प्रतिशत की आबादी रखते हैं और कई सीटों में परिणाम तय करने की क्षमता भी। महागठबंधन की राजनीति लंबे समय से यादव-मुस्लिम समीकरण पर आधारित रही है, लेकिन भाजपा ने इस चुनाव में पहली बार इस ब्लॉक में सेंध लगाने की अपनी मंशा को इतने स्पष्ट रूप से दिखाया। डॉ. यादव की बिहार में उपस्थिति उसी दिशा में एक बड़ा कदम थी।
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने उन्हें एक तरह से “community connector” के रूप में प्रस्तुत किया। उनका मध्य प्रदेश का प्रशासनिक अनुभव, जातिगत पृष्ठभूमि और एक विकासवादी नेता की छवि भाजपा की रणनीति में एक ही फ्रेम में फिट होते दिखे। यही कारण रहा कि पार्टी ने उन्हें प्रमुख रूप से बांका, भागलपुर, मधेपुरा, नाथनगर, साथ ही पटना के कुम्हरार और बिक्रम जैसे विधानसभा क्षेत्रों में प्रमुख रैलियों में उतारा—ये सभी क्षेत्र यादव-प्रभावित माने जाते हैं और यहां महागठबंधन लंबे समय से मजबूत स्थिति में रहा है।
अक्टूबर में मोहन यादव के बिहार दौरे ने उस समय ज्यादा ध्यान खींचा जब उन्होंने बांका और मधेपुरा की रैलियों में स्थानीय मुद्दों और रोजगार अवसरों पर केंद्रित भाषण दिए। इन सभाओं में भारी भीड़ उमड़ी और सोशल मीडिया पर कई तस्वीरें व वीडियो वायरल हुए जिनमें बिहार के युवा उनके साथ सीधा संवाद करते नजर आए। इन रैलियों में यादव ने यह संदेश देने की कोशिश की कि “विकास की राजनीति जाति से ऊपर है" और “एनडीए सरकारों ने जहां भी शासन किया है, वहां विश्वसनीय परिणाम दिए हैं।”
इसके बाद उन्होंने पटना में कुम्हरार और बिक्रम विधानसभा क्षेत्रों में दो बड़ी सभाएँ कीं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पटना के इलाकों में उनकी सभाओं का खास असर युवा मतदाताओं पर पड़ा। यह वह वर्ग है जो रोजगार, शिक्षा और स्थिर प्रशासन जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देता है और जातिगत राजनीति से कुछ हद तक दूर जा रहा है। उनकी रैलियों में बड़ी संख्या में कॉलेजों के छात्र, युवा उद्यमी और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी उपस्थित रहे—जिससे संदेश गया कि भाजपा ने युवाओं को साधने के लिए मोहन यादव को “मुख्य ब्रांड” के रूप में प्रस्तुत किया है।
दैनिक जागरण के एक आकलन के अनुसार, डॉ. यादव ने बिहार में कुल 25 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार किया, जिनमें से 21 पर एनडीए उम्मीदवारों को बढ़त मिली है। यह आंकड़ा लगभग 84 प्रतिशत के ‘स्ट्राइक रेट’ को दर्शाता है—जो किसी भी स्टार प्रचारक के लिए प्रभावशाली माना जाता है। यह भी संकेत है कि यादव की सभाओं का वोटों की दिशा और मतदान प्रतिशत पर निश्चित प्रभाव पड़ा है। राजनीतिक जानकार इसे भाजपा के “वोट-ब्लॉक शिफ्टिंग” प्रयोग की सबसे सफल रणनीतियों में से एक बता रहे हैं।
नाथनगर विधानसभा क्षेत्र में आयोजित उनकी रैली भी चर्चा में रही, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर एनडीए की सरकार बनती है, तो “बिहार का विकास नक्शा बदलेगा।” यह वाक्यांश केवल एक चुनावी घोषणा नहीं था, बल्कि भाजपा उन्हें बिहार में एक “विकास वाहक” के रूप में प्रोजेक्ट करती दिखाई दी। इससे उनकी छवि एक प्रचारक से अधिक, एक नीतिगत विश्वास वाले नेता के रूप में तैयार होती दिखी।
बिहार में उनके भाषणों की टोन आक्रामक कम और रचनात्मक ज्यादा रही। वे विपक्ष पर आक्रामक प्रहार के बजाय, तुलना के जरिए “विकास के मॉडल” प्रस्तुत करते दिखे—जैसे मध्य प्रदेश में लागू योजनाओं का उल्लेख, नर्मदा कॉरिडोर, मेडिकल-शिक्षा सुधार, महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम इत्यादि। उनके इन बयानों को बिहार के संदर्भ में जोड़ा गया और एनडीए के विकास एजेंडा को विश्वसनीयता प्रदान करने की कोशिश के रूप में देखा गया। कई युवा मतदाताओं ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “मध्य प्रदेश जैसे मॉडल की ज़रूरत बिहार को है।”
राजनीतिक विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि भाजपा ने मोहन यादव को इसलिए आगे किया क्योंकि वे एक सुगम और विनम्र आचरण वाले नेता हैं, जिनकी प्रतिभा, भाषण शैली और व्यक्तित्व बिहार की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना से काफी मेल खाते हैं। यादव समाज के प्रति उनकी एक जिम्मेदार नेता की छवि भी भाजपा की रणनीति के अनुकूल रही।
मोहन यादव की सभाओं का एक बड़ा असर उन क्षेत्रों में देखा गया जहां महागठबंधन की पकड़ पहले काफी मजबूत थी। कई सीटों पर यादव वोटों का आंशिक झुकाव देखने को मिला, जिसे भाजपा ने अपने पक्ष में भुनाया। यह बदलाव व्यापक नहीं कहा जा सकता, लेकिन 5–12 प्रतिशत का झुकाव भी यदि किसी सीट पर निर्णायक हो, तो चुनाव परिणाम बदल सकता है—और यही मामले कई क्षेत्रों में देखे जाने की बात चुनावी विश्लेषण इंगित करते हैं।
यह घटना मध्य प्रदेश और बिहार की राजनीति को जोड़ने वाला एक नया अध्याय बनकर सामने आई है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय सीमाएं तेजी से धुंधली हो रही हैं, और एक राज्य का नेता दूसरे राज्य में भी प्रभाव पैदा कर सकता है—विशेषकर तब, जब जातिगत एवं विकासात्मक पहचान दोनों मुद्दों पर उसकी विश्वसनीयता हो।
अंततः यह सवाल भी राजनीतिक गलियारों में उठ रहा है कि क्या डॉ. मोहन यादव की यह भूमिका केवल बिहार चुनाव तक सीमित रहेगी या वे भविष्य में भाजपा के राष्ट्रीय राजनीतिक ढांचे का एक बड़ा स्तंभ बनकर उभरेंगे? कई विश्लेषक मानते हैं कि जिस तरह उनका उपयोग रणनीतिक प्रचार के लिए किया गया और जिस तरह उन्होंने बिहार में रैलियों से वास्तविक प्रभाव उत्पन्न किया, उसे भाजपा शीर्ष नेतृत्व भी नोटिस कर रहा होगा। यह संभव है कि आने वाले वर्षों में वे राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की नीतिगत या चुनावी रणनीति में और ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाते दिखाई दें।जो भी हो, बिहार 2025 के चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मोहन यादव अब केवल एक राज्य के मुख्यमंत्री मात्र नहीं रहे, बल्कि वे उन नेताओं में शामिल हो गए हैं जिनकी उपस्थिति दूसरे राज्यों में भी राजनीतिक समीकरण बदल सकती है। उनके द्वारा दौरा किए गए ज्यादातर क्षेत्रों में एनडीए का बेहतर प्रदर्शन इसका ठोस प्रमाण है। इस प्रकार, बिहार में उनका यह अभियान न केवल एनडीए को बढ़त दिलाने में सहायक रहा, बल्कि उनकी अपनी राष्ट्रीय पहचान को भी नई ऊंचाई देने वाला साबित हुआ है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

