अनिल मिश्र/पटना
बिहार प्रदेश में विधानसभा चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर जातीय समीकरणों को ध्वस्त करते हुए प्रदेश में बेहतर राजनीतिक दिशा तय करने के महत्व को स्थापित किया है. बिहार प्रदेश में 243 सीटों वाली विधानसभा में इस बार जातीय प्रतिनिधित्व में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. इस बार के चुनाव परिणाम में सबसे बड़ा झटका यादवों को लगा है.जिनकी सीटें 2020 के 55 से घटकर 28 रह गईं, जबकि मुस्लिम प्रतिनिधित्व में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है. अगर असुदुद्दीन ओवैसी को भी छोड़ दे तो भी. जबकि
इसके विपरीत राजपूत, कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, और भूमिहार जातियों ने अपनी सीटों की संख्या में बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की, जिससे स्पष्ट होता है कि मध्य ओबीसी और सामान्य वर्ग के मतदाताओं ने एकजुट होकर वोट किया. यह चुनाव पारंपरिक माय समीकरण की कमजोर पकड़ और नई जातीय गोलबंदी को दर्शाता है.पिछले कुछ सालों में लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल से बिहार की राजनीति में मजबूत माने जाने वाले यादव-मुस्लिम माय समीकरण को इस बार सबसे बड़ा झटका लगा है. यादवों की सीटें 2020 की 55 से घटकर 2025 में सिर्फ 28 रह गईं. इसी तरह, मुस्लिम विधायकों की संख्या भी 14 से घटकर 11 पर आ गई. लगातार तीन चुनावों की तुलना में यादवों का राजनीतिक ग्राफ नीचे आया है, जो राष्ट्रीय जनता दल के पारंपरिक वोट बैंक में बिखराव को दिखाता है.
यह गिरावट स्पष्ट संकेत है कि पारंपरिक जातीय गोलबंदी कमजोर पड़ी है और मतदाताओं ने अन्य विकल्प तलाशे हैं.बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में पांच दलों के गठबंधन एनडीए ने छप्पर फाड़ सफलता हासिल किया है .इस गठबंधन ने 243 सदस्यों वाली विधानसभा में 202 सीटों पर कब्जा जमाया है. वहीं विपक्षी महागठबंधन को केवल 35 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की इस जीत में सामाजिक समीकरणों का भी योगदान सबसे अधिक है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और इंडिया गठबंधन ने सवर्ण जातियों में सबसे अधिक टिकट राजपूत (ठाकुर) जाति को दिए थे.इन दोनों गठबंधनों से राजपूत(ठाकुर )समुदाय के 49 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे.इनमें से 37 को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और 12 को इंडिया गठबंधन ने टिकट दिया था.इनमें से 35 ने चुनाव में जीत दर्ज की है.इनमें से 33 एनडीए और 2 महागठबंधन से जीते हैं. इस बार की विधानसभा में सबसे अधिक संख्या राजपूत विधायकों की होगी.
बिहार प्रदेश में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में
सामान्य वर्ग ने इस चुनाव में अपनी मजबूत वापसी दर्ज की है. राजपूत विधायकों की संख्या 18 से बढ़कर 32 हो गई, जो इस वर्ग में सबसे अधिक है. भूमिहार विधायकों ने भी 17 से 23 पर पहुँचकर स्थिर प्रदर्शन किया है. इन दोनों जातियों की सीटों में बढ़ोतरी बताती है कि सामान्य वर्ग के मतदाताओं ने एकजुट होकर वोट किया है. हालांकि, ब्राह्मणों की संख्या 12 से 14 हुई, जबकि कायस्थ (3 से 2) कमजोर हुए हैं, लेकिन राजपूत और भूमिहार की बढ़त ने सामान्य वर्ग को शीर्ष तीन समूहों में लाकर खड़ा किया है.जबकि दलित और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के प्रतिनिधित्व में गिरावट और बिखराव देखा गया. दलित विधायकों की संख्या 38 से मामूली घटकर 36 रह गई, जो दर्शाता है कि उनकी भागीदारी लगभग स्थिर रही है. वहीं, अति पिछड़ा वर्ग के विधायकों की संख्या 21 से घटकर सिर्फ 13 रह गई, जो इस वर्ग में वोटों के बड़े बिखराव और कई प्रमुख नेताओं की हार का संकेत देता है. इसके विपरीत, एसटी सीटों में चार गुना उछाल आया है.
यह आँकड़ा दिखाता है कि दलित और अति पिछड़ा वर्ग के वोट अब किसी एक पार्टी के लिए स्थिर नहीं रहे हैं. वहीं यह चुनाव में कुर्मी, कुशवाहा और वैश्य समाज के लिए विशेष रूप से फायदेमंद रहा है, जो मध्य ओबीसी के उदय को दर्शाता है. कुर्मी विधायक 10 से बढ़कर 25 हुए, कुशवाहा 16 से बढ़कर 23 पर पहुँचे, और वैश्य भी 22 से बढ़कर 26 हो गए. इन वर्गों की सीटों में भारी उछाल यह संकेत देता है कि राजनीतिक दलों की रणनीति और टिकट वितरण में इन जातियों का प्रभाव बढ़ा है. यह मध्य ओबीसी वर्ग की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकांक्षा और नई गठबंधन शक्ति को दर्शाता है, जो भविष्य की राजनीति को प्रभावित करेगा.इस बार कौन सी जाति के कितने विधायक बिहार विधानसभा में नजर आएंगे. वह बताते चलें राजपूत: 32,यादव: 28,वैश्य: 26,कुर्मी: 25,कुशवाहा: 23
,भूमिहार: 23
दलित : 36,
ब्राह्मण: 14
,अतिपिछड़ा (ईबीसी)13
,मुस्लिम: 11
कायस्थ: 02 जाति के विधायक बिहार विधानसभा में नजर आएंगे. जबकि ठीक इसके उल्टा साल 2020 में यादव समुदाय के 55 विधायक बने, जबकि कुर्मी के 10 और कुशवाहा के 16 विधायक विजयी हुए. वैश्य समुदाय के 22, राजपूत के 18 और भूमिहार के 17 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. ब्राह्मण के 12, कायस्थ के 3 और पिछड़ा वर्ग से 21 विधायक बने. दलित समुदाय के 38, अनुसूचितजाति और अनूसूचित जनजाति के दो विधायक बने थे. वहीं मुस्लिम समुदाय से 14 विधायक विधानसभा पहुंचे थे. जबकि साल 2015 में यादव समुदाय के सबसे अधिक 61 विधायक बने.
कुर्मी के 16, कुशवाहा के 20 और वैश्य समुदाय से 13 विधायक विजयी हुए. राजपूत के 20, भूमिहार के 17 और ब्राह्मण के 10 विधायकों के साथ आगे रहे. कायस्थ से 4, पिछड़ा वर्ग से 18 और दलित समुदाय से 38 विधायक बने. एसटी से 2 और मुस्लिम समुदाय से 24 विधायक उस चुनाव में चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचने में सफल साबित हुए थे.हालांकि लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पिछले 35 साल की सबसे शर्मनाक हार की तरफ बढ़ गई है. इस बार कहां तो महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल ने साल 2010 के विधानसभा चुनाव में सबसे कम 22 सीटें जीती थीं इसी रास्ते पर इस बार भी आ गई है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

