नई दिल्ली. देश की राजधानी से जुड़ा 2020 दंगों का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में गूंजा, जब गुरुवार को दिल्ली पुलिस ने जेएनयू के पूर्व छात्र शरजील इमाम, उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए अदालत में उनके कथित भड़काऊ भाषणों के वीडियो प्रस्तुत किए। लगभग पाँच साल से जेल में बंद इमाम पर राजद्रोह सहित यूएपीए की गंभीर धाराएं लगी हुई हैं, और दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा जमानत खारिज किए जाने के बाद वे अब सर्वोच्च अदालत के दरवाजे पर राहत की कोशिश कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने अदालत के सामने तर्क दिया कि “बौद्धिक स्तर पर आतंक फैलाने वाले लोग ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों से कहीं अधिक खतरनाक होते हैं।” उन्होंने कहा कि हाल के रेड फ़ोर्ट ब्लास्ट का उदाहरण दिखाता है कि अब डॉक्टरों और इंजीनियरों तक का उपयोग देशविरोधी गतिविधियों में हो रहा है। इसी संदर्भ में पुलिस ने शरजील इमाम के कई भाषणों के वीडियो अदालत में चलाए, जिन्हें वे 2019–20 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शनों के दौरान दिए गए बताते हैं।
इमाम के इन वीडियो को चार स्थानों—जामिया, चकहंद, अलीगढ़ और आसनसोल में दिए गए भाषणों—से लिया गया बताया गया। पुलिस का कहना है कि ये क्लिप्स चार्जशीट का हिस्सा हैं और अदालत को पूरे संदर्भ में आरोपी की नीयत समझनी चाहिए। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि 16 जनवरी 2020 को अलीगढ़ में दिए गए कथित भाषण में इमाम ने कहा कि यदि पाँच लाख लोग जुट जाएँ तो “हम स्थायी रूप से या कम से कम एक महीने के लिए भारत और पूर्वोत्तर को अलग कर सकते हैं।” इसी भाषण में उन्होंने सिलीगुड़ी कोरिडोर—जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है—का जिक्र करते हुए असम की आपूर्ति लाइनें बाधित करने की बात कही।
राजू ने अदालत को बताया कि इमाम ने इस 16 किलोमीटर के ‘चिकन नेक’ को निशाना बनाने की बात कही थी और कहा था कि यदि यह हिस्सा हट जाए तो असम देश से कट सकता है। उन्होंने कहा कि इमाम ने न सिर्फ सीएए और कश्मीर के मुद्दे पर टिप्पणी की, बल्कि बाबरी मस्जिद के फैसले पर अदालत को “नानी याद दिला देने” जैसे शब्द भी बोले थे, जो अदालत की अवमानना की सीमा को छूने वाला रवैया दिखाते हैं।
पुलिस द्वारा प्रस्तुत एक अन्य वीडियो में इमाम कथित रूप से देशव्यापी ‘चक्का जाम’ की अपील करते नज़र आते हैं। इसमें वे लोगों को उकसाते हुए कहते हैं कि दिल्ली ही नहीं, पूरे देश में सड़कों को जाम करना चाहिए ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। पुलिस का दावा है कि इमाम की ये गतिविधियाँ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के समय जानबूझकर तेज की गईं, ताकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा जा सके और देश की छवि को नुकसान पहुँचाया जाए।
हालाँकि इमाम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने पुलिस के सभी आरोपों का विरोध किया और कहा कि अदालत में दिखाए गए वीडियो उनके तीन घंटे के भाषणों के सिर्फ चुनिंदा हिस्से हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इन क्लिप्स को संदर्भ से काटकर पेश किया गया है और उनका इस्तेमाल केवल आरोपी की छवि को नुकसान पहुँचाने और मामले को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है। दवे ने कहा कि पूरे भाषण को देखने पर यह स्पष्ट होगा कि इमाम का इरादा हिंसा भड़काने का नहीं था, बल्कि सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण जनजागरूकता अभियान चलाने का था।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। गुरुवार की बहस समाप्त होने के बाद अदालत ने संकेत दिया कि मामले की सुनवाई शुक्रवार दोपहर भी जारी रहेगी। अब सबकी नज़र इस बात पर है कि सुप्रीम कोर्ट इन वीडियो और तर्कों को किस तरह देखता है—क्या अदालत पुलिस के दृष्टिकोण के अनुरूप इन भाषणों को गंभीर खतरा मानती है या रक्षा पक्ष की दलीलों को प्राथमिकता देते हुए संदर्भ को व्यापक रूप में समझने की कोशिश करती है।
2020 दंगों से जुड़ा यह मामला न सिर्फ कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का भी केंद्र बना हुआ है। सीएए विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में दिए गए भाषणों और उसके बाद हुए दंगों के बीच क्या कोई प्रत्यक्ष संबंध है, यह अभी भी न्यायिक परीक्षण के दायरे में है। जमानत चरण में अदालत का रुख आने वाले समय में इस पूरे केस का स्वरूप प्रभावित कर सकता है। इसलिए शुक्रवार की सुनवाई को लेकर सभी पक्षों में गहरी दिलचस्पी है, क्योंकि यह तय करेगा कि पाँच साल से जेल में बंद शरजील इमाम और अन्य आरोपियों को राहत मिलेगी या उन्हें मुकदमे के पूर्ण होने तक जेल में ही रहना होगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

