नई दिल्ली.देश में श्रम सुधारों को नए रूप में लागू करते हुए केंद्र सरकार ने शुक्रवार को चार व्यापक लेबर कोड्स के क्रियान्वयन की घोषणा कर दी. पुराने और बिखरे हुए 29 श्रम कानूनों को समेकित कर बनाए गए इन कोड्स में कामकाजी घंटों, ग्रेच्युटी पात्रता, वर्क-फ्रॉम-होम व्यवस्था और गिग वर्कर्स के सामाजिक सुरक्षा अधिकारों को लेकर कई अहम बदलाव शामिल किए गए हैं. सरकार का कहना है कि आधुनिक श्रम परिदृश्य के अनुरूप यह कदम न केवल उद्योगों को अधिक सक्षम बनाएगा, बल्कि श्रमिकों के कल्याण और सुरक्षा को भी मजबूत करेगा. इस फैसले को आत्मनिर्भर भारत की दिशा में श्रम सुधारों की ऐतिहासिक पहल बताया गया है.
नए कोड में ग्रेच्युटी पात्रता से जुड़े नियमों को सबसे बड़ा और दूरगामी बदलाव माना जा रहा है. अब तक भुगतान अधिनियम के तहत ग्रेच्युटी का लाभ केवल उन्हीं कर्मचारियों को मिलता था जो पांच साल की निरंतर सेवा पूरी कर लेते थे, लेकिन नए कोड्स इस शर्त को आसान बनाते हैं. सरकार की प्रेस सूचना ब्यूरो की अधिसूचना के अनुसार, फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयी यानी निश्चित अवधि के कर्मचारियों को सिर्फ एक साल की सेवा के बाद ही ग्रेच्युटी का अधिकार मिलेगा. इस कदम का उद्देश्य अस्थायी और नियमित कर्मचारियों के बीच समानता लाना है ताकि सभी को समान वेतन ढांचा, चिकित्सीय लाभ, अवकाश और सामाजिक सुरक्षा अधिकार प्राप्त हो सकें.
सरकार ने वेतन गणना के लिए भी नए प्रावधान लागू किए हैं, जिनके अनुसार कुल पारिश्रमिक का 50 प्रतिशत हिस्सा (या सरकार द्वारा अधिसूचित प्रतिशत) वेतन निर्धारण में शामिल किया जाएगा. यह व्यवस्था ग्रेच्युटी, पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभों की गणना को सरल और समान बनाने के लिए लागू की गई है. निर्यात सेक्टर में कार्यरत फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को भी अब भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभ उपलब्ध होंगे, जिससे रोजगार में स्थिरता और श्रमिक कल्याण दोनों को बढ़ावा मिलेगा.
कामकाजी घंटे भी नए कोड्स में बड़े बदलाव के साथ परिभाषित किए गए हैं. अब उद्योगों को 8 से 12 घंटे की शिफ्ट लागू करने की अनुमति होगी, बशर्ते सप्ताह में कुल कार्य घंटे 48 घंटे से अधिक न हों. पहले दैनिक कार्य समय 9 घंटे से अधिक नहीं हो सकता था. इसके साथ ही ओवरटाइम के भुगतान पर भी स्पष्ट प्रावधान किया गया है, जिसके तहत अतिरिक्त कार्य के लिए मौजूदा वेतन का दोगुना भुगतान करना अनिवार्य होगा. यह बदलाव उद्योगों में लचीलापन बढ़ाएगा और कर्मचारियों के हितों की रक्षा भी करेगा.
कॉन्ट्रैक्टर लाइसेंसिंग व्यवस्था में भी सुधार किए गए हैं. अब ठेकेदार एक ही लाइसेंस लेकर पूरे देश में पांच साल की अवधि तक काम कर सकेंगे, जिससे प्रशासनिक कार्य तेजी और दक्षता के साथ पूरे किए जा सकेंगे. श्रम क्षेत्र में यह बदलाव लंबे समय से मांग में था, खासकर उन उद्योगों में जहां अस्थायी श्रमिकों का बड़ा हिस्सा नियुक्त किया जाता है.
नए लेबर कोड्स की सबसे विशिष्ट और बहुचर्चित विशेषता है कि इसमें पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को औपचारिक रूप से परिभाषित किया गया है. ऐप-आधारित सेवाओं, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल माध्यमों से फ्रीलांस कार्य करने वाले लाखों श्रमिक अब सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आएंगे. इससे उनकी आर्थिक सुरक्षा और कार्यस्थल से जुड़े जोखिमों की भरपाई सुनिश्चित हो सकेगी. तेजी से बढ़ते डिजिटल रोजगार क्षेत्र के लिए यह कदम अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
वर्क-फ्रॉम-होम को भी कोड में औपचारिक मान्यता दी गई है. सेवा क्षेत्र में कंपनियां और कर्मचारी आपसी सहमति से वर्क-फ्रॉम-होम व्यवस्था को अपना सकेंगे. महामारी के बाद कार्यसंस्कृति में आए बदलाव को देखते हुए सरकार ने इस प्रावधान को लचीलापन बढ़ाने और उत्पादकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शामिल किया है.
नई श्रम संहिता से सरकार को उम्मीद है कि रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी, कार्यस्थल अधिक सुरक्षित और मानक आधारित होंगे, और कर्मचारियों को बेहतर अधिकार एवं सुविधाएं मिलेंगी. देश की बड़ी श्रमिक आबादी में इन बदलावों के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव आने वाले समय में और स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

