प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में नोएडा के एक महत्वपूर्ण संपत्ति विवाद पर फैसला सुनाते हुए देश भर के संपत्ति खरीदारों और विक्रेताओं के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी स्थिति को स्पष्ट कर दिया है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि "एग्रीमेंट टू सेल" यानी बिक्री का समझौता कर लेने भर से खरीदार का उस अचल संपत्ति में कोई हक, स्वामित्व या हित पैदा नहीं होता है। यह सिर्फ एक कानूनी अनुबंध है, जिसके आधार पर भविष्य में रजिस्ट्री कराने के लिए मुकदमा किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकल पीठ ने गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) निवासी दीपेंद्र चौहान की पुनरीक्षण अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की और निचली अदालत (ट्रायल कोर्ट) के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसने बिक्री समझौता करने वाले पक्षों को बंटवारे के मुकदमे में शामिल होने की अनुमति दी थी।
मामला क्या था:
यह मामला गौतमबुद्ध नगर के सेक्टर-39 स्थित एक संपत्ति से जुड़ा है, जो मूल रूप से दीपेंद्र चौहान के पिता बी.एस. चौहान की थी। पिता की मृत्यु के बाद, संपत्ति के कानूनी वारिसों की सहमति से, दीपेंद्र की माँ श्रीमती फूल कुमारी चौहान के नाम नोएडा अथॉरिटी के रिकॉर्ड में म्यूटेशन (दाखिल-खारिज) कर दिया गया था। चूंकि दीपेंद्र भी स्वर्गीय बी.एस. चौहान के कानूनी वारिस थे, यह संपत्ति संयुक्त संपत्ति (Joint Property) थी, जिसमें उनका भी हिस्सा था। एक पारिवारिक विवाद के चलते, दीपेंद्र चौहान ने अपनी मां और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ कोर्ट में संपत्ति के बंटवारे (Partition Suit) और उसे बेचने से रोकने के लिए मुकदमा दायर किया था।
मुकदमे के दौरान ही, माँ फूल कुमारी ने दो बाहरी लोगों के पक्ष में संपत्ति का बिक्री समझौता (Agreement to Sell) कर दिया। इन दोनों खरीदारों ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के ऑर्डर I रूल 10(2) और सेक्शन 151 के तहत एक आवेदन दायर कर खुद को चल रहे बंटवारे के मुकदमे में आवश्यक या उचित पक्षकार (Necessary or Proper Party) के रूप में शामिल करने की मांग की। सिविल जज ने उनकी अर्जी स्वीकार कर ली थी, जिसके खिलाफ दीपेंद्र चौहान ने उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण अर्जी दाखिल की।
हाईकोर्ट का निर्णायक फैसला:
जस्टिस मनीष कुमार निगम की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) की धारा 54 की विस्तृत व्याख्या की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
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कोई हक नहीं: धारा 54 के अनुसार, किसी अचल संपत्ति के बिक्री के समझौते से उस संपत्ति में खरीदार का कोई हक, स्वामित्व या हित पैदा नहीं होता है। यह समझौता केवल भविष्य में संपत्ति को बेचने का एक वादा है।
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केवल अनुबंध: बिक्री समझौता सिर्फ एक कानूनी पंजीकृत दस्तावेज या अनुबंध है, जिसके आधार पर खरीदार संपत्ति की रजिस्ट्री (बिक्री विलेख) कराने के लिए बाद में मुकदमा (Specific Performance Suit) कर सकता है।
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पक्षकार नहीं: चूंकि समझौता बिक्री करने वालों का संपत्ति पर कोई कानूनी हक या दावा नहीं बनता है, इसलिए वे चल रहे बंटवारे के मुकदमे के आवश्यक या उचित पक्षकार नहीं हो सकते हैं। उनका कानूनी हित अभी तक संपत्ति पर नहीं बना है।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि दीपेंद्र चौहान की माँ संपत्ति की अकेली मालिक नहीं थीं, बल्कि वह बेटे और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सह-मालिक (Co-owner) थीं। उन्हें पूरी विवादित संपत्ति बेचने का समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि संपत्ति का बंटवारा अभी होना बाकी था।
इस टिप्पणी के साथ, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसने समझौता बिक्री करने वाले दोनों खरीदारों को मुकदमे में शामिल करने की अनुमति दी थी। यह फैसला उन सभी संपत्ति विवादों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है जहां एग्रीमेंट टू सेल के आधार पर लोग संपत्ति पर तत्काल कानूनी अधिकार का दावा करते हैं। कोर्ट ने साफ कर दिया कि संपत्ति का स्वामित्व केवल पंजीकृत बिक्री विलेख (Registered Sale Deed) के माध्यम से ही हस्तांतरित होता है, न कि केवल बेचने के समझौते से।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

