भगवान की पूजा का सबसे सुंदर साधन पुष्पों की अर्चना का महत्व हर समय मानव जीवन में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को बनाए रखता है. शास्त्रों में कहा गया है कि देवता का मस्तक सदैव पुष्पों से सजा रहना चाहिए और किसी भी मूल्यवान धातु, आभूषण या वस्तु की अपेक्षा एक सुन्दर पुष्प भगवान को अधिक प्रिय होता है. इतिहास और पुराणों में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब राजाओं और साधकों ने पुष्प अर्पित करके अपने जीवन में सफलता, ऐश्वर्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त की. पुष्पों की पूजा से न केवल लक्ष्मी और समृद्धि की वृद्धि होती है बल्कि मनुष्य के जीवन में सौभाग्य, पारिवारिक मंगल, स्वास्थ्य और कीर्ति का प्रसार भी होता है.
पुष्प किसी भी प्रकार की प्राकृतिक सुन्दरता और सुगंध के साथ पुण्य का स्रोत होते हैं. तुलसी, बेलपत्र, अगस्त्य, कमल, कुमुद और चम्पा जैसे पुष्पों को शास्त्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. तुलसी और बेलपत्र कभी बासी नहीं होते और इन्हें भगवान को अर्पित करने से विशेष पुण्य मिलता है. पुष्पों को भगवान को ऐसे ही अर्पित करना चाहिए जैसे वे उत्पन्न हुए हों, उलट कर नहीं. किसी भी फूल, पत्ते या फल को उल्टा या बासी, कुम्हलाया हुआ, कीड़ों या चोटों से क्षतिग्रस्त पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए. दूसरे के बगीचे से उठाया गया, चोरी किया हुआ या शरीर पर लगाया हुआ पुष्प भी भगवान को अर्पित नहीं किया जाता.
भगवान गणपति को तुलसी छोड़कर सभी पुष्प प्रिय हैं. गणपति की पूजा में दूर्वा और शमीपत्र विशेष महत्व रखते हैं. दूर्वा की फुनगी में तीन या पांच पत्तियां होनी चाहिए. भगवान शंकर को बिल्वपत्र और धतूरा अत्यंत प्रिय हैं. इसके अलावा अगस्त्य, गुलाब, मौलसिरी, शंखपुष्पी, नागचम्पा, जयन्ती, बेला, जपाकुसुम, बंधूक, कनेर, हारसिंगार, आक, मन्दार, द्रोणपुष्प, नीलकमल और कमल के पुष्प शंकरजी को प्रिय माने जाते हैं. शंकर पर दूर्वा अर्पित करने से आयु वृद्धि होती है और धतूरा अर्पित करने से संतान की प्राप्ति होती है. कुन्द और केतकी शंकरजी को अर्पित नहीं किए जाते.
भगवान विष्णु को काली और गौरी तुलसी अत्यंत प्रिय हैं. तुलसी की ताजी माला या पुष्प भगवान विष्णु को प्रिय होते हैं. दौना के पौधे से बनी माला सूखने के बाद भी भगवान स्वीकार करते हैं. विष्णु को कमल, पारिजात, अड़हुल, बंधूक, लाल कनेर और बर्रे के पुष्प विशेष प्रिय हैं. प्रह्लादजी ने भगवान विष्णु को जाति, शतपुष्पा, चमेली, मालती, यावन्ति, बेला, कुंद, कठचंपा, बाण, चम्पा, अशोक, कनेर, जूही, पाटला, मौलसिरी, अपराजिता, तिलक और अड़हुल के पुष्प अर्पित करने की सिफारिश की है. भगवान विष्णु पर आक और धतूरा नहीं चढ़ाया जाता.
देवी को सभी लाल और सुगंधित श्वेत पुष्प प्रिय हैं. अपामार्ग का फूल देवी के लिए विशेष महत्व रखता है. देवी पर आक और दूर्वा अर्पित नहीं किए जाते. लक्ष्मी पूजा में कमल के पुष्प का विशेष महत्व है. लाल गुलाब, गुड़हल और दूर्वा से पूजा करने पर देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं.
भगवान सूर्य को आक का पुष्प चढ़ाने से सोने के दस अशर्फियां अर्पित करने के बराबर फल मिलता है. सूर्य को कनेर, बिल्वपत्र, पद्म, मौलसिरी, कुश, शमी, नीलकमल और लाल कनेर के पुष्प विशेष प्रिय हैं. सूर्य पर तगर का पुष्प अर्पित नहीं किया जाता.
भगवान श्रीकृष्ण को कुमुद, कनेर, मल्लिका, जाती, चम्पा, तगर, पलाश, दूर्वा, भृंगार और वनमाला अत्यंत प्रिय हैं. कमल का फूल लक्ष्मी का निवास होने के कारण अन्य पुष्पों से अधिक प्रिय है, और तुलसी उससे भी अधिक प्रिय मानी गई है.
अगर किसी के पास पुष्प नहीं हैं तो वे अहिंसा, इन्द्रिय निग्रह, दया, क्षमा, तप, सत्य, ध्यान और ज्ञान जैसे भाव-पुष्पों से मानसिक पूजा कर सकते हैं. इन भाव-पुष्पों से अर्चना करने वालों को किसी भी प्रकार की दंडात्मक यातना का सामना नहीं करना पड़ता.
पूजा में पुष्पों का महत्व केवल धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी अत्यधिक है. पुष्पों की सुगंध और रंग लोगों के मन को प्रसन्न करते हैं और ध्यान और भक्ति की भावना को प्रबल बनाते हैं. फलस्वरूप, भगवान को अर्पित किए गए पुष्प न केवल भक्त के पुण्य को बढ़ाते हैं बल्कि उनके जीवन में सौभाग्य, ऐश्वर्य और मानसिक संतुलन भी लाते हैं.
इस प्रकार, भगवान की पूजा में पुष्प अर्पित करना न केवल एक धार्मिक कृत्य है, बल्कि यह मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में संतुलन और सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक प्रभावशाली साधन भी है. पुष्पों का चयन, उनका उचित अर्पण और भावपूर्ण भक्ति भक्त के जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित करता है.
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