महाकौशल की उपेक्षा या प्रशासनिक तालमेल, जबलपुर सरकारी बस सेवा के पहले चरण से बाहर क्यों?

महाकौशल की उपेक्षा या प्रशासनिक तालमेल, जबलपुर सरकारी बस सेवा के पहले चरण से बाहर क्यों?

प्रेषित समय :20:54:51 PM / Fri, Nov 28th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर. दो दशकों के लंबे इंतजार के बाद सरकारी मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम सेवा को सड़कों पर फिर से उतारने की घोषणा ने जहां पूरे प्रदेश में खुशी और राहत की लहर दौड़ा दी है, वहीं इस सात-चरणीय महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण से महाकौशल के केंद्र और प्रदेश के सबसे प्रमुख शहरों में से एक, जबलपुर को बाहर रखे जाने पर गहन निराशा और संशय उत्पन्न हो गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समक्ष प्रस्तुत की गई कार्ययोजना में इंदौर, भोपाल और उज्जैन जैसे मालवा-निमाड़ क्षेत्र के शहरों को शुरुआती प्राथमिकता दी गई है, जबकि जबलपुर को बाद के चरणों के लिए टाल दिया गया है।जब इस निर्णय का गहरा विश्लेषण किया गया, तो यह सवाल उठने लगा कि क्या यह निर्णय प्रशासनिक सुविधा और कार्य विभाजन (योजनाओं के तालमेल) पर आधारित है, या यह महाकौशल क्षेत्र की उपेक्षा को दर्शाता है।

जबलपुर को पारंपरिक सरकारी बस सेवा (जिसे मध्य प्रदेश राज्य परिवहन निगम के पुनर्जीवित रूप में देखा जा रहा है) के पहले चरण से बाहर रखने के पीछे परिवहन विभाग के अधिकारियों द्वारा एक महत्वपूर्ण और तार्किक कारण दिया जा रहा है, और वह है केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से चल रही इलेक्ट्रिक एसी बस  ई-बस योजना। यह योजना, जिसे 'स्मार्ट सिटी मिशन' और अन्य केंद्रीय कार्यक्रमों के तहत बल मिला है, पहले से ही जबलपुर सहित छह प्रमुख शहरों (इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, सागर और उज्जैन) में आधुनिक इलेक्ट्रिक बसों के बेड़े को स्थापित करने पर केंद्रित है। जबलपुर में इन    -बसों के लिए डिपो, चार्जिंग स्टेशन और शहरी मार्गों का नेटवर्क स्थापित करने का काम अंतिम चरण में है।

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, जबलपुर को पारंपरिक बस सेवा के पहले चरण में शामिल न करने का निर्णय संसाधनों के दोहराव और परिचालन संबंधी जटिलताओं से बचने की एक सोची-समझी रणनीति है। तर्क यह है कि:

  1. ओवरलैप से बचना: चूंकि जबलपुर को शहरी आवागमन के लिए केंद्र सरकार की फंडिंग से जल्द ही  ई-बस   की आधुनिक सुविधा मिलने वाली है, इसलिए राज्य सरकार ने पारंपरिक बस सेवा की शुरुआत उन क्षेत्रों (जैसे इंदौर-भोपाल क्लस्टर) में करने को प्राथमिकता दी, जहां वर्तमान में किसी भी प्रकार की नई सरकारी परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं है।

  2. आधारभूत ढाँचा और समय: पारंपरिक बस सेवा को बड़े स्तर पर अंतर-शहरी और ग्रामीण मार्गों पर चलाने के लिए पुराने, जर्जर हो चुके बस डिपो और वर्कशॉपों के व्यापक जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। जबलपुर में इन ढांचों की मरम्मत में अधिक समय लगने का अनुमान है। इसलिए, उन शहरों को पहले चुना गया जहां तैयारी कम समय में हो सकती थी।

  3. वित्तीय तालमेल: दो अलग-अलग फंडिंग मॉडलों (एक में केंद्रीय अनुदान, दूसरे में राज्य/पीपीपी मॉडल) की सेवाओं को एक ही समय पर एक ही शहर में शुरू करने से बजट और रूट आवंटन में भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती थी।

प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी और परिवहन विभाग के आंतरिक दस्तावेजों के हवाले से यह पता चलता है कि जबलपुर को पहले चरण से बाहर रखने का मुख्य कारण सर्वेक्षण  और आधारभूत संरचनाकी तैयारी से जुड़ा है। परिवहन विभाग के एक अधिकारी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने बताया कि कार्ययोजना को 'ट्रैफिक लोड' और 'रूट वायबिलिटी' के वैज्ञानिक सर्वे पर आधारित रखा गया है। उनका दावा है कि इंदौर-भोपाल-उज्जैन का क्लस्टर, जो 'मालवा-निमाड़' क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, पहले से ही उच्च यातायात घनत्व और यात्री मांग का केंद्र है। इन क्षेत्रों में पुरानी बस सेवाओं के बंद होने के बाद निजी ऑपरेटरों की मनमानी सबसे अधिक रही है, जिसे तत्काल नियंत्रित करना सरकार की पहली प्राथमिकता थी।

हालांकि, यह तर्क महाकौशल के नागरिकों और विशेषज्ञों को रास नहीं आ रहा है। जबलपुर, जो कि 16 जिलों वाले महाकौशल संभाग का मुख्यालय है, न केवल एक बड़ा औद्योगिक और शैक्षणिक केंद्र है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों से आने वाले यात्रियों का मुख्य द्वार भी है। सरकारी सेवा की अनुपस्थिति ने यहां के यात्रियों को भी उतने ही गहरे संकट में डाला है, जितना कि पश्चिमी मध्य प्रदेश के शहरों में। निजी बसों द्वारा मनमाना किराया वसूलना, समय सारिणी का पालन न करना और यात्री सुविधाओं की अनदेखी करना यहाँ भी आम बात है।

जबलपुर को पहले चरण में शामिल न करने के पीछे एक अन्य बड़ा कारण डिपो और वर्कशॉप की स्थिति बताया जा रहा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, जबलपुर में पुराने बस डिपो और केंद्रीय कार्यशालाओं की हालत अन्य प्रमुख शहरों की तुलना में अधिक जर्जर और अप्रयुक्त पाई गई। इन ढाँचों के जीर्णोद्धार और उन्हें नए सिरे से परिचालन के लिए तैयार करने में अधिक समय लगने का अनुमान है। परिवहन विभाग के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि "हमें पहले चरण में ऐसे क्षेत्रों को चुनना था, जहां न्यूनतम निवेश और कम समय में अधिकतम बसें सड़कों पर उतारी जा सकें ताकि जनता को तत्काल राहत मिल सके। जबलपुर और सागर जैसे शहरों में आधारभूत तैयारी में थोड़ा अधिक समय लगेगा, इसलिए उन्हें दूसरे या तीसरे चरण में रखा गया है।"

लेकिन विपक्ष और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस 'सर्वे' के तर्क को 'राजनीतिक बहाना' करार दिया है। उनका आरोप है कि यह निर्णय महाकौशल क्षेत्र की उपेक्षा को दर्शाता है। एक स्थानीय विधायक ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जबलपुर को जानबूझकर पहले चरण से बाहर रखा गया है, जबकि यहां की जनता की मांग सबसे पुरानी और तीव्र रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर परिवहन सेवा जनता के हित में शुरू की जा रही है, तो भौगोलिक समानता और सभी संभागों को प्रतिनिधित्व दिया जाना आवश्यक था।

इधर, जबलपुर के आम यात्री इस बात से निराश हैं कि उन्हें सरकारी बस सेवा के लाभ के लिए और इंतजार करना पड़ेगा। एक दैनिक यात्री, रमेश साहू ने कहा, "हम हर दिन निजी बस मालिकों की मनमानी झेलते हैं। जबलपुर रेलवे का हब है, लेकिन बस स्टैंड पर सुविधाओं का अभाव है। उम्मीद थी कि नई सरकार महाकौशल को प्राथमिकता देगी, लेकिन एक बार फिर हमें इंतजार करने को कहा गया है।"

इस 'कार्य विभाजन' के तर्क के बावजूद, महाकौशल क्षेत्र के नागरिक और नेतागण इस निर्णय से असंतुष्ट हैं। उनका कहना है कि यह तर्क भ्रामक है। जबलपुर, जो कि 16 जिलों वाले संभाग का केंद्र है, की सबसे बड़ी समस्या अंतर-जिला और ग्रामीण कनेक्टिविटी की है।  ई-बस    योजना मुख्य रूप से शहर के आंतरिक परिवहन को कवर करती है, जबकि पारंपरिक बस सेवा ग्रामीण और पड़ोसी जिलों से जबलपुर आने वाले लाखों यात्रियों के लिए जीवन रेखा का काम करती है।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने आरोप लगाया है कि जबलपुर को जानबूझकर उपेक्षित किया जा रहा है। उनका कहना है कि महाकौशल क्षेत्र के यात्रियों को अभी भी निजी बस ऑपरेटरों की मनमानी, मनमाने किराए और सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ेगा, जबकि पश्चिमी मध्य प्रदेश के शहरों को दोनों योजनाओं— ई-बस   और पारंपरिक सेवा—का लाभ मिलेगा।

जबलपुर के एक ट्रांसपोर्ट विश्लेषक ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "जबलपुर को पहले चरण से बाहर रखना केवल प्रशासनिक सुविधा नहीं है, यह क्षेत्रीय असंतुलन की भावना को पुष्ट करता है। E-Bus और पारंपरिक बस सेवा को पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए था, प्रतियोगी के रूप में नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले साधारण यात्रियों को एसी   ई-बस   की नहीं, बल्कि किफायती, समय पर चलने वाली सरकारी साधारण बस सेवा की अधिक आवश्यकता है।"

जनता का मानना है कि जबलपुर जैसे शहर को पहले चरण (जहाँ आवश्यकता है) और  ई-बस    योजना (जहाँ आधुनिकीकरण हो रहा है) दोनों में शामिल होना चाहिए था। वर्तमान निर्णय ने क्षेत्र में यह संदेश दिया है कि महाकौशल की तात्कालिक परिवहन समस्याओं को पश्चिमी मध्य प्रदेश की तुलना में कम प्राथमिकता दी गई है। अब सभी की निगाहें योजना के दूसरे और तीसरे चरण पर टिकी हैं, जब यह देखा जाएगा कि सरकार जबलपुर संभाग में बस सेवा को कितनी तेजी और व्यापकता के साथ शुरू करती है। महाकौशल के नागरिकों को उम्मीद है कि उन्हें केवल 'इंतजार' करने को नहीं कहा जाएगा, बल्कि जल्द ही सड़कों पर सरकारी बसें दौड़ती दिखाई देंगी।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-