भारत की दिग्गज आईटी कंपनियां 2025 में अचानक फिर से आक्रामक मोड में नजर आ रही हैं। दो साल की सुस्ती के बाद उद्योग में खरीद-फरोख़्त की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं और TCS, Infosys, HCLTech, Wipro तथा Tech Mahindra जैसी शीर्ष कंपनियां छोटे लेकिन तकनीकी रूप से सक्षम फर्मों का अधिग्रहण कर रही हैं। इन डील्स के पीछे कई रणनीतिक कारण हैं—AI और इंजीनियरिंग क्षमता को मजबूत करना, ग्लोबल मौजूदगी बढ़ाना, और मौजूदा आर्थिक माहौल का फायदा उठाना। एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह समय आईटी सेक्टर के लिए निर्णायक साबित हो सकता है, और कंपनियां ऐसे सौदों पर दांव लगा रही हैं जिनका असर तुरंत दिख सके।
Tracxn के डेटा के अनुसार, 2025 में शीर्ष 5 आईटी कंपनियों ने कुल 7 अधिग्रहण किए हैं, जबकि 2024 में इनकी संख्या केवल पांच थी और 2023 में तो सिर्फ दो। यह तेजी बताती है कि इंडस्ट्री फिर से निवेश, विस्तार और तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में लौट आई है। सबसे बड़ी डील Wipro की रही, जिसने Harman की DTS बिजनेस यूनिट को 375 मिलियन डॉलर में खरीदा। Infosys ने तीन अहम डील्स की हैं—Verset में 75% हिस्सेदारी खरीदना, The Missing Link का अधिग्रहण और MRE Consulting को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करना। TCS ने डिजिटल मार्केटिंग और क्लाउड क्षमताओं को मजबूत करने के लिए List Engage को 72.8 मिलियन डॉलर में अधिग्रहित किया। वहीं HCLTech ने Nuance का 15.6 मिलियन डॉलर में अधिग्रहण पूरा किया, जबकि इससे पहले वह ASAP Group जैसे इंजीनियरिंग फर्मों को खरीद कर अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है।
इन अधिग्रहणों की एक समान विशेषता है—ये “केपेबिलिटी-ड्रिवेन” यानी तकनीकी क्षमता बढ़ाने के इरादे से की गई डील्स हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि बीते दो वर्षों में इंजीनियरिंग सर्विसेज की मांग तेजी से बढ़ी है। कंपनियां अब केवल पारंपरिक आईटी सेवाओं पर निर्भर नहीं हैं; उन्हें ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग, सेमीकंडक्टर इंजीनियरिंग, एआई मॉडलिंग, डेटा इंजीनियरिंग और इंडस्ट्री 4.0 सॉल्यूशन्स जैसी उभरती सेवाओं में मजबूती चाहिए। इसी के चलते Infosys जैसी कंपनियां ऑटोमोटिव और सेमीकंडक्टर सेक्टर में विशेषज्ञता रखने वाली छोटी कंपनियों को खरीद रही हैं, जबकि Wipro ने ऑडियो और डिजिटल मीडिया इंजीनियरिंग में अपनी तकनीकी पकड़ बढ़ाने के लिए DTS का अधिग्रहण किया।
आईटी रिसर्च फर्म EIIR Trend के फाउंडर और सीईओ परीक जैन का कहना है कि इंजीनियरिंग ही वह वर्ग है जहां सबसे ज्यादा डील्स हुईं, क्योंकि कंपनियों को उन्नत तकनीकी क्षमता की जरूरत स्पष्ट दिख रही है। वे बताते हैं कि बाजार तेजी से बदल रहा है और कंपनियां या तो मजबूत तकनीक चाहती हैं या फिर नए भू-भागों में अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करना चाहती हैं। छोटे, विशेष क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियां इस आवश्यकता को तुरंत पूरा कर देती हैं। वे न केवल नई तकनीकी क्षमता लेकर आती हैं, बल्कि कई बार अपने साथ नए क्षेत्रीय ग्राहक भी जोड़ती हैं।
इस बढ़ती गतिविधि की एक और अहम वजह मौजूदा आर्थिक माहौल है। Everest Group के पार्टनर युगल जोशी बताते हैं कि वर्तमान मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति ऐसी है जिसने अधिग्रहणों को आसान बना दिया है। बाजार कीमतें बड़े खिलाड़ियों के लिए अनुकूल हैं, और कई टेक कंपनियां वित्तीय दबाव के चलते सही कीमत पर बेचने को तैयार हैं। यह स्थिति आईटी दिग्गजों के लिए अवसर लेकर आई है। हालांकि, 2021 और 2020 की तुलना में यह रफ्तार अभी भी कुछ धीमी है। 2021 में सिर्फ Tech Mahindra ने 11 कंपनियां खरीदी थीं और शीर्ष 5 कंपनियों ने कुल 17 डील्स की थीं। फिर भी, 2025 का उछाल यह संकेत देता है कि सेक्टर पुनः विस्तार मोड में लौट रहा है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, Tech Mahindra, Wipro और HCLTech अधिग्रहणों के मामले में पहले से ही आक्रामक खिलाड़ी रहे हैं। Tech Mahindra ने पिछले वर्षों में डिजिटल इंजीनियरिंग और क्लाउड क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई कंपनियां खरीदीं। Wipro और HCLTech ने 2021–22 में चार-चार कंपनियों का अधिग्रहण किया था। इस पैटर्न से साफ है कि इन कंपनियों ने लंबे समय से “क्षमता निर्माण” को अपनी रणनीति का केंद्र बना रखा है।
विश्लेषकों का कहना है कि बड़े आईटी दिग्गज अब भारी-भरकम, अरबों डॉलर वाली डील्स पर कम और “टक-इन” यानी छोटे लेकिन रणनीतिक रूप से उपयोगी अधिग्रहणों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। Phillip Capital के वाइस प्रेसिडेंट और लीड एनालिस्ट करण उप्पल के अनुसार, बड़ी आईटी कंपनियों का पैटर्न साफ नजर आता है—वे ER&D यानी इंजीनियरिंग, रिसर्च और डेवलपमेंट प्लेयर्स को खरीद रही हैं। इन छोटी कंपनियों में अक्सर अत्याधुनिक तकनीक, अनुभवी इंजीनियर और गहरी डोमेन विशेषज्ञता उपलब्ध होती है। इन्हें खरीदने से कंपनी को न केवल तुरंत नई क्षमता मिल जाती है, बल्कि नए ग्राहक और नए बाजारों का रास्ता भी खुल जाता है।
क्वांटम कंप्यूटिंग, हाई-रिसर्च AI लैब्स या अन्य लंबी अवधि वाले महंगे तकनीकी प्रयोगों पर भारतीय आईटी कंपनियां अभी दांव लगाने को तैयार नहीं दिखतीं। युगल जोशी का कहना है कि भारतीय आईटी कंपनियों में इतना जोखिम लेने की भूख फिलहाल नहीं है कि वे वर्षों तक रिटर्न न देने वाले प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाएं। उनका कहना है कि मौजूदा रणनीति स्पष्ट है—डील्स ऐसी जो तुरंत परिणाम दें और जिनका असर वित्तीय रिपोर्ट में जल्द दिख सके।
इन सब घटनाक्रमों से स्पष्ट है कि भारतीय आईटी कंपनियां अपने पोर्टफोलियो को भविष्य की जरूरतों के अनुसार तेज़ी से बदल रही हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल इंजीनियरिंग, क्लाउड ट्रांसफॉर्मेशन और साइबर सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में नए अवसर लगातार उभर रहे हैं और वैश्विक प्रतिस्पर्धा भी कड़ी है। ऐसे में, अधिग्रहण न केवल विकास का साधन बन रहे हैं, बल्कि अस्तित्व और प्रासंगिकता बनाए रखने की रणनीति भी।
2025 की इन तेज खरीदों से यह संकेत मजबूत होता है कि आने वाले समय में आईटी सेक्टर के भीतर प्रतियोगिता और भी तीखी होगी। जो कंपनियां तकनीक और क्षमता में तेजी से आगे बढ़ेंगी, वही वैश्विक आईटी बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर पाएंगी। इसलिए TCS, Infosys, HCLTech, Wipro और Tech Mahindra का यह अधिग्रहण अभियान सिर्फ निवेश नहीं, बल्कि भविष्य की लड़ाई की तैयारी भी है।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

