नई दिल्ली. भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने सुप्रीम कोर्ट में चल रही उस बहस पर कड़ा रुख अपनाया है, जिसमें यह आरोप लगाया जा रहा है कि देशभर में जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision — SIR) मतदाता सूचियों से बड़ी संख्या में नाम काटने और जनता के मताधिकार को प्रभावित करने की सोची-समझी प्रक्रिया है। आयोग ने अदालत में दायर अपने हलफनामे में स्पष्ट किया कि “जन-वंचना” या ‘mass disenfranchisement’ का दावा न केवल तथ्यहीन है, बल्कि इस संवैधानिक प्रक्रिया को जान-बूझकर राजनीतिक रंग देने का प्रयास है।
आयोग की ओर से दायर जवाब में कहा गया कि SIR एक नियमित, तकनीकी और प्रशासनिक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अधिक सटीक और अद्यतन बनाना है। यह हर राज्य में समय-समय पर किया जाता है और इसमें किसी भी नागरिक का नाम बिना निर्धारित प्रक्रिया के नहीं हटाया जाता। आयोग ने यह भी रेखांकित किया कि यह पूरी तरह एक “सहभागी और सहयोगात्मक अभ्यास” है, जिसमें मतदाताओं, राजनीतिक दलों, स्थानीय प्रशासनों और बूथ लेवल अधिकारियों तक सभी हितधारक शामिल होते हैं।
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि बिहार में SIR का सफल समापन इस बात का प्रमाण है कि बड़े पैमाने पर मतदाता नाम काटने या किसी समूह को निशाना बनाने के आरोप मनगढ़ंत हैं। बिहार में अभियान के दौरान लाखों दावों एवं आपत्तियों को निपटाया गया और हर प्रक्रिया आवाजाही के साथ, जनता और राजनीतिक दलों की भागीदारी में की गई। आयोग के अनुसार यह प्रमाण है कि SIR न किसी गुप्त प्रक्रिया की तरह चलता है और न ही इसका उद्देश्य मतदाताओं को सूची से बाहर करना है, बल्कि यह एक निरंतर सुधार तंत्र का हिस्सा है।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न याचिकाओं के माध्यम से यह आरोप लगाया था कि SIR प्रक्रिया वास्तव में नागरिकता साबित कराने की एक अप्रत्यक्ष पहल है, जो कथित रूप से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू करने जैसा कदम है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मतदाताओं से दस्तावेज़ लिए जा रहे हैं, स्थानीय सत्यापन हो रहा है और नाम हटाने का जोखिम कई समुदायों पर अधिक है। इन याचिकाओं में ‘सोशल ऑडिट’ की मांग भी की गई थी, जिसके माध्यम से स्वतंत्र संस्थाएं मतदाता सूची में हो रहे बदलावों की जांच कर सकें।
निर्वाचन आयोग ने इस मांग को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि SIR के दौरान दावा-आपत्ति (claims and objections) चरण पहले से ही उसी तरह की प्रक्रिया उपलब्ध कराता है, जो किसी भी सोशल ऑडिट का उद्देश्य होता है। आयोग ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को अपने नाम जोड़ने, संशोधित करने या हटाए जाने पर आपत्ति दर्ज कराने का अधिकार है। यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट इसमें हर कदम पर शामिल रहते हैं।
आयोग ने अदालत को याद दिलाया कि मतदाता सूची एक “जीवंत दस्तावेज़” है जिसमें लगातार बदलाव होते हैं—कुछ लोग नए मतदाता बनते हैं, कुछ स्थानांतरित होते हैं, कुछ मृत्यु होती है और कुछ बार-बार सत्यापन से गुजरते हैं। ऐसे में यह आरोप कि लाखों नाम एक झटके में काटे जा रहे हैं, वास्तविक तथ्यों और प्रक्रिया की समझ के बिल्कुल विपरीत है।
ECI ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी अधिकारी मतदाता सूची से किसी का नाम मनमाने ढंग से नहीं काट सकता। प्रत्येक निर्णय रिकॉर्ड में दर्ज होता है, हर हटाए गए नाम का अलग आधार होता है और मतदाता को सूचना देने की प्रक्रिया भी निर्धारित है। इसके अलावा राजनीतिक दलों को भी अपडेटेड ड्राफ्ट सूचियों तक निरंतर पहुंच उपलब्ध कराई जाती है। आयोग के अनुसार, यदि कहीं त्रुटि मिलती है तो उसे ठीक करने की जिम्मेदारी भी पूर्ण रूप से तय होती है।
हलफनामे में कहा गया कि देश के कई हिस्सों में फैलाए जा रहे भ्रम, गलत सूचनाओं और डर का सीधा उद्देश्य इस प्रक्रिया को राजनीतिक विवाद का विषय बनाना है। आयोग ने कहा कि चुनावी रोल की सफाई कोई नई चीज नहीं है—यह दशकों से जारी एक नियमित प्रक्रिया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसे लेकर अनावश्यक संदेह पैदा किया जा रहा है। आयोग ने यह भी कहा कि उसकी भूमिका संवैधानिक रूप से स्वतंत्र है और वह न किसी सरकार के निर्देश पर चलता है, न किसी राजनीतिक उद्देश्य से प्रभावित होता है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आयोग ने यह भी बताया कि SIR में तकनीक का उपयोग बढ़ा है, ताकि डुप्लीकेट प्रविष्टियां, गलत पते, मृत व्यक्तियों के नाम और अनुपस्थित मतदाताओं के रिकॉर्ड को ठीक किया जा सके। आयोग ने कहा कि तकनीक आधारित सत्यापन से मतदाता सूची अधिक सटीक बनती है, और यह मतदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
आयोग का रुख यह दर्शाता है कि वह SIR को लेकर उठे विवाद को गंभीरता से ले रहा है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट कर रहा है कि निर्वाचन प्रक्रियाओं पर अनावश्यक और राजनीतिक आरोप लगाना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए हानिकारक है। आयोग के अनुसार, यदि किसी मतदाता को लगता है कि उसके नाम से छेड़छाड़ हुई है, तो दावा-आपत्ति चरण उपलब्ध है और उसे तत्काल सुधार किया जा सकता है। आयोग ने कहा कि यह अधिकार इतना व्यापक है कि किसी सोशल ऑडिट की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती।
इस मामले में अब अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट तय करेगा, जहां याचिकाकर्ताओं और निर्वाचन आयोग की दलीलों पर विस्तृत विचार होगा। हालांकि आयोग का यह हलफनामा स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि वह इस मुद्दे को “राजनीतिकरण” नहीं बनने देना चाहता और पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और मतदाता अधिकारों की रक्षा का भरोसा दिला रहा है।
SIR को लेकर यह कानूनी बहस आने वाले महीनों में देश के लोकतांत्रिक ढांचे, मतदाता सूची की विश्वसनीयता और चुनावी प्रक्रियाओं में जन-विश्वास की दिशा तय कर सकती है। आयोग के कठोर रुख और तथ्यों पर आधारित दलीलों ने यह संदेश दिया है कि मताधिकार से जुड़े किसी भी मुद्दे पर न भ्रम फैलाया जाएगा, न किसी नागरिक को उसके अधिकार से वंचित होने दिया जाएगा।
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

