बांग्ला बचाओ यात्रा के दौरान दो सौ से अधिक माकपा कार्यकर्ता तृणमूल में शामिल, चुनाव से पहले बंगाल की राजनीति में भूचाल

बांग्ला बचाओ यात्रा के दौरान दो सौ से अधिक माकपा कार्यकर्ता तृणमूल में शामिल, चुनाव से पहले बंगाल की राजनीति में भूचाल

प्रेषित समय :22:53:48 PM / Sun, Nov 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

कोलकाता. पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक तापमान चरम पर है. शनिवार, 29 नवंबर से शुरू हुई बांग्ला बचाओ यात्रा के दौरान ही वामपंथी दल माकपा को एक बड़ा झटका लगा है. उत्तर बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के गरल बाड़ी इलाके में दो सौ से अधिक माकपा कार्यकर्ताओं ने अचानक अपना रुख बदलते हुए तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. यात्रा की शुरुआत के तुरंत बाद हुई यह घटना न केवल वाम दलों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है, बल्कि पूरे राज्य में चुनावी समीकरणों को भी अचानक बदलने वाली साबित हो रही है.

स्थानीय सूत्रों और क्षेत्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गरल बाड़ी पंचायत समिति, जहां कभी माकपा का प्रभाव और पकड़ मजबूत माना जाता था, अब तृणमूल के लिए एक अवसर क्षेत्र के रूप में उभर रहा है. शनिवार को जिला परिषद अध्यक्ष कृष्ण रॉय बर्मन की मौजूदगी में बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक रूप से तृणमूल का झंडा थामा. भीड़ में अनेक वे कार्यकर्ता भी थे जो पिछले पंचायत चुनावों में माकपा को स्थानीय समर्थन जुटाने में प्रमुख भूमिका निभाते थे. तृणमूल नेताओं का दावा है कि यह सिर्फ शुरुआत है और आने वाले समय में माकपा समेत अन्य दलों से भी कई लोग उनके पक्ष में शामिल हो सकते हैं.

स्थानीय राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो गरल बाड़ी पंचायत समिति में कुल इक्कीस सीटें हैं. वर्तमान में तृणमूल के पास बहुमत है जबकि माकपा के पास मात्र सात सीटें बची हैं. भारतीय जनता पार्टी यहां केवल एक सीट पर सिमटी हुई है. ऐसे में माकपा कार्यकर्ताओं का यह सामूहिक दलबदल सीधे स्थानीय संगठनात्मक ढांचे को कमजोर करने वाला माना जा रहा है. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर बंगाल, जिसमें लंबे समय से सत्ता-विरोधी भावनाएँ तेज रही हैं, आगामी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकता है. ऐसे में माकपा के लिए यह बड़ा झटका अपने आप में एक संकेत है कि पार्टी के अंदर असंतोष या भविष्य को लेकर संशय बढ़ रहा है.

तृणमूल नेताओं ने यह भी कहा है कि इस शामिल होने वाली भीड़ में केवल माकपा ही नहीं बल्कि अन्य दलों से आए लोग भी शामिल थे. तृणमूल के पूर्व जिला अध्यक्ष चंदन भौमिक ने दावा किया कि कुल मिलाकर तीन सौ से भी अधिक लोग नए सिरे से पार्टी में आए हैं और यह सिलसिला जारी है. उनका कहना है कि क्षेत्र में तृणमूल की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और लोग वाम दलों एवं भाजपा से दूरी बनाकर तृणमूल को एक स्थिर नेतृत्व के रूप में देख रहे हैं.

हालांकि भाजपा ने इस दावे को पूरी तरह सिरे से खारिज कर दिया. भाजपा के पूर्व जिला सचिव श्याम प्रसाद ने तंज भरे अंदाज में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तृणमूल भ्रम फैला रही है और वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट है. उनके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में तृणमूल की स्थिति कमजोर होती जा रही है और लोग पार्टी से दूरी बनाकर अन्य विकल्पों की तलाश कर रहे हैं. उन्होंने तृणमूल द्वारा बताए गए आंकड़ों को पूरी तरह मनगढ़ंत बताया.

दूसरी ओर माकपा संगठन भी इस घटना से असहज दिखा. पार्टी के जिला समिति सदस्य इस्माइल हक ने कहा कि वे बांग्ला बचाओ यात्रा की तैयारियों में व्यस्त थे और उन्हें इस दलबदल की जानकारी तक नहीं थी. उन्होंने माना कि घटना गंभीर है और इसकी जांच की जाएगी कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पार्टी से निराश क्यों हुए. माकपा के स्थानीय इकाइयों में लंबे समय से यह शिकायत आ रही थी कि संगठन उतनी मजबूती के साथ जनता के बीच नहीं उतर पा रहा जितना उतरना चाहिए. यात्रा का मकसद भी इसी खोए हुए जनाधार को पुनर्जीवित करना था, लेकिन यात्रा के पहले चरण में ही ऐसी घटना का होना पार्टी नेतृत्व के लिए एक बड़ी चेतावनी है.

उत्तर बंगाल के राजनीतिक इतिहास को देखें तो यह क्षेत्र लंबे समय तक वामपंथी राजनीति का गढ़ रहा है. जलपाईगुड़ी, कूचबिहार और अलीपुरद्वार में वाम दलों के प्रति एक मजबूत आधार रहा है. लेकिन पिछले एक दशक में यह आधार धीरे-धीरे कमजोर पड़ा है और तृणमूल ने यहां अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है. वहीं भाजपा ने भी कई बार इस क्षेत्र को अपने लिए एक संभावित विस्तार क्षेत्र के रूप में देखा है. हालांकि पिछले दो वर्षों में भाजपा की पकड़ अपेक्षाकृत ढीली हुई है. तमाम दलों के इस संघर्ष में माकपा का कार्यकर्ता आधार टूटना आगामी चुनाव में उसे और कमजोर कर सकता है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह दलबदल केवल एक स्थानीय घटना नहीं है बल्कि आने वाले समय में व्यापक राजनीतिक प्रभाव डाल सकता है. खासकर उस समय जब राज्य में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अभियान चल रहा है और सभी दल अपने-अपने स्तर पर जनसंपर्क बढ़ाने में जुटे हुए हैं. तृणमूल पूरी क्षमता से उत्तर बंगाल में खोए वोटों को वापस पाने की कोशिश कर रही है, जबकि वाम दल इस क्षेत्र में अपनी जमीन को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

मौजूदा राजनीतिक माहौल में जो तस्वीर उभर रही है, वह बताती है कि आने वाले विधानसभा चुनाव बेहद कड़े मुकाबले वाले होंगे. राज्य की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल सात मई दो हजार छब्बीस को समाप्त हो रहा है, इसलिए चुनाव मार्च-अप्रैल के बीच होने की संभावना है. इससे पहले राजनीतिक दलों की सक्रियता और रणनीति निर्माण का चरण बेहद तीव्र हो चुका है. रैलियाँ, पदयात्राएँ, घोषणाएँ और दल-बदल की घटनाएं अब तेजी से सामने आ रही हैं.

बांग्ला बचाओ यात्रा का उद्देश्य था जनता को यह संदेश देना कि वाम दल अभी भी राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन यात्रा के पहले ही दिन जिस तरह कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर तृणमूल का साथ पकड़ा, उसने इस उद्देश्य को चुनौतीपूर्ण बना दिया है. इस घटनाक्रम ने न केवल वाम राजनीति को एक नई परीक्षा के सामने खड़ा किया है बल्कि आने वाले चुनाव में बड़े स्तर पर राजनीतिक पुनर्संरचना के संकेत भी दे दिए हैं.

राज्य की जनता अब यह बारीकी से देख रही है कि किस दल के साथ कितनी ताकत और कितनी विश्वसनीयता जुड़ी है. तृणमूल के लिए यह सामूहिक शामिल होना एक शक्ति-संकेत है, जबकि माकपा के लिए आत्ममंथन का मौका. उत्तर बंगाल की इस घटना ने पूरे राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है और अब अगले कुछ महीनों में यह साफ हो जाएगा कि यह दलबदल केवल शुरुआत है या आने वाले चुनावों की बड़ी तस्वीर का हिस्सा.राजनीति के जानकार यह भी कहते हैं कि कार्यकर्ताओं का इतना बड़ा समूह तभी पार्टी छोड़ता है, जब नेतृत्व से कनेक्शन कमजोर हो जाता है या स्थानीय संगठनात्मक ढांचा टूटने लगता है. CPM के भीतर लंबे समय से यह शिकायत रही है कि पार्टी ने युवा नेतृत्व को पर्याप्त जगह नहीं दी और पुराने ढांचे में बदलाव की रफ्तार धीमी रही. दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस ने बूथ स्तर तक तरह-तरह की योजनाओं और लोकल लेवल पर सक्रियता के माध्यम से अपनी पकड़ मजबूत की है. गरल बाड़ी में इसी वजह से बड़ी संख्या में लोग TMC में शामिल हुए हैं.

2026 के विधानसभा चुनावों में अब सिर्फ कुछ महीनों का समय बचा है और चुनाव आयोग पहले ही मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया शुरू कर चुका है. राज्य में हर राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को जोड़ने और नए चेहरे शामिल करने में जुटा हुआ है. लेकिन चुनाव से पहले ही CPM का इस तरह कमजोर होना वाम मोर्चे की रणनीति के लिए बड़ा सवाल है. अगर यह स्थिति उत्तर बंगाल के अन्य जिलों में भी दोहराई गई, तो पार्टी को चुनाव में गंभीर नुकसान उठाना पड़ सकता है.

राज्य की राजनीति के लिए यह घटना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वामदलों ने लंबे समय तक बंगाल पर राज किया है और यह क्षेत्र उनकी सबसे मजबूत जमीनों में से एक रहा है. लेकिन समय के साथ पार्टी ने अपने जनाधार का बड़ा हिस्सा खो दिया है. अब जब चुनावी मौसम अपने चरम पर है, ऐसे में कार्यकर्ताओं का यह दलबदल चुनावी समीकरण को पूरी तरह बदल सकता है. तृणमूल कांग्रेस इस घटना को अपनी मजबूती के रूप में देख रही है, जबकि CPM इसे अस्थायी और चुनावी दबाव का परिणाम बता रही है. हालांकि, सच्चाई यह है कि इस तरह के घटनाक्रम चुनाव से ठीक पहले जनमत को प्रभावित करते हैं और माहौल को नए सिरे से गढ़ते हैं.

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि CPM अपनी ‘बांग्ला बचाओ यात्रा’ को किस दिशा में आगे बढ़ाती है और क्या वह इस घटना को संभालकर अपने संगठन को फिर से मजबूत कर पाती है या नहीं. फिलहाल इतना साफ है कि बंगाल की राजनीति एक बार फिर से बड़े बदलावों के मुहाने पर खड़ी है और चुनावी जंग अब और ज्यादा तेज होने वाली है.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-