2026 में पड़ेगा 13 महीनों का दुर्लभ अधिकमास, ज्येष्ठ माह दो बार आने से बनेगा अनोखा संयोग

2026 में पड़ेगा 13 महीनों का दुर्लभ अधिकमास, ज्येष्ठ माह दो बार आने से बनेगा अनोखा संयोग

प्रेषित समय :21:54:59 PM / Sun, Nov 30th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

आने वाला वर्ष 2026 हिंदू पंचांग की दृष्टि से कई मायनों में अलग और महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इस बार विक्रम संवत में एक दुर्लभ खगोलीय-सांस्कृतिक संयोग बनने जा रहा है। नए वर्ष 2083 विक्रम संवत में कुल 13 महीने होंगे, जिसमें ज्येष्ठ यानी जेठ का महीना दो बार पड़ेगा। यह अतिरिक्त महीना अधिकमास कहलाता है, जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। हर 32 माह 16 दिन और कुछ घंटों के अंतराल पर उत्पन्न होने वाला यह अतिरिक्त समय पंचांग में एक पूरा महीना जोड़ देता है, ताकि सूर्य और चंद्र वर्ष के बीच मौजूद अंतर को संतुलित किया जा सके। यही वजह है कि हिंदू वर्ष कभी–कभी 12 के बजाय 13 महीनों का भी हो जाता है।

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष की शुरुआत 1 जनवरी को मानी जाती है, जबकि हिंदू परंपरा में नया वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। वर्तमान में विक्रम संवत 2082 चल रहा है और फाल्गुन इसका अंतिम महीना माना जाता है। खगोलीय गणनाओं के अनुसार 2026 में विक्रम संवत 2083 की संरचना और लंबाई में एक विशेष बदलाव दिखाई देगा, क्योंकि इस वर्ष एक सामान्य ज्येष्ठ के साथ एक अधिक ज्येष्ठ भी रहेगा, जिससे यह अवधि लगभग 58 से 59 दिनों तक विस्तारित हो जाएगी।

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह 22 मई से 29 जून 2026 तक रहने वाला है, जबकि अधिकमास का आरंभ 17 मई 2026 से होगा और 15 जून 2026 को इसका समापन होगा। यानी अधिकमास पहले शुरू होगा और फिर पूरा पहला ज्येष्ठ समाप्त होने के बाद सामान्य ज्येष्ठ क्रम में आएगा। इस तरह दो ज्येष्ठ एक ही वर्ष में पड़कर समय-चक्र को संतुलित करेंगे और नई संवत्सरी गणना अपने सही मार्ग पर लौट आएगी।

हिंदू पंचांग में अधिकमास का जोड़ना आवश्यक होता है, क्योंकि चंद्र मास का चक्र सूर्य वर्ष की तुलना में छोटा होता है। दोनों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर हर साल बढ़ता जाता है, जिसे कुछ वर्षों बाद एक पूरा महीना जोड़कर संतुलित किया जाता है। यदि यह सुधार न किया जाए, तो मौसम, त्यौहार और मास के संबंध बिगड़ने लगेंगे। इसी वैज्ञानिक आवश्यकता को परंपरा ने अधिकमास के रूप में स्वीकार किया है, जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी विशेष माना जाता है। अधिकमास में देवताओं के ‘अशुभ सोते रहने’ जैसी लोक मान्यताओं के कारण विवाह, गृहप्रवेश, नई संपत्ति खरीदना और बड़े शुभ कार्य करने की मनाही रहती है। परंतु इस पूरे माह को जप, तप, दान, व्रत और ध्यान के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार अधिकमास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है, क्योंकि यह विष्णु भगवान को समर्पित विशेष समय है। माना जाता है कि इस माह में दान-पुण्य, व्रत और पूजा का फल सामान्य दिनों से कई गुना अधिक मिलता है। कई भक्त इस अवधि में धार्मिक ग्रंथों का पाठ, तीर्थ स्नान, पुण्यकर्म, व्रत और आध्यात्मिक साधनाएं करते हैं। यह समय आत्मविश्लेषण, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

साल 2026 में पड़ने वाला ज्येष्ठ अधिकमास इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जेठ का महीना स्वयं ऋतु, तापमान और धार्मिक परंपराओं की दृष्टि से विशेष माना जाता है। इस महीने में देवताओं के ग्रीष्मकालीन उत्सव, पानी–दान, वृक्ष–पूजन और तपस्वी परंपराओं से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसे में जब यह माह दोबारा आएगा, तो इसकी अवधि लगभग दोगुनी होकर 58 से 59 दिनों तक फैल जाएगी, जिससे भक्तों और पंचांग रुचि रखने वालों के बीच यह एक चर्चा का विषय बनना स्वाभाविक है।

हालाँकि, अधिकमास में कुछ पारंपरिक सावधानियाँ भी बताई जाती हैं। विवाह और मांगलिक कार्य न करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसे स्थायी शुभ फल न देने वाला माना जाता है। प्रॉपर्टी खरीदने, नया व्यवसाय शुरू करने या बड़े जीवन-निर्णयों को टालना बेहतर होता है। वहीं पूजा-पाठ में लापरवाही न करने की भी हिदायत दी जाती है, क्योंकि यह मास पुण्य संचित करने के लिए विशेष माना गया है। कई स्थानों पर हरिद्वार, नासिक, वाराणसी, उज्जैन, पुष्कर और जगन्नाथपुरी जैसे तीर्थों में अधिकमास के दौरान विशेष स्नान और कर्मकांड भी आयोजित होते हैं।

अधिकमास को लेकर अक्सर यह भ्रम रहता है कि यह अशुभ समय है, जबकि वास्तव में यह मास किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के लिए निषेधात्मक तो है, परंतु आत्मिक साधना और धर्मकर्म के लिए बेहद श्रेष्ठ माना गया है। यही कारण है कि इसका नाम ‘पुरुषोत्तम मास’ रखा गया, ताकि लोगों को यह समझाया जा सके कि यह समय भगवान विष्णु की कृपा का एक विशेष अवसर है।

2026 का यह अतिरिक्त महीना पंचांग प्रेमियों, धार्मिक मान्यताओं को मानने वालों और खगोलीय तथ्यों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक दिलचस्प और दुर्लभ संयोग लेकर आ रहा है। सूर्य–चंद्र गणना में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुए अंतर को संतुलित करने वाला यह महीने का विस्तार समय-चक्र को पुनः व्यवस्थित तो करता ही है, साथ ही मानव समाज और परंपराओं को भी जोड़ते हुए आध्यात्मिकता की दिशा में एक महीना अतिरिक्त प्रदान करता है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-