झारखंड में मतदाता नाम कटौती पर बढ़ा विवाद, विजय शंकर नायक बोले लोकतंत्र पर ‘सीधा हमला’

झारखंड में मतदाता नाम कटौती पर बढ़ा विवाद, विजय शंकर नायक बोले लोकतंत्र पर ‘सीधा हमला’

प्रेषित समय :20:24:17 PM / Thu, Dec 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अनिल मिश्र/रांची

आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर नाम कटौती की प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने झारखंड के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को ईमेल के माध्यम से भेजे पत्र में चुनाव आयोग की मौजूदा प्रक्रिया को “लोकतंत्र पर सीधा हमला” और “मतदाता उन्मूलन अभियान” करार देते हुए कहा कि यदि 12 लाख गरीब, प्रवासी, आदिवासी-मूलवासी और ग्रामीण मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए तो इसका गंभीर परिणाम होगा। उनके मुताबिक, मताधिकार पर यह प्रहार जनता को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर देगा और चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता ही संदिग्ध हो जाएगी।

नायक ने आरोप लगाया कि यह पूरा exercise ऐसे समय में हो रहा है जब प्रवासी मजदूर, आदिवासी-मूलवासी, दलित-पिछड़ा समुदाय और गरीब ग्रामीण families पहले से ही प्रशासनिक उदासीनता का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लाखों लोग रोजगार की तलाश में राज्य से बाहर जाते हैं, ग्रामीण और शहरी इलाकों में पता लगातार बदलता है, और इस पूरी व्यवस्था में बीएलओ की पहुंच बहुत सीमित है। ऐसे में बिना मजबूत फील्ड-वेरिफिकेशन के नाम हटाना उन्हें “संवैधानिक अपराध” लगता है।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि यह कटौती लागू हुई, तो झारखंड की जनता इसे “लोकतंत्र की चोरी” मानेगी और इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी। नायक का दावा है कि समुदायों के बीच गहरी बेचैनी है और लोग इसे अपने अस्तित्व और अधिकारों से सीधा जुड़ा मुद्दा मान रहे हैं।

इसी के साथ नायक ने चुनाव आयोग के समक्ष 6 प्रमुख सुझाव रखे हैं, जिन्हें तत्काल लागू करने की मांग की गई है। उन्होंने कहा कि जैसे सरकार “आपके द्वार” अभियान चलाती है, वैसे ही चुनाव आयोग को “ईसीआई आपके द्वार” अभियान शुरू करना चाहिए। हर पंचायत, वार्ड और नगर निकाय में सप्ताह में दो से तीन बार विशेष कैंप लगाए जाएं ताकि लोग सीधे मौके पर अपने नाम जुड़वाने या सुधार कराने की सुविधा पा सकें।

नायक की दूसरी मांग है कि बीएलओ, सुपरवाइज़र और एइआरओ के मोबाइल नंबर पंचायत भवनों और अखबारों में अनिवार्य रूप से प्रकाशित किए जाएं। उन्होंने कहा कि कई इलाकों में लोग अपने बीएलओ से संपर्क भी नहीं कर पाते, जिससे भ्रम की स्थिति बनी रहती है। तीसरा सुझाव यह है कि जहां भी 100 से अधिक नाम कटे हों, वहां जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो। उनका कहना है कि बड़े पैमाने पर नाम कटने के पीछे अक्सर प्रशासनिक लापरवाही या गलत सर्वे जिम्मेदार होता है।

चौथा सुझाव यह है कि बिना दो लिखित नोटिस दिए और घर-घर भौतिक सत्यापन किए एक भी नाम न हटाया जाए। उन्होंने कहा कि कई लोगों को तो यह पता भी नहीं चलता कि उनका नाम कब और क्यों हटाया गया। पांचवां सुझाव प्रवासी मजदूरों से जुड़ा है—उन्होंने मांग की कि जो लोग बाहर काम कर रहे हैं, उनके नाम काटने से पहले कम से कम छह माह का सत्यापन अवधि अनिवार्य हो ताकि उन्हें अपना दावा पेश करने का पर्याप्त अवसर मिल सके। छठा सुझाव यह है कि दूरस्थ आदिवासी इलाकों में “मोबाइल वोटर सेवा वैन” चलाई जाए, ताकि ऐसे समुदाय भी नियमित चुनाव प्रक्रिया से जुड़े रहें जिन तक प्रशासनिक टीमों की पहुंच अभी भी सीमित है।

नायक का आरोप है कि मौजूदा स्थिति से ऐसा प्रतीत होता है मानो मतदाता जोड़ने के बजाय उन्हें हटाने की तैयारी हो रही है, जो लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “चुनाव आयोग का काम वोटर बनाना है, काटना नहीं। अगर 12 लाख नाम कटे तो झारखंड चुप नहीं बैठेगा। यह लोकतंत्र की चोरी है और इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

झारखंड के कई हिस्सों में इस मुद्दे को लेकर तनाव और असंतोष पनप रहा है। सामाजिक संगठनों, पंचायत प्रतिनिधियों और युवा समूहों के बीच यह चर्चा तेजी से फैल रही है कि क्या राज्य में मताधिकार पर कोई बड़ा संकट खड़ा हो रहा है। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से इस विवाद पर अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। अब नजर इस बात पर है कि आयोग नायक के सुझावों पर विचार करता है या स्थिति और गहराती है। जनता की निगाहें आने वाले दिनों में होने वाले फैसलों पर टिकी हैं, क्योंकि यह मामला केवल चुनावी प्रक्रिया का तकनीकी मुद्दा नहीं बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों के संरक्षण से सीधा जुड़ा प्रश्न बन चुका है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-