पौष माह की शुरुआत से बढ़ी धार्मिक उत्सुकता, पितरों की पूजा के महत्व ने क्यों बढ़ाई इसे छोटा पितृ पक्ष कहे जाने की चर्चा

पौष माह की शुरुआत से बढ़ी धार्मिक उत्सुकता, पितरों की पूजा के महत्व ने क्यों बढ़ाई इसे छोटा पितृ पक्ष कहे जाने की चर्चा

प्रेषित समय :21:17:42 PM / Thu, Dec 4th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

हिंदू पंचांग में जब मार्गशीर्ष माह अपनी पूर्णता की ओर बढ़ता है, ठीक उसी समय श्रद्धाभाव और धार्मिक ऊर्जा से भरा पौष माह दस्तक देता है। इस वर्ष 5 दिसंबर से शुरू हो रहे पौष माह को लेकर श्रद्धालुओं में खास उत्सुकता है, क्योंकि परंपराओं के अनुसार यह महीना सूर्योपासना और पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह को खासतौर पर “छोटा पितृ पक्ष” कहा जाता है, और यही कारण है कि धार्मिक मान्यताओं में इसकी अलग ही प्रतिष्ठा दिखाई देती है। लोग इसे केवल एक साधारण मास परिवर्तन नहीं मानते बल्कि इसे पितरों की शांति, तर्पण और श्राद्ध से जुड़े आध्यात्मिक कर्मों का विशेष अवसर मानते हैं। यही वजह है कि पौष माह की शुरुआत से ही देशभर में लोग अपने-अपने ढंग से पितृ पूजन, सूर्यदेव की आराधना और तर्पण की तैयारियों में लग जाते हैं।

ज्योतिष और धर्मशास्त्र के अनुसार पौष वह समय है जब सूर्यदेव धनु राशि में प्रवेश करते हैं और इसके साथ ही खरमास आरंभ होता है। खरमास लगने के चलते विवाह जैसे मांगलिक कार्य एक माह तक के लिए रोक दिए जाते हैं, लेकिन दूसरी ओर यह समय पूजा-पाठ, तप, दान-पुण्य और विशेष रूप से पितरों के श्राद्ध के लिए शुभ माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस माह में किए गए तर्पण और पिंडदान से पितरों को बैकुंठ प्राप्त होता है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान पितरों की आत्माएँ पृथ्वी लोक के समीप रहती हैं और अपने परिजनों की ओर से किए गए कर्मों का फल आसानी से ग्रहण करती हैं। इसी भाव ने इसे छोटा पितृ पक्ष की संज्ञा दी है। मूल पितृ पक्ष तो भाद्रपद माह में आता है, लेकिन पौष माह का यह विशेष समय उससे कम महत्व का नहीं माना जाता।

धार्मिक परंपराओं में यह भी कहा गया है कि जिस व्यक्ति के परिवार में पितृ दोष होता है, उसे पौष माह में किए गए विशेष अनुष्ठानों से राहत मिलती है। पितृ दोष के कारण अनेक बार परिवार में अनचाही बाधाएँ, आर्थिक परेशानियाँ, स्वास्थ्य संबंधी कष्ट या मानसिक तनाव देखने को मिल सकते हैं। इसीलिए पौष के प्रारंभ होते ही ज्योतिषी और विद्वान लोग इस माह की उन तिथियों की चर्चा करने लगते हैं जो पितृ पूजन के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। लोगों में यह उत्सुकता रहती है कि किन दिनों पर पूजा करने से पितरों की कृपा अधिक फलदायी मानी जाती है। पौष संक्रांति, पौष अमावस्या और पौष पूर्णिमा इन दिनों को अत्यंत शुभ बताया गया है। इन तिथियों पर विशेष रूप से जल तर्पण, पिंडदान, दान और ब्राह्मण भोज का विधान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वंशजों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।

इस माह में सूर्यदेव की उपासना का भी बड़ा महत्व है। धर्मशास्त्र बताते हैं कि पौष सूर्य का विशेष मास है। इस दौरान प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, धन और सम्मान की प्राप्ति होती है। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार धनु संक्रांति के बाद सूर्य की ऊर्जा शरीर और मन दोनों पर विशिष्ट प्रभाव डालती है। यही कारण है कि लोग प्रातःकाल सूर्य उदय के समय जल में लाल चंदन, अक्षत या लाल पुष्प मिलाकर अर्घ्य देते हैं। इस परंपरा को न केवल आध्यात्मिक लाभों से जोड़ा गया है, बल्कि इसे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी उपयोगी माना गया है। शीत ऋतु के दौरान सूर्य की किरणों का महत्व बढ़ जाता है और अर्घ्य देने की यह परंपरा आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाने का माध्यम भी मानी जाती है।

पौष माह में पितरों के लिए किए जाने वाले उपायों को लेकर भी लोगों में काफी जिज्ञासा रहती है। उदाहरणस्वरूप पीपल के वृक्ष के नीचे काला तिल डालकर दीपक जलाने की परंपरा पुरानी मानी गई है। यह माना गया है कि पीपल देववृक्ष है और इस पर जली लौ पितरों तक सीधा संदेश भेजती है। इसी प्रकार ब्राह्मणों को भोजन कराना, जनेऊ, वस्त्र या दक्षिणा का दान करना पितरों की आत्मा को तृप्त करने का प्रमुख मार्ग माना गया है। कई लोग पौष माह में पितृ स्तोत्र का विशेष पाठ करते हैं और श्रीमद्भागवत के गजेंद्र मोक्ष अध्याय का पाठ भी अत्यंत शुभ बताया गया है। गजेंद्र मोक्ष कथा में मोक्ष की प्राप्ति का संदेश है और पितरों की मुक्ति हेतु इसका पाठ कल्याणकारी माना जाता है।

शनिवार के दिन काले कुत्ते को उड़द की रोटी खिलाने की परंपरा भी पौष में विशेष तौर पर निभाई जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार इससे शनि दोष के साथ पितृ दोष की शांति भी होती है और नकारात्मक ऊर्जाएँ कम होती हैं। पौष के महीने में पेट भर भोजन करवाना, जरूरतमंदों को गर्म कपड़े देना और वृद्ध लोगों की सहायता करना भी पुण्यदायी माना गया है।

जिन लोगों के माता-पिता का देहांत हो चुका है, उनके लिए भी पौष माह का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसे लोगों को रोजाना जल, दूध और तिल मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण करना चाहिए। यह प्रक्रिया न केवल पितरों की आत्मा की शांति के लिए मानी जाती है, बल्कि इसे मन की शांति और जीवन में स्थिरता लाने वाला उपाय भी समझा गया है। कहा जाता है कि इससे जीवन में रुकावटें दूर होती हैं और व्यक्ति दोगुनी प्रगति की ओर बढ़ता है।

पौष माह का महत्व केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं बल्कि यह समय लोगों को आत्मचिंतन, आचार सुधार और पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर भी देता है। यही कारण है कि हर वर्ष पौष माह की शुरुआत के साथ ही लोगों में नई श्रद्धा जगती है और पितरों की कृपा प्राप्त करने की भावना प्रबल हो जाती है। इस माह को छोटा पितृ पक्ष कहा जाना केवल परंपरा नहीं बल्कि उन मान्यताओं का परिणाम है जहाँ पितरों की स्मृति और उनके आशीर्वाद को जीवन का अनिवार्य हिस्सा माना गया है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-