जबलपुर से उठा SIR सवाल, 1200 संदिग्धों का दावा, विश्नोई बोले संख्या एक लाख से ज़्यादा

जबलपुर से उठा SIR सवाल, 1200 संदिग्धों का दावा, विश्नोई बोले संख्या एक लाख से ज़्यादा

प्रेषित समय :19:12:20 PM / Fri, Dec 5th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

जबलपुर.मध्य प्रदेश की राजनीति में अचानक फिर एक बार सुरक्षा, पहचान और पंजीकरण से जुड़ी प्रक्रिया सुर्खियों में है। भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने जबलपुर में SIR प्रक्रिया के दौरान 1200 संदिग्ध व्यक्तियों के मिलने का दावा करके एक नई बहस को जन्म दे दिया है। यह दावा ऐसे समय में सामने आया है जब प्रदेश में पहले ही अवैध निवास, फर्जी दस्तावेजों और बाहरी गतिविधियों पर निगरानी बढ़ाने की मांग हो रही है। विश्नोई के इस बयान ने न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे प्रदेश में राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को तेज़ कर दिया है।

अजय विश्नोई ने कहा कि SIR-जिसे वे “संदिग्धों की पहचान और पंजीकरण” की प्रक्रिया बता रहे हैं—के मुताबिक सिर्फ जबलपुर में ही 1200 ऐसे लोग सामने आए हैं जिनकी गतिविधियाँ, पते या दस्तावेज़ संदिग्ध श्रेणी में पाए गए हैं। उनका दावा है कि यदि पूरे प्रदेश में इसी पैमाने पर जाँच की जाए तो “ऐसे लोगों की संख्या एक लाख से भी ज़्यादा निकल सकती है।” उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में “डिटेंशन” व्यवस्था को फिर से लागू किया जाना चाहिए, ताकि संदिग्ध गतिविधियों में शामिल लोगों की प्रभावी निगरानी और कानूनी कार्रवाई संभव हो सके।

एक ओर जहाँ विश्नोई इसे सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का अनिवार्य सवाल बता रहे हैं, वहीं उनके बयान ने सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएँ पैदा कर दी हैं। कुछ लोग इसे प्रदेश की सुरक्षा से जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू मान रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक माहौल गर्माने की रणनीति बता रहे हैं। कई उपयोगकर्ताओं ने सवाल उठाया कि SIR प्रक्रिया का दायरा क्या है, इसके लिए कौन-सी एजेंसियाँ जिम्मेदार हैं, और 1200 संदिग्धों की पहचान किस आधार पर की गई। इसी तरह यह भी पूछा जा रहा है कि “डिटेंशन” व्यवस्था बहाल होने पर इसकी रूपरेखा क्या होगी और इसमें नागरिक अधिकारों की सुरक्षा किस तरह सुनिश्चित की जाएगी।

जबलपुर प्रशासन की ओर से आधिकारिक रूप से इस दावे की पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन स्थानीय स्तर पर यह साफ़ दिख रहा है कि हाल के महीनों में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने दस्तावेज़ सत्यापन, किरायेदार पंजीकरण, बाहरी राज्यों/देशों से आने वालों की निगरानी और श्रमिक कॉलोनियों में पहचान-पुष्टि की कार्रवाई तेज़ की है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि किरायेदारों, मजदूर बस्तियों, अस्थायी कॉलोनियों और सीमावर्ती क्षेत्रों से आए लोगों के बीच कई बार अपूर्ण या संदिग्ध दस्तावेज़ पाए जाते हैं, जिनकी जांच लम्बी प्रक्रिया है।

अजय विश्नोई का दावा ऐसे समय आया है जब प्रदेश में लगातार विभिन्न जिलों में फर्जी पहचान पत्रों, संदिग्ध गतिविधियों और अवैध निवासियों को लेकर कई छोटे-बड़े मुद्दे सामने आते रहे हैं। हाल ही में प्रदेश के कुछ जिलों में पुलिस को ऐसे लोग मिले जिनके पास न तो स्थानीय पते का प्रमाण था और न ही नागरिकता से संबंधित वैध दस्तावेज़। इस पृष्ठभूमि में विश्नोई के बयान को सुरक्षा दृष्टि से गंभीर माना जा रहा है।

पूर्व मंत्री का कहना है कि “किसी भी प्रदेश की सुरक्षा उसके डेटा, दस्तावेज़ और पहचान प्रणाली की मजबूती पर निर्भर करती है। अगर प्रदेश में एक लाख से अधिक ऐसे संदिग्ध मौजूद हैं जिनकी पुष्टि नहीं है, तो यह गंभीर विषय है। सरकार को इस पर त्वरित और सख्त कदम उठाने चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा एजेंसियाँ अगर मजबूत कानूनी ढाँचे के अभाव में हाथ बाँधकर बैठी हैं, तो ‘डिटेंशन’ जैसी व्यवस्था उन्हें कार्रवाई का आधार दे सकती है।

हालांकि विरोधी पक्ष और सोशल मीडिया के कुछ विश्लेषक यह तर्क दे रहे हैं कि ऐसे दावे बिना आधिकारिक आँकड़ों या विस्तृत डेटा के जनता में डर और भ्रम भी पैदा कर सकते हैं। कुछ लोगों ने कहा कि “संदिग्ध” शब्द अपने आप में बहुत व्यापक है—क्या यह प्रवासी मजदूरों के संदर्भ में है, क्या यह विदेशियों पर लागू होता है, क्या इसमें फर्जी दस्तावेज़ वाले लोग शामिल हैं, या क्या यह केवल सुरक्षा एजेंसियों की प्रारंभिक स्क्रीनिंग में शामिल व्यक्तियों की श्रेणी है? इन सवालों का जवाब प्रशासन की तरफ से अब तक स्पष्ट रूप से नहीं दिया गया है।

जबलपुर में स्थानीय नागरिकों के बीच भी इस खबर को लेकर उत्सुकता और हल्की बेचैनी दोनों दिख रही हैं। जिन इलाकों में पिछले कुछ महीनों से दस्तावेज़ सत्यापन अभियान चल रहे थे, वहाँ के लोगों का कहना है कि पुलिस टीम लगातार किरायेदारों और श्रमिकों के कागजात जांच रही है और पूछताछ कर रही है। कई बार ऐसे लोग भी पकड़े जाते हैं जिन्हें नहीं पता कि आधिकारिक रूप से कौन-कौन से दस्तावेज़ ज़रूरी हैं।

सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट इस बात पर भी केंद्रित हैं कि क्या SIR प्रक्रिया कोई नई पहल है या यह पहले से चल रही पहचान-जाँच व्यवस्था का नया नाम है। वहीं कुछ लोग इस मुद्दे को प्रदेश की राजनीतिक हलचल से जोड़कर देख रहे हैं। उनका कहना है कि सुरक्षा, घुसपैठ या फर्जी दस्तावेज़ जैसे मुद्दे आमतौर पर राजनीतिक गतिविधियों के दौर में अधिक उभरते हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में यह मुद्दा प्रदेश की सुरक्षा नीति, प्रशासनिक कार्रवाई और राजनीतिक विमर्श—तीनों पर असर डाल सकता है। यदि सरकार इस पर कोई नई नीति या प्रणाली लागू करती है तो इसका दायरा दस्तावेज़ सत्यापन से आगे बढ़कर नागरिक सुरक्षा, प्रवासी प्रबंधन और सीमा पार गतिविधियों से जुड़ी बड़ी पहलों को भी प्रभावित कर सकता है।

प्रदेश सरकार की ओर से अभी तक आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उम्मीद है कि इस दावे के बाद प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों से स्पष्टीकरण या विस्तृत जानकारी सामने आ सकती है। इस बीच सोशल मीडिया पर लोग सवाल पूछ रहे हैं कि इतने बड़े पैमाने पर संदिग्ध पाए जाने का दावा यदि सही है तो इसकी विस्तृत सूची, जांच का आधार, और आगे की कार्रवाई की रूपरेखा सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि भ्रम से बचा जा सके।

जबलपुर में 1200 संदिग्धों के मिलने और प्रदेश में एक लाख से अधिक की संभावना जैसे दावे फिलहाल चर्चा का विषय हैं। लेकिन यह साफ है कि इस बहस ने प्रदेश में सुरक्षा, पहचान और कानून-व्यवस्था से जुड़े सवालों को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है—और जनता यह जानने को उत्सुक है कि इन दावों की सच्चाई क्या है, और आगे इसका असर किन रूपों में सामने आएगा।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-