सफला एकादशी पर शुभ संयोगों का दुर्लभ मेल भक्तों में उत्साह, पौष मास की पुण्यधारा में उमड़ेगी आस्था

सफला एकादशी पर शुभ संयोगों का दुर्लभ मेल भक्तों में उत्साह, पौष मास की पुण्यधारा में उमड़ेगी आस्था

प्रेषित समय :23:02:42 PM / Mon, Dec 8th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

पौष मास की शीतल हवा जब अपने सन्नाटे में आध्यात्मिकता की धीमी गूंज समेटकर चल रही होती है, उसी समय हिंदू पंचांग एक ऐसे पर्व की दस्तक देता है, जिसकी प्रतीक्षा हर वर्ष भावनाओं और श्रद्धा के साथ की जाती है—सफला एकादशी। यह वह पावन तिथि है जिसके बारे में मान्यता है कि इसकी साधना से जीवन की नकारात्मकता समाप्त होकर समृद्धि का मार्ग खुलता है। विष्णु भक्तों के लिए यह दिन न केवल उपवास और व्रत का अवसर है, बल्कि आत्मशुद्धि और संकल्पों को दृढ़ करने का भी समय है। इस वर्ष सफला एकादशी का आगमन दो दिनों पर फैले शुभ संयोग लेकर आया है, जिसने भक्तों में उत्साह को और बढ़ा दिया है।

पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 14 दिसंबर की शाम 6 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन 15 दिसंबर की रात 9 बजकर 19 मिनट पर होगा। परंपरागत उदया-तिथि के नियम के आधार पर इस एकादशी का व्रत 15 दिसंबर को ही मान्य माना जाएगा। इसी कारण भक्तों की तैयारियाँ इस तिथि से जुड़े शुभ मुहूर्तों और दिनभर के पूजन-विधान को केंद्र में रखती हुई दिखाई दे रही हैं।

व्रत के दिन का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:17 से 6:12 तक रहेगा—वही समय जब आकाश हल्की नीली आभा में डूबा होता है और हवा में एक अलग तरह की पवित्रता महसूस होती है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान, ध्यान और विष्णु-चरण स्मरण से दिन की शुरुआत करने से मन निर्मल होता है और संकल्पों में स्थिरता आती है। इसके अतिरिक्त, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:56 से 12:37 तक बन रहा है, जिसे विष्णु पूजा और विशेष मंत्रोच्चार के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। इस बार की सफला एकादशी पर चित्रा नक्षत्र का प्रभाव रहेगा और साथ ही शोभन योग का संयोग बन रहा है—यह दोनों परिस्थितियाँ मिलकर इस दिन को और अधिक पुण्यदायी बना देती हैं।

धर्मशास्त्रों में वर्णन मिलता है कि शोभन योग के दौरान किये गए व्रत और दान का शुभ फल कई गुना बढ़ जाता है, जबकि चित्रा नक्षत्र व्यक्ति के कर्म और सौंदर्य को निखारने वाला नक्षत्र माना जाता है। ऐसे शुभ संयोगों का एक दिन में समाहित होना भक्तों के लिए दुर्लभ अवसर माना जा रहा है। मंदिरों में विशेष सजावट, भजन-कीर्तन की तैयारियाँ और रात्रि जागरण के आयोजन कई जगह प्रारंभ हो चुके हैं, जहाँ भक्तजन इस विशेष योग का अधिकाधिक लाभ लेने के लिए जुटते दिखाई देंगे।

सफला एकादशी का महत्व केवल तिथियों और मुहूर्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसके पीछे छिपे धार्मिक और सामाजिक संदेशों तक भी जाता है। कहा जाता है कि इस दिन उपवास करने से और भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करने से व्यक्ति अपने भीतर के भ्रम, मोह और निष्फल इच्छाओं पर अंकुश लगा पाता है। ‘सफला’ शब्द का अर्थ ही ‘सफलता प्रदान करने वाली’ है, इस कारण इस तिथि की साधना को जीवन में सफलता, आत्मविश्वास और शांति लाने वाली साधना माना गया है। इस दिन का व्रत अक्सर वे लोग भी करते हैं जो सामान्यतः उपवास नहीं रखते, क्योंकि इसके प्रभाव के बारे में कई लोक-कथाएँ और पुराणों में वर्णित प्रसंग विशेष प्रेरणा देते हैं।

पूरे दिन भक्त विष्णु सहस्रनाम, मधुसूदन स्तोत्र, नारायण कवच सहित विभिन्न वैदिक मंत्रों का जाप करते हैं। घरों में तुलसी दल, पीली सामग्री और पंचमेवा का विशेष महत्व रहता है। ईश्वर को अर्पित किए जाने वाले नैवेद्य में सात्विक और सरल भोजन रखा जाता है, जबकि व्रतधारी केवल फलाहार या जल-मिश्रित उपवास करते हैं। कई श्रद्धालु इस दिन दान-पुण्य को अपनी साधना का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। रात्रि को जागरण कर भगवान के नाम का कीर्तन करने की परंपरा भी कई क्षेत्रों में प्रचलित है।

इस बार की सफला एकादशी इसलिए भी खास है क्योंकि दिसंबर का यह मध्य समय न केवल मौसम के लिहाज से शांत और सौम्य होता है, बल्कि वर्षांत का दौर भी शुरू हो चुका होता है। लोग अपने वर्षभर के अनुभवों की समीक्षा करते हैं, नया संकल्प लेते हैं और अगले वर्ष के लिए मन को तैयार करते हैं। इस मनोदशा में एकादशी का व्रत आस्था और आत्मनियंत्रण के बीच एक सुंदर संतुलन पैदा करता है। इसे कई लोग एक मानसिक पुनरारंभ की तरह भी देखते हैं, जहाँ उपवास और पूजा की प्रक्रिया मन को रीसेट करती है।

आस्था के इस पावन अवसर पर देश भर के मंदिरों में भी विशेष व्यवस्था की जा रही है। कई प्रमुख मंदिरों में लंबी कतारों की संभावना को देखते हुए सुबह से ही अतिरिक्त व्यवस्था की योजना तैयार है। दक्षिण भारतीय मंदिरों में तुलसी-मालाओं से विशेष श्रृंगार, उत्तर भारत के मंदिरों में शंख-ध्वनि और मंत्रोच्चार से वातावरण का अलंकरण, और पूर्व भारत में भक्ति-गीतों का पारंपरिक स्वर—हर क्षेत्र अपने-अपने तरीके से इस एकादशी को अनोखी अनुभूति में बदल देगा।

ज्योतिष के जानकारों का मत है कि शोभन योग में किया गया व्रत न केवल पारिवारिक सुख बढ़ाता है, बल्कि व्यक्ति के कर्म, आर्थिक स्थितियों और मानसिक शांति को भी सकारात्मक दिशा देता है। चित्रा नक्षत्र का संयोग इस प्रभाव को और मजबूती देता है, क्योंकि यह नक्षत्र रचनात्मकता और ऊर्जा का प्रतीक है। ऐसे में यह तिथि उन लोगों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है जो अपने जीवन में किसी नई शुरुआत का संकल्प लेना चाहते हैं।

दिनभर का वातावरण केवल पुराणों में वर्णित फल-श्रुति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आधुनिक समाज में यह दिन स्वास्थ्य, अनुशासन, आत्म-नियंत्रण और सामुदायिक सद्भाव जैसे मूल्यों को भी मजबूत करता है। उपवास व्यक्ति को शारीरिक रूप से हल्का अनुभव कराता है, मानसिक रूप से शांत करता है और आत्मिक रूप से प्रार्थना के माध्यम से जोड़ता है। वर्ष के अंतिम महीने में पवित्रता, अनुशासन और विश्वास का यह संगम लोगों को नकारात्मकताओं से दूर करके सकारात्मक संकल्पों की ओर ले जाता है।

सफला एकादशी इस बार महज एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि अवसर है उस आत्मिक यात्रा का जो हर व्यक्ति को अपने भीतर शुरू करनी होती है। पौष मास की शांत रातें, ठंडी हवा, भक्ति का मधुर स्वर और शुभ संयोगों से सजा यह दिन करोड़ों लोगों के लिए आस्था और आशा का नया द्वार खोलने जा रहा है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-