उत्पन्ना एकादशी पर बन रहा दुर्लभ त्रि-संयोग, सहस्त्र वर्षों की तपस्या जितना पुण्य और पितरों को मोक्ष का मार्ग

उत्पन्ना एकादशी पर बन रहा दुर्लभ त्रि-संयोग, सहस्त्र वर्षों की तपस्या जितना पुण्य और पितरों को मोक्ष का मार्ग

प्रेषित समय :21:54:55 PM / Fri, Nov 14th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

आगामी 15 नवंबर 2025, शनिवार का दिन सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत विशेष होने वाला है. इस दिन अगहन महीने (मार्गशीर्ष) के कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी का पवित्र व्रत मनाया जाएगा. इस एकादशी को शास्त्रों में सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार की उत्पन्ना एकादशी अपनी तिथि, वार और ग्रहों के विशेष गोचर के कारण अत्यंत दुर्लभ मानी जा रही है, जो भक्तों के लिए अतुलनीय पुण्य लाभ के द्वार खोल रही है. यह महज एक व्रत नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान और पूर्वजों को शांति प्रदान करने का एक महायोग है, जिसकी शक्ति को $\text{23}$वीं एकादशी होने के कारण और भी प्रबल माना जा रहा है.

इस एकादशी पर जो दुर्लभ संयोग निर्मित हो रहे हैं, वे इसे सामान्य एकादशी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बना देते हैं. इस पवित्र दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का प्रभाव रहेगा, जो सूर्य द्वारा शासित नक्षत्र है और यह स्थिरता, मान-सम्मान तथा दीर्घकालिक सफलता का प्रतीक माना जाता है. इसके साथ ही, वैधृति योग और जयद् योग का शक्तिशाली संयोजन इस दिन की शुभता को कई गुना बढ़ा रहा है. वैधृति योग जहाँ शुभ कार्यों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है, वहीं जयद् योग किसी भी कार्य में निश्चित विजय और सफलता सुनिश्चित करता है. ज्योतिषाचार्य राकेश झा के अनुसार, इस प्रकार के त्रि-संयोग में किया गया व्रत, पूजा, जप और दान सीधे श्रीहरि विष्णु के चरणों में पहुँचता है, जिससे इसका लाभ कई गुना बढ़ जाता है.

शास्त्रों में इस एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की आराधना करने मात्र से व्यक्ति को सहस्त्र वर्षों की तपस्या के बराबर पुण्य प्राप्त होता है. पंडित झा बताते हैं कि यह व्रत केवल व्यक्तिगत कल्याण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा प्रभाव पूर्वजों और पितरों पर भी पड़ता है. विधि-विधान से यह व्रत करने वाले जातक न केवल स्वयं को आरोग्यता, संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं, बल्कि अपने पितरों को भी जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाकर उन्हें मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करते हैं. यही कारण है कि साधु-संतों, वैष्णवजनों और गृहस्थों द्वारा यह व्रत परम श्रद्धा और नियम से किया जाता है.

उत्पन्ना एकादशी के व्रत से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष $\text{—}$ इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है. इसे बुद्धि प्रदान करने वाला, शांति देने वाला और विशेष रूप से संतान सुख देने वाला माना गया है. इस दिन की पवित्रता को और बढ़ाने के लिए, पवित्र नदियों में स्नान करने का विधान है. नर्मदा, गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से न केवल शरीर शुद्ध होता है, बल्कि आत्मा भी पापों से मुक्त होती है. भक्तों का मानना है कि एकादशी का यह अनुष्ठान करने से जन्म-जन्मांतर के संचित पापों का नाश हो जाता है, जिससे मनुष्य जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है.

उत्पन्ना एकादशी की कथा धार्मिक ग्रंथों में विशेष स्थान रखती है. कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों के अहंकार और अत्याचारों के नाश के लिए स्वयं एकादशी देवी को उत्पन्न किया था. एकादशी देवी ने प्रकट होकर राक्षस मुर का वध किया, जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने एकादशी को वरदान दिया कि जो भी प्राणी इस तिथि पर व्रत करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होगा. इसी कथा के कारण इस तिथि का नाम 'उत्पन्ना' पड़ा.

व्रत के दौरान सही पूजा विधि और नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस दिन प्रातःकाल उठकर पवित्र स्नान करना चाहिए और पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु को प्रिय है. भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित कर उन्हें तुलसी दल, धूप, दीप, पीले फूल और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए. भक्तों को गीता का पाठ और विष्णु सहस्त्रनाम का जाप विशेष रूप से फलदायी माना जाता है. मंत्रों में "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप अत्यंत शुभ होता है, जिससे एकादशी व्रत का पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है.

इस व्रत में कुछ चीज़ों का सख्ती से परहेज़ करना भी आवश्यक माना गया है. एकादशी के दिन अनाज (जैसे चावल, दालें), मांसलहसुन-प्याज, और नशे वाले पदार्थों का सेवन पूरी तरह से वर्जित है. इसके साथ ही, व्रत के दौरान झूठ बोलना, क्रोध करना, किसी का अपमान करना और चुगली करने से भी बचना चाहिए. व्रती को शांत मन से प्रभु भक्ति में लीन रहना चाहिए. ये नियम केवल शारीरिक शुद्धि के लिए नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए भी आवश्यक हैं, ताकि एकादशी व्रत का संपूर्ण आध्यात्मिक लाभ मिल सके. यह एकादशी भक्तों को यह संदेश देती है कि बाहरी सादगी और आंतरिक शुद्धि के माध्यम से ही जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य, मोक्ष, की प्राप्ति संभव है.

  1. दुर्लभ संयोग का अर्थ:  उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, वैधृति योग, और जयद् योग $\text{—}$ इन तीनों का एक साथ आना अध्यात्म और व्यक्तिगत जीवन में क्या खास प्रभाव डालता है?

  2. मोक्ष और पितर: हिंदू धर्म में 'पितरों को मोक्ष' दिलाने के लिए एकादशी व्रत का इतना महत्व क्यों है, और यह जन्म-मृत्यु के चक्र को कैसे प्रभावित करता है?

  3. एकादशी देवी की कथा: मुर नामक राक्षस के वध और एकादशी देवी के उत्पन्न होने की पूरी पौराणिक कथा को विस्तार से समझना.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-