खरमास में दान का है बहुत महत्व, जानें कब से लग रहा है खरमास और इसके शुभ प्रभाव

खरमास में दान का है बहुत महत्व, जानें कब से लग रहा है खरमास और इसके शुभ प्रभाव

प्रेषित समय :22:21:11 PM / Wed, Dec 10th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

हिंदू पंचांग में समय और ग्रह-नक्षत्रों के क्रम को अत्यंत सूक्ष्मता से समझाया गया है, और उसी क्रम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है खरमास—एक ऐसा महीना जिसे धार्मिक दृष्टि से पवित्र और पुण्यदायी माना गया है, लेकिन जहां मांगलिक कर्मों पर विराम लगा दिया जाता है। हर वर्ष दो बार आने वाला यह काल सूर्य के राशि परिवर्तन से गहराई से जुड़ा है। यही वह समय है जब सूर्य देव गुरु की राशियों, धनु या मीन, में प्रवेश करते हैं और लगभग एक माह तक वहीं स्थित रहते हैं। इस अवधि को ही खरमास कहा जाता है, जिसे परंपराओं में विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक साधना, दान, जप और स्नान का समय माना जाता है।

पंचांग की गणना के अनुसार इस वर्ष खरमास 15 दिसंबर 2025 की रात 10:19 बजे सूर्य के वृश्चिक से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही प्रारंभ होगा। यह स्थिति अगले वर्ष 14 जनवरी 2026 तक कायम रहेगी और जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे, मकर संक्रांति के साथ खरमास समाप्त हो जाएगा। वर्ष के इस विशेष चरण में लोग घर-परिवार से जुड़े बड़े निर्णयों, संस्कारों या उत्सवों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नई खरीदारी या नए कामों के शुभारंभ को स्थगित रखते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इस समय मंगलकारी ऊर्जा पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं होती।

खरमास के दौरान धार्मिक ग्रंथों का पाठ, मंत्र जप, ध्यान और देवपूजन की परंपरा अत्यंत गहरे अर्थ समेटे हुए है। इस अवधि को एक तरह से आत्मचिंतन और तप का समय समझा जाता है। कई धार्मिक ब्रह्मसूत्रों में उल्लेख मिलता है कि जब सूर्य गुरु की राशियों में प्रवेश करते हैं, तब सौर ऊर्जा और शुभ शक्तियों की तालमेल कुछ कमजोर हो जाती है। इसलिए उत्सवों, वैवाहिक रस्मों, नव निर्माण और मांगलिक संस्कारों को टाल दिया जाता है। इसके विपरीत ध्यान, तप, सेवा और दान जैसे कर्मों को कई गुना फलदायी बताया गया है। यह भी माना जाता है कि तीर्थों में स्नान करने, नदी में डुबकी लगाने और मंदिरों में पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है।

खरमास में दान का महत्व कई पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है। शास्त्र मानते हैं कि इस समय किया गया दान तीर्थ स्नान के समान पुण्य प्रदान करता है। जरूरतमंदों की सहायता करने, साधु-संतों की सेवा करने, भोजन, वस्त्र या अन्न दान करने से न केवल धार्मिक लाभ मिलता है, बल्कि आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है। प्राचीन मान्यताओं में कहा गया है कि यह समय आत्मा के परिष्कार का अवसर है और मानव को इस दौरान अपने भीतर झांककर आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ना चाहिए।

मंदिरों में पूजा-अर्चना के दौरान कुमकुम, घी, तेल, दीपक, पुष्प और प्रसाद अर्पित करना शुभ माना गया है। इस महीने में सूर्य पूजा को भी अत्यंत फलदायी बताया गया है—विशेषकर सुबह के समय स्नान के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को अर्घ्य देना और “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करना स्वास्थ्य, मन-शक्ति और तेजस्विता बढ़ाने वाला माना गया है। आध्यात्मिक विशेषज्ञ बताते हैं कि इस दौरान नियमित सूर्योपासना मानसिक स्थिरता, संकल्प शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है।

धार्मिक परंपराओं में खरमास को मांगलिक कार्यों के लिए अनुपयुक्त माना जाता है, और इसका विज्ञान भी ज्योतिषीय दृष्टि से समझाया गया है। सूर्य, जिन्हें कर्म, प्रकाश, ऊर्जा और प्राण का प्रतीक माना जाता है, जब गुरु की राशि में रहते हैं, तब उनका प्रभाव कुछ कम हो जाता है। दूसरी ओर गुरु भी अपनी राशि में स्थित होकर सूर्य के प्रभाव को पूरी तरह वृद्धि नहीं दे पाते। परिणामस्वरूप यह समय ऐसे कार्यों के लिए कमजोर माना जाता है जो जीवन में बड़े निर्णय, वंशवृद्धि, नई शुरुआत या सामाजिक उत्सवों से जुड़े हों। इसलिए इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन या नए व्यापार की शुरुआत नहीं की जाती।

इस एक महीने को जीवन के व्यस्त शोर-शराबे से थोड़ा अलग हटकर आध्यात्मिकता से जुड़ने का अवसर माना गया है। प्राचीन गुरुकुल परंपरा में भी खरमास के दिनों में छात्र ध्यान, अध्ययन और आत्मानुशासन के अभ्यास में अधिक समय लगाते थे। ऋषि-मुनियों का मानना था कि यह समय तपस्या को शक्ति देता है और मनुष्य सचेत होकर अपने व्यवहार और कर्मों में सुधार ला सकता है।

खरमास का यह माह आधुनिक जीवन में भी कम महत्व नहीं रखता। व्यस्त दिनचर्या के बीच लोग इस अवधि को अपने मन, शरीर और दिनचर्या को संतुलित करने, धार्मिक अनुष्ठानों में समय देने और परोपकार के कार्यों में अधिक भागीदारी का अवसर मानते हैं। कई परिवार इस दौरान सुबह या शाम सामूहिक पूजा करते हैं तो कई लोग व्रत, मंत्र जाप या धार्मिक ग्रंथों—जैसे गीता, रामचरितमानस, विष्णु सहस्रनाम—का पाठ करते हैं। इससे मनोबल बढ़ता है और घर के वातावरण में भी सकारात्मकता का संचार होता है।

इस वर्ष दिसंबर से जनवरी तक चलने वाला खरमास सर्दियों के मौसम में पड़ रहा है, जब ऊर्जा कम और आलस्य थोड़ा अधिक महसूस होता है। इसी वजह से इस समय आध्यात्मिक गतिविधियाँ मन और शरीर दोनों को अनुशासन में रखने में सहायक मानी जाती हैं। कई लोग इस अवधि में सोशल मीडिया, नकारात्मक गतिविधियों या विवादों से दूर रहने का संकल्प भी लेते हैं, जिसे ‘मानसिक उपवास’ का हिस्सा माना जाता है।

धार्मिक दृष्टि से भी यह समय आने वाले शुभ महीनों की तैयारी और संकल्प का अवसर है, क्योंकि 14 जनवरी 2026 को सूर्य के मकर में प्रवेश करते ही मकर संक्रांति का पर्व आएगा और उसके साथ ही शुभ कार्यों का सिलसिला दोबारा शुरू हो जाएगा। वर्ष का यह मोड़ नए प्रयासों, नई योजनाओं और नए उत्सवों की भूमिका तैयार करता है। इसलिए खरमास में की गई साधना, दान और सेवा को आगामी महीनों के लिए शुभ फलदायी कहा गया है।

इस प्रकार खरमास केवल रोक-टोक का महीना नहीं, बल्कि जीवन में ठहराव, संयम और आत्मशुद्धि का समय है। यह आध्यात्मिक चेतना को जगाने वाला, समाजसेवा को बढ़ावा देने वाला और जीवन में संतुलित दृष्टिकोण लाने वाला एक पवित्र चरण है। जब 15 दिसंबर की रात सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा, तब एक बार फिर यह आध्यात्मिक यात्रा शुरू होगी, जिसे 14 जनवरी को सूर्य के मकर में प्रवेश के साथ विराम मिलेगा। इन दिनों में आस्था, दान और साधना को प्रमुखता देना न केवल परंपराओं का पालन है, बल्कि यह आधुनिक जीवन में भी मनुष्य को शांति, सकारात्मकता और संतुलन प्रदान करने का आधार बनता है

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-