भारत की सोलर फैक्ट्रियों में तेजी के बावजूद आधी क्षमता ठप, PLI प्रोत्साहन के बाद भी उद्योग बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा

भारत की सोलर फैक्ट्रियों में तेजी के बावजूद आधी क्षमता ठप, PLI प्रोत्साहन के बाद भी उद्योग बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा

प्रेषित समय :20:03:18 PM / Thu, Dec 11th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली. भारत की सोलर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री इस समय तेज़ी और ठहराव—दोनों के मिलेजुले दौर से गुजर रही है। एक ओर देश ने पहली बार polysilicon और wafer जैसे जटिल और तकनीकी रूप से महत्वपूर्ण सोलर कंपोनेंट्स में भी वास्तविक उत्पादन क्षमता खड़ी करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर यह क्षमता अभी आधी रफ्तार पर काम कर रही है। उद्योग की इस दोहरी तस्वीर को सामने लाती है IEEFA (Institute for Energy Economics and Financial Analysis) और JMK Research की संयुक्त रिपोर्ट, जिसे आज जारी किया गया।

रिपोर्ट कहती है कि भारत सरकार की Production Linked Incentive (PLI) योजना ने वर्षों से पिछड़ रहे सोलर विनिर्माण क्षेत्र को नई गति दी है। 2021 में 4,500 करोड़ रुपये के शुरुआती पैकेज से शुरू होकर 2022 में 19,500 करोड़ और फिर सम्मिलित रूप से 24,000 करोड़ रुपये—इस प्रोत्साहन ने उद्योग में ऐसी हलचल पैदा की जो लंबे समय से नहीं देखी गई थी। यह निवेश मॉड्यूल से लेकर सेल, वेफर और पोलिसिलिकॉन तक पूरी वैल्यू चेन को आगे बढ़ाने की मंशा के साथ आया।

लेकिन ज़मीनी तस्वीर उत्साह जितनी सरल नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि PLI के तहत जितनी उत्पादन क्षमता खड़ी करने का दावा था, उसका केवल आधा हिस्सा ही वास्तव में चल पा रहा है। जून 2025 तक देश में 3.3 GW polysilicon, 5.3 GW wafer, 29 GW solar cell और 120 GW module की क्षमता स्थापित हो चुकी है, लेकिन चुनौती यह है कि इनमें से बड़े हिस्से या तो अभी ट्रायल चरण में हैं या बाजार प्रतिस्पर्धा के कारण पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे। उदाहरण के तौर पर—घोषित 65 GW मॉड्यूल उत्पादन क्षमता के मुकाबले सिर्फ 31 GW ही ऑपरेशनल है। यह असमानता उद्योग की वास्तविक स्थिति को सामने रखती है।

रिपोर्ट के अनुसार निवेश का अंतर भी उतना ही चिंताजनक है। जहां सरकार और उद्योग ने कुल 94,000 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश का लक्ष्य रखा था, वहीं अब तक सिर्फ 48,120 करोड़ रुपये ही वास्तव में निवेश हो पाए हैं। इसका मतलब है कि जमीन पर विस्तार की गति अपेक्षा से काफी धीमी है। अध्ययन में शामिल विश्लेषकों—IEEFA की विभूति गर्ग और JMK Research के प्रभाकर शर्मा, चिराग तेवानी और अमन गुप्ता—का कहना है कि इस धीमापन से कंपनियों को भविष्य में लगभग 41,834 करोड़ रुपये के संभावित नुकसान का जोखिम पैदा हो सकता है।

रिपोर्ट यह भी स्पष्ट करती है कि भारत की सबसे बड़ी चुनौती सोलर वैल्यू चेन के upstream हिस्से में है—यानी polysilicon और wafer निर्माण। इन दोनों महत्वपूर्ण कच्चे हिस्सों के लिए भारत अभी भी लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर है, और यही राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज़ से सबसे बड़ा जोखिम है। वैश्विक बाज़ार में polysilicon और वेफर की कीमतों में गहरी गिरावट ने चीनी निर्माताओं को बहुत अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है। नतीजा यह है कि भारतीय निर्माताओं की लागत उनसे कहीं अधिक बैठती है, जिससे घरेलू उत्पादन दबाव में आ जाता है।

तकनीकी उपकरणों, मशीनरी और skilled manpower की कमी स्थिति को और जटिल बनाती है। कई कंपनियों के पास उच्च-गुणवत्ता वाली आधुनिक उत्पादन इकाइयाँ तैयार हैं, लेकिन प्रशिक्षित तकनीशियनों और इंजीनियरों की कमी के कारण वे पूरी क्षमता पर काम नहीं कर पा रही हैं। इसी तरह, ग्रिड इंटीग्रेशन, पॉलिसी सपोर्ट और निर्यात बाजारों में प्रवेश जैसी चुनौतियाँ भी उत्पादन को सीमित कर रही हैं।

इसके बावजूद रिपोर्ट इस बात को स्वीकार करती है कि भारत की दिशा बिल्कुल सही है। पहली बार upstream मैन्युफैक्चरिंग में वास्तविक प्रगति दिख रही है—जो भविष्य में देश को पूरी वैल्यू चेन का वैश्विक खिलाड़ी बनाने की क्षमता रखती है। दुनिया की सोलर सप्लाई चेन जिस गति से बदल रही है, उसमें भारत के पास अपने लिए एक बड़ा स्थान बनाने का अवसर मौजूद है। पर यह अवसर तभी अवसर बना रहेगा जब नीति, वित्त, तकनीक, उत्पादन और बाजार—इन सभी पहियों का संतुलन साथ-साथ चले।

रिपोर्ट के निष्कर्ष बेहद स्पष्ट हैं। PLI स्कीम ने भारत को वह शुरुआती धक्का तो दे दिया है जिसकी जरूरत लंबे समय से थी, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है। उत्पादन क्षमता को वास्तविक उत्पादन में बदलना, आयात-निर्भरता से बाहर निकलना, वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मात देना और घरेलू कंपनियों के लिए स्थायी व्यापार मॉडल तैयार करना—ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ अभी काफी काम बाकी है। भारतीय सोलर उद्योग एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यदि उद्योग और सरकार मिलकर इन चुनौतियों को समय पर पार कर लेते हैं, तो भारत अगले कुछ वर्षों में दुनिया के सबसे बड़े और सबसे मजबूत सोलर विनिर्माण बेस के रूप में उभर सकता है।

रिपोर्ट का सार यही कहता है—PLI ने दरवाज़ा खोल दिया है, लेकिन इस कमरे को रोशन करने के लिए अभी बहुत मेहनत की जरूरत है। भारत की सोलर फेक्ट्री तेज़ रफ्तार पकड़ चुकी हैं, पर भविष्य में विश्व-स्तरीय लीडर बनने के लिए उन्हें अपनी आधी बंद क्षमता को भी पूरा दमखम देकर सक्रिय करना होगा।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-