नई दिल्ली. देश की परिवहन धुरी, भारतीय रेल, वर्ष 2026 में संभावित आठवें केंद्रीय वेतन आयोग के लागू होने से पहले एक अभूतपूर्व वित्तीय पुनर्गठन की तैयारी में जुट गई है. रेलवे बोर्ड ने आगामी वेतन वृद्धि के विशाल आर्थिक भार को संभालने हेतु व्यय कटौती और आंतरिक संसाधनों के सुदृढ़ीकरण की एक वृहद् योजना बनाई है. इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम ने लाखों रेल कर्मचारियों के बीच उत्सुकता और जिज्ञासा की लहर पैदा कर दी है.
साल 2026 में संभावित 8वें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से पहले, रेलवे बोर्ड ने खर्चों में कटौती और आंतरिक संसाधनों को मजबूत करने की एक व्यापक और महत्वाकांक्षी रणनीति तैयार की है. यह खबर सोशल मीडिया और रेलवे कर्मचारी यूनियनों के बीच जंगल की आग की तरह फैल गई है, जहाँ हर कोई उत्सुकता से इस महायोजना के विवरण जानने को बेचैन है.
रेलवे के गलियारों में फुसफुसाहट और कर्मचारी ग्रुप्स में चल रही तीखी बहस बताती है कि यह सिर्फ एक वित्तीय घोषणा नहीं है, बल्कि लाखों कर्मचारियों के भविष्य से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला है. सूत्रों के अनुसार, रेलवे प्रबंधन इस बार वेतन आयोग की सिफारिशों के कारण पड़ने वाले संभावित वित्तीय बोझ को पहले से ही संतुलित करने की तैयारी में है. इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कर्मचारियों को वेतन और भत्तों का लाभ बिना किसी वित्तीय तनाव के समय पर मिले, और साथ ही रेलवे की परिचालन क्षमता और आधुनिकीकरण की परियोजनाओं पर कोई नकारात्मक असर न पड़े.
इस रणनीति का केंद्रीय बिंदु है "दक्षता और मितव्ययिता". रेलवे बोर्ड उच्च-स्तरीय बैठकों में इस बात पर जोर दे रहा है कि गैर-परिचालन खर्चों को तुरंत और प्रभावी ढंग से कम किया जाए. इसमें सबसे बड़ा फोकस डिजिटलीकरण पर है. कागज रहित कार्यालयों को बढ़ावा देना, ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए LED लाइटिंग और सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना, और कर्मचारियों की यात्रा के दौरान फर्स्ट क्लास या एक्जीक्यूटिव क्लास के अनावश्यक उपयोग पर रोक लगाना शामिल है. कर्मचारियों के बीच सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या अनावश्यक पदों को समाप्त किया जाएगा या खाली पदों को भरने की प्रक्रिया धीमी की जाएगी. हालांकि, आधिकारिक सूत्रों ने आश्वासन दिया है कि सुरक्षा और परिचालन से जुड़े महत्वपूर्ण पदों पर भर्ती जारी रहेगी, लेकिन सहायक भूमिकाओं में नई भर्ती पर पुनर्विचार किया जा सकता है, खासकर वहाँ जहाँ स्वचालन संभव है.
पुरानी संपत्तियों और अनुपयोगी भूमि का मौद्रीकरण करना भी इस प्लान का एक अहम हिस्सा है. देश भर में रेलवे की अपार संपत्ति है जिसका व्यावसायिक उपयोग नहीं हो रहा है. लीजिंग (Leasing) और निजी-सरकारी साझेदारी के माध्यम से इन संपत्तियों से राजस्व जुटाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. यह कदम एक तरफ रेलवे को अतिरिक्त आय देगा, वहीं दूसरी तरफ शहरी विकास में भी योगदान कर सकता है. सोशल मीडिया पर नागरिक संगठन इस बात की निगरानी कर रहे हैं कि इन संपत्तियों का उपयोग पारदर्शी तरीके से हो.
कर्मचारी वर्ग में उत्सुकता का सबसे बड़ा कारण यह है कि खर्च में कटौती का यह अभियान उनके वेतन वृद्धि की संभावनाओं को कैसे प्रभावित करेगा. रेलवे यूनियनों का मानना है कि यह कदम एक सकारात्मक संकेत है. उनका तर्क है कि यदि रेलवे आंतरिक रूप से मजबूत होता है, तो वह 8वें वेतन आयोग की सिफारिशों को और अधिक उदारता से लागू करने की स्थिति में होगा. खासकर, फिटमेंट फैक्टर और न्यूनतम वेतनके निर्धारण पर कर्मचारियों की निगाहें टिकी हैं. कर्मचारियों को उम्मीद है कि रेलवे अन्य केंद्रीय विभागों के लिए एक बेंचमार्क स्थापित करते हुए फिटमेंट फैक्टर में महत्वपूर्ण वृद्धि को स्वीकार करेगा.
रेलवे द्वारा तैयार किया गया यह 'वेतन वृद्धि-खर्च कटौती संतुलन मॉडल' केवल वित्तीय प्रबंधन का अभ्यास नहीं है, बल्कि एक व्यापक प्रशासनिक सुधार का प्रयास है. इसका उद्देश्य रेलवे को एक आधुनिक, कुशल और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर संस्था बनाना है. अगले कुछ महीनों में, रेलवे बोर्ड इस योजना को चरणबद्ध तरीके से लागू करना शुरू कर देगा. जनता और कर्मचारियों की निगाहें अब वित्त मंत्रालय पर टिकी हैं कि वे इस महत्वाकांक्षी योजना को कितना समर्थन देते हैं और 8 वें वेतन आयोग के गठन की आधिकारिक घोषणा कब होती है. इस बीच, रेलवे कर्मचारी व्हाट्सएप ग्रुपों में अपनी भविष्य की वेतन स्लिप के संभावित अनुमानों की गणना में व्यस्त हैं, यह जानते हुए कि इस तैयारी का सीधा असर उनके घर की आर्थिक सेहत पर पड़ने वाला है. यह खबर रेलवे के एक नए युग की शुरुआत का संकेत दे रही है, जहाँ वित्तीय विवेक और कर्मचारी कल्याण साथ-साथ चलते दिखाई देंगे.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

