नई दिल्ली. भारतीय रेलवे की आय संरचना को लेकर एक अहम बहस एक बार फिर केंद्र में आ गई है. संसद की रेलवे स्टैंडिंग कमिटी ने अपनी ताज़ा सिफ़ारिशों में साफ कहा है कि रेलवे को अब अपनी फ्रेट कमाई को केवल कोयला और सीमेंट जैसे पारंपरिक माल पर निर्भर नहीं रखना चाहिए, बल्कि नए क्षेत्रों की ओर भी गंभीरता से कदम बढ़ाने होंगे. यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब रेलवे देश की अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को और व्यापक बनाने की दिशा में प्रयासरत है और फ्रेट से होने वाली आय उसके कुल राजस्व का एक बड़ा हिस्सा बनी हुई है.
कमिटी के अनुसार, मौजूदा समय में रेलवे की फ्रेट कमाई का बड़ा भाग कुछ गिने-चुने उत्पादों से आता है, जिनमें कोयला सबसे प्रमुख है. इसके बाद सीमेंट, लौह अयस्क और कुछ अन्य भारी औद्योगिक माल शामिल हैं. यह निर्भरता लंबे समय तक रेलवे के लिए फायदेमंद जरूर रही है, लेकिन बदलते आर्थिक और पर्यावरणीय परिदृश्य में इसे जोखिम भरा भी माना जा रहा है. खासतौर पर जब ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव हो रहे हैं और कोयले पर निर्भरता धीरे-धीरे कम करने की बातें सामने आ रही हैं, तब रेलवे की आय संरचना पर भी इसका असर पड़ सकता है.
रेलवे स्टैंडिंग कमिटी का मानना है कि फ्रेट कमाई को विविध बनाना न केवल आर्थिक रूप से जरूरी है, बल्कि यह रेलवे को भविष्य के झटकों से भी बचा सकता है. कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में संकेत दिया है कि कृषि उत्पाद, एफएमसीजी सामान, ऑटोमोबाइल्स, कंटेनर कार्गो, ई-कॉमर्स पार्सल और छोटे उद्योगों से जुड़े माल परिवहन में रेलवे के पास बड़ी संभावनाएं हैं. अगर इन क्षेत्रों में योजनाबद्ध ढंग से निवेश और सुविधाओं का विस्तार किया जाए, तो रेलवे की फ्रेट आय में स्थिरता और निरंतर वृद्धि दोनों सुनिश्चित की जा सकती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि अभी तक रेलवे की फ्रेट नीति भारी और थोक माल पर केंद्रित रही है, क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर एकमुश्त आय होती है. लेकिन दूसरी ओर सड़क परिवहन ने छोटे और मध्यम स्तर के माल ढुलाई में अपनी मजबूत पकड़ बना ली है. ऐसे में रेलवे के सामने चुनौती यह है कि वह अपनी सेवाओं को ज्यादा लचीला, तेज़ और ग्राहक-अनुकूल बनाए, ताकि व्यापारी और उद्योग सड़क की बजाय रेल को प्राथमिकता दें.
कमिटी ने इस ओर भी ध्यान दिलाया है कि रेलवे के पास देशभर में फैला हुआ विशाल नेटवर्क है, जिसका पूरा उपयोग अभी नहीं हो पा रहा है. छोटे शहरों और औद्योगिक क्लस्टर्स को बेहतर फ्रेट कनेक्टिविटी देकर रेलवे न केवल अपनी कमाई बढ़ा सकता है, बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी गति दे सकता है. इससे लॉजिस्टिक्स लागत कम होगी और उद्योगों को अपने उत्पाद देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाने में आसानी होगी.
फ्रेट कमाई के विविधीकरण का एक अहम पहलू पर्यावरण से भी जुड़ा है. रेलवे सड़क परिवहन की तुलना में कहीं अधिक पर्यावरण-अनुकूल माना जाता है. अगर ज्यादा से ज्यादा माल ढुलाई रेल के ज़रिए होती है, तो ईंधन की खपत और कार्बन उत्सर्जन में कमी आ सकती है. कमिटी का मानना है कि सरकार की हरित विकास नीति के अनुरूप रेलवे को इस दिशा में अपनी भूमिका और मजबूत करनी चाहिए. इससे न केवल पर्यावरणीय लक्ष्य पूरे होंगे, बल्कि रेलवे की छवि भी एक टिकाऊ और भविष्य-उन्मुख परिवहन माध्यम के रूप में उभरेगी.
रेलवे के भीतर भी इस बात को लेकर मंथन चल रहा है कि फ्रेट बिजनेस को किस तरह आधुनिक बनाया जाए. कंटेनर कॉरिडोर, मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, निजी निवेश की भागीदारी और डिजिटल ट्रैकिंग जैसी पहलों को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. कमिटी ने सुझाव दिया है कि इन योजनाओं को ज़मीन पर उतारने की रफ्तार बढ़ाई जाए और निजी क्षेत्र को ज्यादा भरोसे के साथ जोड़ा जाए, ताकि रेलवे प्रतिस्पर्धी लॉजिस्टिक्स बाजार में अपनी जगह मजबूत कर सके.
हाल के वर्षों में रेलवे ने कुछ नए प्रयोग भी किए हैं, जैसे किसान रेल, पार्सल ट्रेनों का विस्तार और ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ साझेदारी. इन पहलों से यह संकेत मिला है कि अगर सही नीति और सुविधाएं दी जाएं, तो गैर-पारंपरिक फ्रेट से भी अच्छी आय अर्जित की जा सकती है. स्टैंडिंग कमिटी का कहना है कि इन प्रयोगों को अपवाद की तरह नहीं, बल्कि स्थायी मॉडल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए.
आर्थिक जानकारों के मुताबिक, रेलवे की फ्रेट कमाई को विविध बनाना केवल राजस्व बढ़ाने का सवाल नहीं है, बल्कि यह देश की समग्र लॉजिस्टिक्स प्रणाली को मजबूत करने से भी जुड़ा है. भारत में लॉजिस्टिक्स लागत अभी भी विकसित देशों की तुलना में अधिक है, जिसका सीधा असर उत्पादों की कीमतों और प्रतिस्पर्धा पर पड़ता है. रेलवे अगर इस लागत को कम करने में बड़ी भूमिका निभाता है, तो इसका फायदा उद्योग, किसान और उपभोक्ता—सभी को मिलेगा.
कुल मिलाकर, रेलवे स्टैंडिंग कमिटी की यह सिफ़ारिश एक स्पष्ट संकेत है कि अब समय आ गया है जब भारतीय रेलवे को पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर नई संभावनाओं की तलाश करनी होगी. कोयला और सीमेंट जैसे भरोसेमंद स्रोतों के साथ-साथ नए फ्रेट सेगमेंट्स पर ध्यान देकर ही रेलवे अपनी आय को सुरक्षित और भविष्य-तैयार बना सकता है. आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन सिफ़ारिशों पर कितनी तेजी से अमल होता है और भारतीय रेलवे अपनी कमाई को कितनी नई दिशाएं दे पाता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

