चीन का यारलुंग त्सांगपो डैम भारत के लिए टाइम बम बन सकता, जल सुरक्षा और आजीविका पर खतरा

चीन का यारलुंग त्सांगपो डैम भारत के लिए टाइम बम बन सकता, जल सुरक्षा और आजीविका पर खतरा

प्रेषित समय :20:06:38 PM / Thu, Dec 18th, 2025
Reporter : पलपल रिपोर्टर

नई दिल्ली.चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। खबरों के मुताबिक, चीन तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर एक बड़ी जलविद्युत परियोजना को आगे बढ़ा रहा है, जिससे भारत में ब्रह्मपुत्र नदी और उससे जुड़े पारिस्थितिकी, सामाजिक और आर्थिक तंत्र पर गंभीर चिंता पैदा हो गई है। यह केवल पर्यावरणीय मसला नहीं है, बल्कि अरुणाचल प्रदेश और असम के लिए सीधे तौर पर जल सुरक्षा, कृषि, मत्स्य पालन और लाखों लोगों की आजीविका से जुड़ा संवेदनशील मामला बन गया है।

विशेषज्ञों और अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि नदी के ऊपरी हिस्से में किसी भी बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य से इसके प्राकृतिक प्रवाह में बदलाव आ सकता है, जो डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों में बाढ़, सूखे और पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकता है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे "टाइम बम" करार दिया है और चेतावनी दी है कि चीन ब्रह्मपुत्र में छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा और समय को अपने अनुसार नियंत्रित कर सकता है। अचानक बड़े पैमाने पर पानी छोड़ने से बाढ़ का खतरा होगा, जबकि पानी रोके रखने से नदी के महत्वपूर्ण हिस्से सूख सकते हैं, जिससे लाखों लोगों की जीवनराशि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।

CNN की रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तावित यह हाइड्रोपावर परियोजना लगभग 168 अरब डॉलर की है और इसे यारलुंग त्सांगपो नदी में 2000 मीटर की खड़ी ढलान का उपयोग करके कई बड़े बांध, जलाशय, सुरंगों और भूमिगत बिजली स्टेशनों के जरिए बिजली उत्पादन के लिए विकसित किया जाएगा। इस योजना का पैमाना इतना विशाल है कि इसके किसी भी कदम का असर सीधे भारत में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह और आसपास के इकोसिस्टम पर दिखाई देगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रह्मपुत्र एक पार-सीमा नदी है और इसका कोई भी बड़ा हस्तक्षेप न सिर्फ पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए, बल्कि स्थानीय निवासियों की आजीविका के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है। कृषि, मत्स्य पालन और दैनिक पानी की जरूरतों पर इसका सीधा असर होगा। अचानक पानी छोड़ने की स्थिति में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा, जबकि पानी रोकने से नदी के महत्वपूर्ण हिस्से सूख सकते हैं, जिससे खेती और स्थानीय जीवन प्रभावित हो सकता है।

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने भी इस मामले पर नजर बनाए रखने की पुष्टि की है और कहा है कि सरकार चीन के इस प्रोजेक्ट पर विकास और गतिविधियों की निगरानी कर रही है। MEA ने यह स्पष्ट किया कि भारत ने पहले भी चीन के साथ पार-सीमा नदियों के मामलों पर पारदर्शिता और सूचना साझा करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। हालांकि, ब्रह्मपुत्र पर भारत और चीन के बीच कोई बाध्यकारी जल-साझाकरण समझौता नहीं है, इसलिए भारत को निगरानी और कूटनीतिक संवाद के माध्यम से ही अपने हितों की सुरक्षा करनी पड़ती है।

विशेषज्ञों ने जोर देकर कहा कि इस परियोजना का असर केवल पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि रणनीतिक और सुरक्षा दृष्टि से भी गंभीर है। ब्रह्मपुत्र नदी पर नियंत्रण का इस्तेमाल दबाव बनाने के लिए भी किया जा सकता है, खासकर भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण परिस्थितियों में। इससे न केवल स्थानीय समुदाय की आजीविका प्रभावित होगी, बल्कि पूरे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है।

यारलुंग त्सांगपो परियोजना भारत में जल सुरक्षा, पारिस्थितिकी और रणनीतिक संतुलन के लिहाज से एक संवेदनशील मामला बन चुकी है। आने वाले समय में भारत की कूटनीतिक पहल, निगरानी और पारिस्थितिक चेतना इस मामले में निर्णायक साबित होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय नदियों पर बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के दौरान पारदर्शिता और सहयोग अत्यंत आवश्यक है।

भारत और चीन दोनों देशों के लिए यह मामला केवल जल प्रबंधन या ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है। यह रणनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय सुरक्षा का भी मुद्दा बन गया है। भारत सरकार, विशेषज्ञ और स्थानीय समुदाय इस पर लगातार नजर बनाए हुए हैं, ताकि ब्रह्मपुत्र की बहती नदी के पानी पर किसी भी तरह के संकट से न सिर्फ प्राकृतिक संतुलन बना रहे, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका और जीवन सुरक्षित रह सके।

इस परियोजना को लेकर आने वाले महीनों में हर कदम पर भारत की नजर होगी। यारलुंग त्सांगपो और ब्रह्मपुत्र के पानी की सुरक्षा, पारिस्थितिक संतुलन और स्थानीय आजीविका की रक्षा के लिए भारत की निगरानी, कूटनीति और रणनीतिक तैयारियों की अहमियत और बढ़ गई है।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-