भारत और इंडिया-एक ही सिक्के के दो पहलू
मैं बात करना चाहती हूं एक ऐसे विषय पर जो कि आज हमारे देश में एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है और वह है हमारे देश के नाम को लेकर, "भारत या इंडिया" .
यहां पर हमारे लिए सबसे पहले यह बात महत्वपूर्ण है कि हम इन दोनों ही नामों के उद्गम को भली भांति समझ लें. भारत नाम के उद्गम को समझने के हमारे पास तीन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है- पहला वर्णन ऋग्वेद में भरत कुल के रूप में मिलता है, दूसरा वर्णन महाभारत में दुष्यंत और शकुंतला के बेटे राजा भरत के राज्य के रूप में मिलता है और तीसरा स्रोत प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी के बेटे और पहले चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत के राज्य के रूप में मिलता है. यह तीनों ही स्रोत पूर्णतया स्थानीय है, स्वदेशी है, भारतीय हैं और भारत नाम इन्हीं स्रोतों से आ रहा है.
अब बात करते हैं इंडिया नाम की, तो इंडिया नाम वहीं से आ रहा है जहां से हिंदू शब्द आया है.
"हिंदू" शब्द आया है "सिंधु नदी" से. सिंधु नदी भारत के पश्चिम में बहती है, इसका उद्गम तिब्बत के मानसरोवर के पास होता है और यह अरब सागर में मिलती है. आजादी के बाद सिंधु नदी का वृहद क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया लेकिन आजादी से पहले भारत के पश्चिम में स्थित लोगों के लिए सिंधु नदी ही भारत की पहचान हुआ करती थी. पश्चिम में स्थित हमारे निकटतम पड़ोसी फ़ारस यानी ईरान के एक बहुत ही प्रसिद्ध शासक हुए डेरियस. उन्होंने जब सिंधु नदी को देखा तो सिंधु नदी के आसपास रहने वाले लोगों को उन्होंने हिंदू कहा, क्योंकि फारसी उच्चारण में स का ह हो जाता है. यही हिंदू शब्द जब पश्चिम में यात्रा करते हुए एशिया माइनर तक पहुंचता है तो वहां पहुंचते पहुंचते वहां के स्थानीय उच्चारण में यह शब्द हिंदू से हो जाता है "इंदु". एशिया माइनर से एकदम सटा हुआ एक यूरोपीय देश है ग्रीस और ग्रीस के एक बहुत ही प्रसिद्ध इतिहासकार हुए हैं मेगस्थनीज. जब दूसरी-तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व में मेगास्थनीज भारत की यात्रा पर आए और उन्होंने भारत के इतिहास पर एक पुस्तक लिखी, और उस पुस्तक का नाम रखा "इंडिका" और इस क्षेत्र को उन्होंने नाम दिया "इंडिया". यद्यपि यह क्षेत्र आज के पूरे इंडिया का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, यह बहुत ही सीमित क्षेत्र था "विंध्याचल" के उत्तर और बंगाल के पश्चिम का क्षेत्र. इंडिका पुस्तक से यह शब्द पहुंचता है मुख्य यूरोप में रोम और इटली, और वहां से होता हुआ यह पहुंचता है ब्रिटेन में और ब्रिटेन में अंग्रेजों के माध्यम से यह शब्द वापस भारत आता है.
तो इस वर्णन से हम यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि इंडिया नाम हमें अंग्रेजों ने दिया हो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हां यह जरूर कहा जा सकता है कि इंडिया शब्द या इंडिया नाम हमारे लिए उतना नेटिव, उतना स्वदेशी या उतना भारतीय नहीं है जितना भारत है. तो अगर हम अपने देश को भारत कहकर पुकारना चाहते हैं तो यह बिल्कुल एक स्वागत योग्य कदम है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए. हालांकि हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि इंडिया नाम या इंडिया शब्द भी आता वहीं से है जहां से हिंदू शब्द आता है.
हमारी संविधान सभा में भी देश के नाम को लेकर बहुत चर्चा हुई थी. कुछ लोग इंडिया, कुछ भारत तो कुछ आर्यावर्त नाम रखने के पक्ष में थे. उस समय संविधान बनने की प्रक्रिया के क्रम में कुछ Acts जो अंग्रेजी सरकार द्वारा बनाए गए थे उनमें से "गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935" और "इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947" जैसे कई एक्ट थे, जिनमें इंडिया नाम का ही उल्लेख था. उस समय भारत की ओर से दुनिया भर से जो समझौते किए गए उनमें भी इंडिया नाम का ही प्रयोग किया गया था. साथ ही नेहरू जी की ग्लोबल पर्सपेक्टिव की समझ एवं कुछ हद तक इंडिया नाम के प्रति झुकाव के कारण यह तय हुआ कि इंडिया नाम ही रखा जाएगा और हमारे संविधान के आर्टिकल 1 में लिखा गया कि "इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ" होगा. यद्यपि इस बात की चुभन हमेशा रहती है कि यदि दोनों ही नाम लिखने थे तो इसे भारत अर्थात इंडिया भी लिखा जा सकता था. वर्तमान स्थिति में ऐसा लगता है कि जैसे हमने इंडिया को भारत के ऊपर वरीयता दी हो जबकि भारत नाम भारत वासियों द्वारा अपनी भाषा में अपने देश को दिया गया नाम है और इसीलिए यह हमारे लिए अधिक महत्व का भी है.
टोपोनॉमी के अनुसार किसी भी जगह के नाम में एक हिस्टोरिकल, कल्चरल और इमोशनल वजन होता है. किसी जगह के नाम से उस जगह रहने वाले लोगों में आत्मसम्मान और गर्व की भावना विकसित होती है. और भारत के लोग कई सदियों से इसीलिए अपने को भारतीय और अपने देश को भारत, भारतवर्ष कहते आ रहे हैं क्योंकि इस नाम से सभी भारतीय अपने को जोड़कर देखते हैं. तो टोपोनॉमी एक्सपर्ट्स का मानना है कि भले ही इंडिया नाम इंडस रिवर यानी सिंधु नदी से आता है लेकिन यह नाम विदेशियों ने भारत के लिए दिया है जबकि भारत नाम भारतीयों ने अपने देश को दिया है.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इंडिया के जगह पर भारत नाम का प्रयोग करना डिकॉलोनाइजेशन की प्रक्रिया का एक हिस्सा है. लेकिन डिकॉलोनाइजेशन की प्रक्रिया सिर्फ नाम बदलने से पूरी नहीं होती. जब तक हम भाषाई, सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक और अन्य आधारों पर मानसिक गुलामी को नहीं छोड़ते हैं तब तक डिकॉलोनाइजेशन जैसी किसी भी बात को कहना उचित प्रतीत नहीं होता.
हमारी समस्या यह है कि हम इंडिया के स्थान पर भारत तो प्रयुक्त करना चाहते हैं लेकिन हम अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी नहीं लाना चाहते. जब आप हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करोगे तो आप स्वाभाविक रूप से भारत ही लिखोगे, पढ़ोगे और बोलोगे. इस बात को एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं- यदि आपको भारत के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करना हो और आपको यह बात अंग्रेजी में कहनी हो तो आप कहोगे आई लव इंडिया. क्योंकि अगर आप कहोगे कि आई लव भारत तो यह थोड़ा अजीब लगेगा ना. इसी जगह अगर आप हिंदी भाषा का प्रयोग करें तो आप बहुत ही सहजता से कह सकते हैं कि मैं भारत से प्रेम करता हूं.
विश्व के बहुत से ऐसे देश हैं जहां के निवासियों ने अपने देश के लिए अपनी भाषा में एक नाम दे रखा है. जबकि संपूर्ण विश्व उन्हें किसी अन्य नाम से जानता या पुकारता है. जैसे चीनी अपने देश को "झोंगगुओ" जबकि जापानी अपने देश को "निप्पॉन" कह कर पुकारते हैं. तो यहां समझने की बात यह है कि नाम भाषा के साथ-साथ चलता है, आप जिस भाषा का प्रयोग करोगे उसी के अनुसार आपको नाम भी प्रयुक्त करना पड़ेगा.
अगर हम वास्तविक अर्थों में भारत नाम का प्रयोग करना चाहते हैं तो हमें भारतीय भाषाओं का प्रयोग करना ही होगा. अन्यथा नामों की इस कटनी और छटनी से हमें कुछ भी सार्थक हासिल होने वाला नहीं है.